पिछले दिनों कानपुर के इत्र व्यापारी पीयूष जैन के यहां पड़़ा जीएसटी का छापा बहुत चर्चा में रहा। अभी भी इसे लेकर चर्चाएं जारी हैं। इस छापे में करीब ३०० करोडÃ रुûपये का ‘काला धन’‚ सोना‚ चांदी‚ चंदन और अन्य कीमती सामान पकडा गया था। चूंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव का माहौल है‚ और समाजवादी पार्टी के एक विधान परिषद सदस्य भी जैन हैं‚ और इत्र के व्यापारी हैं‚ इसलिए तथ्यों को जांचे–परखे बिना ही सत्ता पक्ष के नेताओं‚ मीडिया और भाजपा की आईटी सेल ने सोशल मीडिया पर इस मामले को समाजवादी पार्टी का भ्रष्टाचार कहकर उछालने में कोई कसर नहीं छोडी। इतना ही नहीं देश के प्रधानमंत्री तक ने कानपुर की एक जनसभा में इसे ‘भ्रष्टाचार का इत्र’ कह कर तालियां पिटवाइ। इसके बाद तो प्रदेश में राजनीति गरमा गई और भाजपा व समाजवादी पार्टी के बीच आरोप–प्रत्यारोप का दौर चल पड़़ा।
पीयूष जैन का मामला शायद सामने नहीं आता अगर गुजरात में कुछ दिनों पहले जीएसटी ने ‘शिखर पान मसाला’ ले जा रहे ट्रकों को न पकडा होता। इस ट्रक में पान मसाले के साथ करीब २०० फर्जी ई–वे बिल भी पकडे गए। इसके बाद डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलीजेंस (डीजीजीआई) के अधिकारियों ने कानपुर का रुख किया और वहां डेरा डाल दिया। जो ट्रक पकडा गया था वह प्रवीण जैन का था‚ जो इत्र कारोबारी पीयूष जैन के भाई अंबरीश जैन के बहनोई हैं। प्रवीण जैन के नाम पर करीब 40 से ज्यादा फॉर्म हैं। गौरतलब है कि प्रवीण जैन के यहां छापेमारी में ही पीयूष जैन का सुराग मिला। पीयूष जैन को जैसे ही छापे की खबर मिली तो वो भाग खड़े़ हुए। परिजनों के दबाव के बाद ही वह वापस लौट कर आए। पीयूष जैन के घर में छिपे हुए नोटों के बंडलों को देखकर जीएसटी की छापामार टीम की आंखें फटी की फटी रह गइ। शायद इन अधिकारियों ने इससे पहले ऐसी अकूत दौलत देखी नहीं थी।
इस छापे के ट्रेल को देखें तो यह एक सामान्य–सा छापा ही प्रतीत होता है। शुरुआती दौर में इस छापे में कोई भी राजनैतिक नजरिया नजर नहीं आता‚ लेकिन जैसे ही ‘जैन’ और ‘इत्र कारोबारी’ को जोडा गया तो वैसे ही अतिउत्साह में इसे समाजवादी पार्टी से भी जोड दिया गया और खूब शोर मचाया गया। भाजपा की सरकार में केंद्रीय मंत्रियों ने भी इस पर ट्वीट की झडी लगा दी। यहां बताना जरूरी है कि १९९१ में जब दिल्ली में हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी पकडे गए थे‚ तो उनकी जांच कर रही दिल्ली पुलिस और बाद में सीबीआई कई जगह छापे मारने के बाद ‘जैन बंधुओं’ के घर और फार्म हाउस तक पहुंची थी। वहां पर पडे छापे से एक डायरी (नम्बर दो के खाते) भी मिली‚ जिसमें आतंकवादियों के साथ–साथ हर बडे दल के तमाम बडे नेताओं और देश के कई नौकरशाहों के भी नाम के साथ भुगतान की तारीख और रकम लिखी थी। छापे में बरामद इतने बडे मामले की भनक जब तत्कालीन सरकार को लगी तो उस मामले को वहीं दबा दिया गया। १९९३ में जब यह मामला मेरे हाथ लगा तब मैंने इसे उजागर ही नहीं किया‚ बल्कि इसे सवाæच्च न्यायालय तक ले गया। यह मामला आगे चल कर ‘जैन हवाला कांड’ के नाम से चÌचत हुआ। इस कांड ने भारत की राजनीति में इतिहास भी रचा और कई प्रभावशाली नेताओं और अफसरों को सीबीआई द्वारा चार्जशीट किया गया। चूंकि इस घोटाले में कई बडे मंत्री‚ मुख्यमंत्री‚ विपक्ष के नेता और अफसर आदि शामिल थे‚ इसलिए सीबीआई ने चार्जशीट में इनके बच निकलने का रास्ता भी छोड दिया।
अब कानपुर के कांड में भी ऐसा ही होता दिखाई दे रहा है। दरअसल‚ जब जीएसटी के अधिकारियों को पीयूष जैन के यहां इतनी बडी मात्रा में नगदी और सोना–चांदी मिला तो जाहिर सी बात है कि आयकर विभाग को भी सूचित करना पडा। जब और जांच हुई और पीयूष जैन से पूछताछ हुई तो कई और राज खुले। यहां एक बात का जिक्र करना रोचक है कि हमारे वृंदावन को उत्तर भारत के व्यापारियों की सूचना का केंद्र माना जाता है। उत्तर भारत के अधिकतर व्यापारी श्री बांके बिहारी जी के मंदिर के दर्शन के लिए लगातार आते रहते हैं‚ और व्यापार में तरक्की की मुराद मांगते हैं। इन सभी व्यापारियों के वृंदावन में तीर्थ पुरोहित या पंडे होते हैं। जिस दिन से कानपुर में यह छापा पडा है‚ उसी दिन से बिहारी जी के पंडों के बीच लगातार यह बातचीत और चर्चा हो रही है कि पीयूष जैन के बारे में कानपुर के अन्य व्यापारियों ने बताया था कि पीयूष जैन तो एक लंबे अरसे से भाजपा और संघ को बडी मात्रा में धन और साधन प्रदान करता आया है। इसके यहां तो छापा गलती से पड गया। संभवतः अधिकारी नाम के फेर में गलती कर बैठे।
यहां पर वो कहावत–जो दूसरों के लिए कुआं खोदता है‚ वो खुद खाई में गिरता ही है–सही साबित होती है। अधिकारियों को समय रहते उसके भाजपाई होने का पता चल जाता तो शायद यह छापा ही न पडता। जानकारों की मानें तो इस मामले को भी जल्द ही दबाया जाएगा। अखबारों से ऐसा पता चला है कि अब इस छापे में बरामद हुई भारी नगदी को अहमदाबाद के जीएसटी विभाग ने ‘टर्नओवर’ की रकम मान लिया है। हालांकि इस बात की कोई औपचारिक पुष्टि नहीं हुई है‚ लेकिन ऐसा हो रहा है तो टैक्स के जानकारों के मुताबिक यह भ्रष्टाचार के प्रति अधिकारियों की रहमदिली की पहली सीढी है। इस ‘टर्नओवर’ में ३१.५० करोड रुपये की टैक्स चोरी की बात कही जा रही है। टैक्स चोरी की पेनाल्टी और उस पर ब्याज मिलाकर यह रकम करीब ५२ करोड रुपये हो जाती है। ऐसे में पीयूष जैन केवल टैक्स और पेनाल्टी की रकम अदा कर जमानत पर रिहा हो सकते हैं। पेनाल्टी की रकम जमा होने पर आयकर विभाग भी इस ‘काले धन’ के मामले में कार्रवाई नहीं कर पाएगा। पीयूष जैन का फिर सारा तथाकथित ‘काला धन’ पेनाल्टी की गंगा नहा कर सफेद हो जाएगा। जैसी कि चर्चा हो रही है कि यह सारा ‘काला धन’ जिन लोगों का है‚ उनकी भी चांदी हो जाएगी। मगर सोचने वाली बात यह है कि जब नोटबंदी से काले धन की समाप्ति का दावा किया गया था तो यह काला कहां से आ गयाॽ भाजपा जिसे ‘भ्रष्टाचार का इत्र’ कहने लगी थी वह रातों–रात ‘टर्नओवर’ में कैसे बदल गयाॽ