चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने गत ३० दिसम्बर को घोषणा की है कि उसने अरुणाचल प्रदेश के १५ स्थानों के नामों को अपने अनुसार चीनी‚ तिब्बती और रोमन वर्णमाला में मानकीकृत किया है। भारत और चीन के पहले से ही तनावपूर्ण रिश्तों को देखते हुए चीन के इस कदम को दुर्भाग्यपूर्ण कहा जाना चाहिए। चालबाज चीन की यह कार्रवाई बताती है कि अरुणाचल प्रदेश के भारतीय नामों को वह अपने आधिकारिक नक्शे में दिखा सकता है। हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने चीन की इस कार्रवाई पर कड़़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इससे जमीनी तथ्य नहीं बदल सकता। वास्तव में चीन ने पहली बार इस तरह की ओछी हरकत नहीं की है। उसने अप्रैल २०१७ में अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदलने का प्रयास किया था। चीनी अधिकारियों ने तब छह स्थानों का पहला बैच जारी किया था। उसी समय दलाई लामा ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था। ऐसा माना जाता है कि प्रदेश का नाम बदलने की कार्रवाई दलाई लामा के अरु णाचल प्रदेश के दौरे पर चीन की विरोध प्रतिक्रिया थी। नाम बदलने की सूची इस बार पहले की तुलना में ज्यादा लंबी है‚ जिसमें आठ शहर‚ चार पर्वत‚ दो नदी और एक पहाड़ी दर्रा शामिल है। इस नई सूची में अरुणाचल प्रदेश के २५ में से ११ जिले शामिल हैं‚ जिनमें पश्चिम में तवांग से दिबांग घाटी और पूर्व में अंजॉ है। इस तरह चीन की मंशा पूरे अरुणाचल प्रदेश में चीनी दावे को पूरा करना है। हालांकि चीन का यह कदम मुख्यतः प्रतीकात्मक है और जैसा कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इससे जमीनी तथ्य नहीं बदल सकता‚ लेकिन चीन के इस प्रयास को सीमा विवाद के परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। चीन अरुणाचल प्रदेश के नाम बदलने की कार्रवाई नये सीमा कानून के तहत कर रहा है जो इसी वर्ष १ जनवरी से लागू हो गया है। चीनी अधिकारियों का मानना है कि यह कानून चीन की क्षेत्रीय अखंडता को रक्षा करने में सहायक होगा। भारत ने इस कानून को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी। वास्तव में इस समय चीन को संयम से काम लेने की जरूरत थी। ऐसे अनावश्यक कदम से स्थिति और बिगड़़गी। सीमा पर पुराने समझौते को लेकर पारस्परिक संवदेनशीलता दर्शायी जानी चाहिए थी। चीन के इस कदम से दोनों देशों के बीच और अधिक शत्रुतापूर्ण माहौल बनेगा।
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