2015 के विधानसभा चुनाव के वक्त राजद– जदयू–कांग्रेस के सियासी गठबंधन‚ जिसे महागठबंधन कहा गया था‚ का मुख्य नारा था ‘बिहार में बहार है‚ नीतीशे कुमार है।’ संभवतः इस नारे की रचना प्रशांत किशोर की चुनावी टीम ने की थी‚ जो उस वक्त महागठबंधन के लिए काम कर रही थी। इस घटना के अब छह साल से अधिक हो गए हैं। इस बीच नीतीश कुमार 2000 के चुनाव उपरांत भी मुख्यमंत्री बन कर आए‚ लेकिन चुनाव में उनकी पार्टी तीसरे नंबर पर रही और उनका राजनीतिक इकबाल लगभग ध्वस्त हो गया। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में तो राजद थी‚ लेकिन उससे केवल एक कम भाजपा थी। संख्या के हिसाब से जद (यू) भाजपा से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ी थी‚ लेकिन जीत कर भाजपा उसके मुकाबले बहुत अधिक सीटों पर आई। जद (यू) के ४३ के मुकाबले भाजपा के ७४ विधायक चुन कर आए। भाजपा की विवशता थी कि वह नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाए‚ अन्यथा वह राजद खेमे में जा सकते थे। राजद से नीतीश को दूर रखने के लिए भाजपा ने नीतीश को मुख्यमंत्री के रूप में अंगीकार किया। हर बात में नैतिकता की दुहाई देने वाले नीतीश कुमार ने कभी नहीं कहा कि जनादेश भाजपा को मुख्यमंत्री बनाने का है। हमारी पार्टी सहयोगी पार्टी के तौर पर मंत्रिमंडल में शामिल होगी। भाजपा अपनी और बिहार की राजनीतिक विवशता समझती है। उसने सीने पर पत्थर रख कर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री तो स्वीकार कर लिया‚ लेकिन एक कसक रह गई। बिहार की राजनीति में इस कसक की पीड़ा कभी–कभार उभरती रहती है।
ऐसा ही अभी हाल में हुआ। नीति आयोग द्वारा जारी एक आंकड़े के अनुसार बिहार विकास के अधिकांश मामलों में फिसड्डी है। पढाई‚ दवाई‚ प्रति व्यक्ति आय से लेकर जीवन स्तर के सभी मामलों में इसका पीछे रहना राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय रहा। नीतीश कुमार के शाइनिंग बिहार और बहारे–बिहार का नकाब एकबारगी उतर गया। नीतीश और उनकी पार्टी बैकफुट पर आ गए। किरकिरी हुई। विधानसभा के शरद सत्र में कोहराम हुआ। और इन सब के बाद जब नीतीश स्थिर हुए‚ तब उनकी पार्टी ने एकबार फिर विशेष राज्य के दरजे का सवाल उठाया। यह सवाल वह पिछले दस वर्षों से लगातार उठाते आ रहे हैं। इसे लेकर उन्होंने एक समय दिल्ली में राजनीतिक अभियान भी चलाया था। आजादी की मांग की तरह उन्होंने इस मांग को अपनी राजनीति का केंद्रक बना लिया लिया था‚ लेकिन अफसोस सब टायं–टायं फिस्स हो गया। कोई प्रतिफल नहीं निकला। उन्हें उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी इस तरफ सकारात्मक कुछ विचार करेंगे‚ लेकिन कुछ नहीं हुआ। अब नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को अनुभव हो रहा है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने जान–बूझकर उन्हें मुश्किल में डालने के लिए नीति आयोग का मूल्यांकन रिपोर्ट जारी करवाया है। नीतीश ने इसे लेकर एक दांव खेला। नीति आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए उन्होंने एक बार फिर विशेष राज्य के दर्जे की मांग की।
नीतीश का कहना है कि यदि बिहार सभी मामलों में पीछे है तो इसका मतलब है कि इसे स्पेशल ट्रीटमेंट चाहिए और इसके मद्देनजर हमारा विशेष राज्य के दरजे की मांग बिल्कुल जायज है। अब भाजपा की बारी थी। लम्बे समय से पीड़ा झेल रही भाजपा की उप मुख्यमंत्री रेणु देवी ने जद (यू) की इस मांग का विरोध किया। उनके अनुसार बिहार को केंद्र सरकार से विकास के लिए पर्याप्त राशि मिलती रही है। तब इसका निहितार्थ क्या यह है कि नीतीश सरकार उस रकम का सक्षम ढंग से इस्तेमाल नहीं करतीॽ क्योंकि तब तो केवल कुप्रबंधन और कुशासन ही बिहार की बेहाली का कारण हो सकता है। यह एनडीए की आपसी तू–तू मैं–मैं‚ लेकिन पत्रकारों से रूबरू होते जब मुख्यमंत्री से इस मामले पर सवाल किया गया तो वह हत्थे से उखड गए। अपने ही महिला मुख्यमंत्री पर उनकी टिपण्णी हुई कि उन्हें कुछ पता नहीं रहता है। पिछले दिनों भाजपा की ही एक महिला विधायक को सुंदर कह कर मुख्यमंत्री मुश्किल में पड़ गए थे। इस दफा महिला उप मुख्यमंत्री को अनाड़ी कह कर उन्होंने फिर से मुसीबत मोल ली है। हालांकि नीतीश को यह अच्छी तरह पता है कि भाजपा विवश है। उसकी हिम्मत नहीं कि वह उन्हें सत्ता या गठबंधन से बाहर रखे।
बिहार से सटे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव है। कुछ अन्य राज्यों में भी है। ऐसे में भाजपा बिहार में कोई नया खेल खेलने का जोखिम लेगी‚ इस पर विश्वास करना मुश्किल है‚ लेकिन जदयू–भाजपा के मध्य विकसित यह कटुता किसी न किसी रूप में बिहार की राजनीति को प्रभावित तो करेगी। भाजपा –जदयू की तू–तू मैं–मैं के बीच नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने दूर दिल्ली में चुपचाप एक मौन–क्रांति कर दी। पिछले ९ दिसम्बर को बिना किसी शोर– शराबे के पारिवारिक जनों के मध्य जाति–धर्म की चारदीवारियों को एक झटके में तोड़कर उन्होंने अपनी मित्र रेचल संग विवाह रचा लिया। जातपात और अपने दकियानूसी आचरणों केलिए बिहार की देश भर में चर्चा होती रही है। नीति आयोग की तमाम रपटें चाहे बिहार को जितना फिसड्डी बतलावे; तेजस्वी ने बता दिया कि बिहार के नौजवान क्या और कैसी सोच रखते हैं। कुछ यही कारण रहा कि बिहार की युवा पीढी ने पूरे उल्लास के साथ इस विवाह का स्वागत किया। स्वागत करने वालों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा नेता सुशील मोदी सबसे आगे रहे। किसी को कोई निमंत्रण नहीं था‚ लेकिन मुख्यमंत्री ने सरकारी वक्तव्य जारी कर वर–वधू को बधाई दी। सोशल मीडिया इस विवाह की खबरों से कई दिनों तक भरे रहे।
तेजस्वी बार–बार समाजवादी विरासत को एक आवेग देने की बात अपने राजनीतिक अभियानों में कर रहे थे। अपने विवाह से उन्होंने इस दिशा में एक सार्थक संदेश देने की कोशिश की है कि वह पिछली पीढ़ी से पृथक सोच रखते हैं और बदलती दुनिया की धड़कन और मनोमिजाज से वाकिफ हैं। फिलहाल बिहार के राजनीतिक–सामाजिक परिदृश्य पर सबसे ऊपर इस विवाह की उत्साहजनक चर्चा है। सचमुच बिहार में बहार है।