विदेशी हिस्सेदारी वाली कंपनियों से करार करते समय अतिरिक्त सतर्कता न बरतने का खामियाजा देर सबेर उठाना ही पड़़ता है। ऐसे ही एक मामले में एक कनाडाई अदालत ने एयर इंडिया और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की संपत्तियां जब्त करने की मंजूरी दे दी है। वह फैसला उपग्रह बनाने वाली कंपनी डेवास मल्टीमीडिया कंपनी के लिए दस साल से चल रही कानूनी लड़़ाई में जीत की तरह लिया जा रहा है। डेवास के शेयरधारकों के प्रतिनिधियों का कहना है कि तीन करोड़ डॉलर से ज्यादा की संपत्ति उन्होंने जब्त कर ली है। डेवास पहले भी ऐसे कई मुआवजे के मामले जीत चुका है‚ इंटरनेशनल चेम्बर ऑफ कॉमर्स के आर्बिट्रेशन कोर्ट ने एंट्रिक्स कॉर्प को २०११ में रद् हो गए एक उपग्रह समझौते में ड़ेवास के पक्ष मे १.३ अरब डॉलर का मुआवजा आदेश पारित किया था। एंट्रिक्स कॉर्प भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरा) की व्यावसायिक शाखा है। डे़वास के विदेशी हिस्सेदारों ने भारत के खिलाफ अमेरिका‚ कनाडा और कई जगहों पर मुकदमा कर रखा था। कनाडा में डे़वास के हिस्सेदारों के मुकदमे का नतीजा तब आया है जब भारत सरकार एयर इंडिया के टाटा ग्रुप को बेचने के सौदे के अंतिम चरण में है। टाटा ग्रुप का कहना है कि कंपनी को ऐसे दावों से बचाने के लिए समझौते में समुचित प्रावधान हैं। डेवास को जो भी धन मिलेगा‚ वह भारत सरकार को देना होगा और टाटा पर उसका कोई असर नहीं पड़ेगा। भारत की चिंता यह है कि कनाडा का मामला शुरु आत है। कई अन्य ऐसे ही मुकदमे अभी चल रहे हैं। पिछले साल भी भारत को इस जैसा झटका लगा था जब केयर्न एनर्जी ने फ़्रांस में ऐसा ही मुकदमा जीता था। हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने इस मामले में १.२ अरब डॉलर से भी ज्यादा के हर्जाने का हकदार घोषित किया था। बाद में भारत ने टैक्स कानूनों में बदलाव का ऐलान किया जिसका मकसद विदेशी कंपनियों के साथ जारी अरबों डॉलर के विवादों को खत्म करना था। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) का कहना है कि वह कनाड़ा की अदालत के आदेश को चुनौती देने के लिए कानूनी रास्ता अपना रहा है। एएआई के प्रवक्ता का कहना है कि‚ हमें इस मामले में कनाड़ा की क्यूबेक अदालत से कोई आदेश नहीं मिला है। प्रवक्ता के अनुसार ‘इस आदेश को चुनौती देने के लिए एएआई कानूनी रास्ता अपना रहा है। यह मामला इतना आसान नहीं है जितना लगता है कि उसे कानूनी बारीकियों में उलझा कर राहत पाई जा सके। जब विदेशी हिस्सेदारों वाली कंपनियों के साथ कोई काम किया जाए तो अतिरिक्त सतर्कता बरतनी होती है। अन्यथा जिस जिस देश में हिस्सेदार हैं वहां वहां कानूनी झंझटों का सामना करना पड़़ता है। विवादों के निपटारे का क्षेत्राधिकार इस तरह तय होना चाहिए कि एक ही स्थान पर मामले का निपटारा हो सके‚अन्यथा ऐसी समस्याओं का बार बार सामना करना पड़े़गा॥।
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