वर्ष के अंत में आर्थिक आकलन किया जाए‚ तो साफ यह होता है कि 2021 जिन बड़ी समस्याओं को नये साल २०२२ को सौंपकर जाएगा‚ उनमें से महंगाई एक बड़ी समस्या होगी। इसकी एक बड़ी वजह ओमीक्रोन जनित आशंकाओं में छिपी है। ओमीक्रोन की वजह से आपूर्ति श्रृंखला भंग ना हो‚ इसके लिए कंपनियों ने तैयारियां करना शुरू किया है। कच्चे तेल के भावों में अगर बड़ी कमजोरी नहीं है‚ तो देर–सबेर समग्र महंगाई के आंकड़े ऊपर का ही रु ख दिखाते हैं। बड़ा मसला यह हो गया है कि तमाम लागतों में बढ़ोतरी के चलते कंपनियों ने अपने उत्पादों की कीमतें हाल के समय में एक बार नहीं‚ कई बार बढ़ाई हैं। जब आटा‚ चावल‚ चीनी‚ टूथपेस्ट‚ साबुन‚ वाशिंग पाऊडर खरीदने जाएं‚ तो पता लगता कि महंगाई सिर्फ पांच सात प्रतिशत नहीं बढ़ी है। बल्कि महंगाई में दस से बीस फीसद का इजाफा हुआ है। मोबाइल की कीमतों में इजाफा हुआ है। कुल मिलाकर आम आदमी का जीवन महंगाई में दुश्वार हुआ है‚ और यह दुश्वारी उस आकलन से ज्यादा है‚ जितनी सरकार और आधिकारिक एजेंसियां करती हैं। २०२२ का साल तमाम अनिश्चितताएं लेकर आने वाला है। सबसे बड़ी अनिश्चितता तो ओमीक्रोन को लेकर ही है। ओमीक्रोन वायरस एक बड़ी चुनौती के तौर पर उभर सकता है‚ इसका अंदाज तो केंद्र सरकार को भी है। इसलिए किशोरों की वैक्सीन और बूस्टर डोज को लेकर हाल में अहम फैसले लिये गए हैं। महंगाई के सवालों से जूझती आम जनता की दूसरी बड़ी दिक्कत यह है कि आय के साधनों में विस्तार नहीं हुआ है। पर्यटन‚ होटल के धंधों को थोड़ी बहुत उम्मीद जगी थी‚ तो वो तमाम राज्यों के नाइट कफ्र्यू और ओमीक्रोन की आशंकाओं ने धूमिल कर दी है। शादी अपने आप में बड़ा कारोबार है‚ जिससे कई किस्म के रोजगार पैदा होते हैं। पर ओमिक्रोन की आशंकाओं के चलते कई राज्यों में शादी में शामिल होने वाले लोगों की संख्या पर प्रतिबंध लग रहे हैं। अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले राज्य महाराष्ट्र में ओमीक्रोन का प्रकोप गहरा है। तो कुल मिलाकर हालात जो कुछ समय पहले तेजी से सामान्य होते दिख रहे थे‚ अब फिर आशंकाओं के अंधेरे में जा रहे हैं। महंगाई को लेकर सरकार को चिंतित होना चाहिए क्योंकि कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। धर्म और जाति के नाम पर चाहे जितने चुनाव लड़े जाएं‚ पर चुनाव में महंगाई की अपनी भूमिका होती है। केंद्र सरकार को स्थिति का उचित आकलन करना चाहिए।
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