संसद का शीतकालीन सत्र हंगामेदार रहा और तय समय से एक दिन पहले समाप्त हो गया। शीतकालीन सत्र २९ नवम्बर से शुरू हुआ था और इसे २३ दिसम्बर तक चलना था। बुधवार की सुबह लोक सभा में अध्यक्ष ओम बिरला और राज्य सभा में सभापति एम वेंकैया नायडू़ ने कार्यवाही शुरू होते ही अपने–अपने संक्षिप्त वक्तव्यों के बाद बिना किसी विधायी कामकाज के सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी। सत्र के दौरान विपक्ष ने लखीमपुर खीरी और अन्य मुद्दों पर दोनों सदनों में हंगामा किया। हंगामे की हालत यह थी कि पीठासीन अधिकारी पूरे समय व्यवस्था बनाए रखने आग्रह करते रहे और सत्ता और विपक्ष में कोई सहमति न बन सकी। बार–बार के व्यवधान और हंगामे के कारण लोक सभा में ८२ प्रतिशत और राज्य सभा में केवल ४८ प्रतिशत काम ही हो सका। हंगामे के कारण राज्य सभा के ५० घंटे तो लोक सभा के १९ घंटे बर्बाद हुए यानी दोनों सदन अपनी क्षमता से बहुत कम काम कर पाए। अलबत्ता‚ तीन कृषि कानूनों की वापसी और चुनाव सुधाार विधेयक पारित करा लेना सरकार की बड़़ी उपलब्धि रही। वैसे सत्र के दौरान दोनों सदनों में ११ विधेयक पारित किए गए। अध्यादेश के स्थान पर लाए गए तीन महत्वपूर्ण विधेयक भी पारित हुए। लोक सभा सत्र की शुरुआत सकारात्मक रही; जब सरकार ने पहले दिन ही तीनों विवादास्पद कृषि कानून वापस ले लिये‚ लेकिन राज्य सभा में पहले ही दिन विपक्ष के १२ सदस्यों‚ जिन्हें मानसून सत्र में उनके आचरण के लिए निलंबित किया गया था‚ को शीतकालीन सत्र के लिए भी निलंबित रखते हुए विपक्ष से टकराव मोल ले लिया। इसके बाद को उच्च सदन में इन सदस्यों के निलंबन की वापसी के लिए हर दिन हंगामा हुआ‚ लेकिन सत्ता पक्ष इन सदस्यों द्वारा अपने आचरण के लिएमाफी मांगे जाने पर अड़़ा रहा। विपक्ष का कहना रहा कि इनने कुछ गलत नहीं किया तो माफी किस बात की! गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के इस्तीफे की मांग को लेकर भी जोरदार हंगामा रहा। उच्च सदन में सत्र समापन से दो रोज पहले टीएमसी के नेता डे़रेक ओ ब्रायन को उनके आचरण के लिए निलंबित किया गया। बहरहाल‚ संसद के दोनों सदनों के सदस्यों द्वारा गैर–जिम्मेदाराना रवैया‚ हंगामा और स्थगन का चलन किसी भी लिहाज से उचित नहीं है।
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