एनड़ीए के घटक ‘हम’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी पिछले दिनों से लगातार बयान दे रहे हैं‚ लेकिन उनके बयानों के बाद भी एनड़ीए के घटक भाजपा–जदयू कोई कार्रवाई नहीं कर रहे। खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो इस पूरे मामले में चुप्पी साधे हैं। जीतन राम मांझी ने पिछले दिनों ब्राह्मण समुदाय के लिए अपशब्द कहे थे। बाद में मामला बिगडा और मांझी राजनीतिक गलियारे में चौतरफा आलोचनाओं से घिरे तो उन्होंने बयान पर माफी मांगते हुए सफाई में कहा कि उन्होंने अपने समुदाय मुसहर भुइयां को गाली दी थी। लेकिन इस दौरान उन्होंने फिर से हिंदू देवी–देवताओं के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया।
ऐसा नहीं है कि मांझी कोई पहली बार अपनी बेतुकी टीका–टिप्पणियों पर सुर्खियां बटोर रहे हों। पिछले सप्ताह ही उन्होंने बिहार में शराबबंदी को फेल करार देते हुए यहां तक कह दिया था कि राज्य के बडे अधिकारी और प्रभावशाली लोग रोज रात के १० बजे के बाद शराब पीते हैं। वहीं‚ कुछ साल पहले उन्होंने सवर्ण समुदाय को विदेशी बताकर विवाद खडा कर दिया था। ऐसे में बडा सवाल है कि आखिर मांझी के अटपटे बयानों के बाद भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं करतेॽ यहां तक कि राजग गठबंधन में मांझी का कद भी बढ गया। वे खुद तो पूर्व सीएम के नाते सुविधाओं का मजा ले ही रहे हैं उनके बेटे भी राज्य सरकर में मंत्री हैं। भले खुद को वे मुसहर समाज का प्रतिनिधि चेहरा बताते हों लेकिन उनकी किसी पहल से अब तक मुसहर समाज को कोई बडा फायदा हुआ हो– इसका प्रमाण नहीं है। यहां तक कि उनके समाज से आने वाले कई नेता भी मानते हैं कि जीतन राम की जाति की राजनीति सिर्फ उनके अपने फायदे तक सीमित रही है।
सवाल यह भी है कि अगर कोई अन्य जाति का व्यक्ति इसी तरह से जातिसूचक शब्दों का प्रयोग या जाति को गाली देता तो उसके खिलाफ एससी/एसटी उत्पीडन की धाराओं में मामला दर्ज हो गया होता। आखिर यही नियम मांझी पर क्यों न लागू होॽ इतना ही नहीं‚ जिस तरह उन्होंने शराबबंदी के बाद अधिकारियों पर शराब पीने के आरोप लगाए हैं तो उस पर भी उनके खिलाफ कोई मामला क्यों नहीं दर्ज हुआ हैॽ कहीं ऐसा तो नहीं कि सुविधा की राजनीति के लिए मांझी के ‘१०० खून माफ’ वाली स्थिति बन गई। आम तौर पर अपने नेताओं के बेतुके बयानों पर सख्ती दिखाने वाले नीतीश कुमार भी साझीदार मांझी पर मेहरबान दिखते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो नीतीश की महत्वाकांक्षी शराबबंदी योजना पर सवाल उठाने वाले मांझी को नोटिस जारी हो गया होता।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका बडा कारण भी मांझी का दलित समुदाय से आना है। नीतीश कुमार हों या राजग के अन्य घटक दल –सबके–सब खुद को दलित समुदाय का हितैषी बताते हैं। ऐसे में अगर मांझी के खिलाफ कार्रवाई होती है तो वे इसे दलित कार्ड के तौर पर खेल सकते हैं। इतना ही नहीं‚ अगर मांझी राजग से अलग होते हैं तो विपक्षी दल राजद और कांग्रेस की ओर से उन्हें खुला ऑफर मिल सकता है। यह भविष्य की राजनीति में राजग के घटक दलों के लिए गले की फांस बन सकता है। इस ‘डर’ का फायदा जमकर जीतन राम मांझी उठाए हुए हैं। मांझी राजग से अलग होते हैं तो विपक्ष से उन्हें मिल सकता है खुला ऑफर‚ इसी ‘ड़र’ का फायदा उठाए हुए हैं।