टीम इंडि़या जोहांसबर्ग के वांड़रर्स मैदान पर अपने इतिहास को दोहराने में नाकामयाब रही और उसने दक्षिण अफ्रीका को तीन टेस्ट की सीरीज में एक–एक से बराबरी पर आने का मौका दे दिया। इस मैदान पर टीम इंडि़या इससे पहले कभी हारी नहीं थी‚ क्योंकि खेले गए पांच टेस्ट मैचों में से दो भारत ने जीते थे और तीन ड्रा रहे थे। हम सभी जानते हैं कि दक्षिण अफ्रीका टेस्ट खेलने वाले प्रमुख देशों में इकलौता है‚ जिसके खिलाफ टीम इंडि़या उसके घर में कभी टेस्ट सीरीज नहीं जीत सकी है। इस बार भारत ने जब दक्षिण अफ्रीका को उसके पसंदीदा मैदान सेंचुरियन पर हरा दिया तो सभी को लगने लगा था कि हम इस बार सीरीज जीतने में कामयाब हो सकते हैं‚ लेकिन भारतीय टीम वांड़रर्स पर उम्मीदों पर एकदम से खरी नहीं उतर सकी।
राहुल द्रविड़़ का टीम इंडि़या के कोच बनने के बाद यह पहला विदेशी दौरा है और वह कप्तान के रूप में भारत को २००६ में दक्षिण अफ्रीका पर पहली जीत दिलाने वाले हैं। इस कारण इस बार सभी को भारत के टेस्ट सीरीज जीतने का भरोसा था। इसकी एक वजह दक्षिण अफ्रीका टीम के कई दिग्गजों के तीन–चार साल में क्रिकेट को अलविदा कहने के कारण टीम आजकल युवा प्रतिभाओं को तराशने के दौर से गुजर रही है‚ लेकिन हमारे खिलाड़़ी जिस खेल के लिए जाने जाते हैं‚ वैसा प्रदर्शन करने में एकदम से असफल रहे और दक्षिण अफ्रीका ने कप्तान ड़ीन एल्गर के प्रेरणादायी प्रदर्शन से सीख लेकर भारत को पहली बार इस मैदान पर हराकर यह तो जता दिया है कि तीसरे टेस्ट में भी मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। भारत की इस टेस्ट में हार की प्रमुख वजहों में से एक टीम को विराट कोहली का प्रेरणादायी नेतृत्व नहीं मिल पाना रहा। वह टेस्ट की पूर्व संध्या पर पूरी तरह से फिट नहीं होने के कारण हट गए। इस कारण केएल राहुल की अगुआई में टीम इंडि़या को उतरना पड़़ा। विराट की अनुपस्थिति से भारतीय बल्लेबाजी तो कमजोर हुई ही‚ साथ ही वह जिस आक्रामक अंदाज में नेतृत्व करते हैं‚ वह पूरे मैच में देखने को नहीं मिला। वांड़रर्स की विकेट जिस तरह का व्यवहार कर रही थी‚ उसे देखते हुए २४० रन का लय पाना आसान नहीं था‚ लेकिन विराट की तरह राहुल भारतीय गेंदबाजों खासकर पेस गेंदबाजों में अपना बेस्ट देने का जज्बा नहीं भर सके। इस कारण जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद शमी दक्षिण अफ्रीकी बैटर्स की धड़़कनें नहीं बढ़ा सके। भारतीय गेंदबाज चौथे दिन आधे से ज्यादा दिन का खेल बारिश से बर्बाद होने के बाद जब शुरू हुआ तो रनों पर अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हो सके।
इससे दक्षिण अफ्रीकी बैटर्स पर से दबाव कम होता चला गया और यह दबाव भारतीय गेंदबाजों पर बनता चला गया। भले ही भारतीय पेस अटैक को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अटैक में शुमार किया जाता है‚ लेकिन इस मैदान पर भारतीय पेस गेंदबाज दक्षिण अफ्रीकी पेस गेंदबाजों की तरह विकेट से सहायता नहीं पा सके। इसकी एक वजह शायद यह रही कि दक्षिण अफ्रीकी पेस गेंदबाज >ंचे कद के होने की वजह से विकेट से अच्छी उछाल पाने में कामयाब रहे और इस खूबी से भारतीय बैटर्स को परेशान करने में सफल रहे। भारतीय टीम की ताकत उसकी मध्यक्रम की बल्लेबाजी को माना जाता है‚ क्योंकि इसमें कप्तान विराट कोहली‚ चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे जैसे दिग्गज बल्लेबाज शामिल हैं। भारत की तमाम सफलताओं में इस तिकड़़ी का अहम योगदान है‚ लेकिन पिछले दो सालों के इनके प्रदर्शन को देखें तो थोड़़ी निराशा होती है। इन तीनों का ही इस दौरान बल्लेबाजी औसत ३० से भी कम है। इस टेस्ट से पहले तक पुजारा के नाम ४२ पारियों में शतक नहीं था‚ कप्तान कोहली नवम्बर २०१९ के बाद से शतक नहीं लगा सके हैं। रहाणे १६ टेस्ट में मात्र ५० से ज्यादा के स्कोर बना सके थे। अब जब पुजारा और रहाणे ने अर्द्धशतक लगाकर रंगत में आने का संकेत दिया है‚ लेकिन सिर्फ संकेत के सहारे उनकी पारी लंबी खींचना उचित नहीं होगा।
इसलिए अब विकल्प तलाशने की जरूरत आ गई है। यही नहीं दूसरी पारी में ऋषभ पंत जिस तरह से रवाड़ा की गेंद पर बाहर निकलकर बड़़ा शॉट खेलने गए और विकेट के पीछे कैच हो गए। यह उनके गैरजिम्मेदाराना व्यवहार को दर्शाता है। भारतीय पेस गेंदबाज मोहम्मद सिराज के पहली ही पारी में चोटिल हो जाने से भी भारतीय आक्रमण दवाब में आ गया। एक गेंदबाज की कमी होने से बाकी गेंदबाजों पर बोझा बढ़ गया। यदि सिराज भी फिट होते तो बुमराह और शमी से छोटे–छोटे स्पैल में गेंदबाजी कराई जाती तो गेंदबाजी में ज्यादा पैनापन दिख सकता था। दवाब में बाकी गेंदबाज ऐसी गेंदबाजी नहीं कर सके कि बल्लेबाजों पर दवाब बनाया जा सकता। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीकी कप्तान ड़ीन एल्गर की जितनी भी तारीफ की जाए‚ वह कम है। उनका जिस तरह से मारक्रम‚ पीटरसन और दुसें ने साथ दिया‚ उससे तो उनका सफल होना बनता ही था।