साहित्य अकादमी‚ नयी दिल्ली के तत्वावधान में ‘आचार्य श्रीरंजन सूरिदेवः व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद आयोजित किया गया। श्रीरंजन सूरिदेव के तैल चित्र पर सामूहिक पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम का उद्घाटन हुआ। समारोह के संयोजक अभिजीत कश्यप ने अतिथियों का परिचय कराया तथा अतिथियों को पुष्पगुच्छ एवं अंगवस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व अध्यक्ष प्रो. नंदकिशोर पांडेय ने की। मुख्य अतिथि बिहार विधान परिषद् के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने कहा कि आज टेक्नोलॉजी का युग है। अगर हिंदी टेक्नोलॉजी से जुड रही है तो यह बडी बात है। उन्होंने कहा कि भले ही राजनीतिक राजधानी दिल्ली है‚ लेकिन जब भी साहित्यिक राजधानी की बात होगी तो पटना और बनारस ही अग्रणी होगा। श्री सिंह ने कहा कि बिहार में साहित्यकारों की बडी परम्परा रही है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर से ले कर श्रीरंजन सूरिदेव का जन्म इसी धरती पर हुआ है। राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह से जुडे संस्मरणों को सुना कर उन्होंने अपनी वाणी को विराम देते हुए आश्वासन दिया कि आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव जी के ‘शब्दकोश’ के प्रकाशनार्थ जो भी सहयोग होगा‚ वह जरूर किया जाएगा॥। अध्यक्षीय संबोधन में केंद्रीय हिंदी संस्थान‚ आगरा के पूर्व अध्यक्ष प्रोनंद किशोर पांडेय ने कहा कि भारत ने विश्वगुरु की परंपरा का निर्वहन किया है। बिहार की सरजमीं से जिन साहित्यकारों का उदय हुआ‚ उन सभी को नमन करते हुए उन्होंने कहा कि श्रीरंजन सूरिदेव को राहुल सांकृत्यायन और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की परंपरा में देखा जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि आचार्य जी को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें अपने आसन से नीचे उतरकर उन्हें सम्मानित किया था। प्रो. पांडे ने आगे कहा कि उनकी जो पांडुलिपियां अभी प्रकाशनार्थ पडी हुई हैं‚ उन्हें अतिशीघ्र प्रकाशित कराया जाना चाहिए। बाल साहित्य पर उन्होंने आठ पुस्तकें लिखीं।
इस अवसर पर बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रो. अरुण कुमार भगत ने कहा कि रचनात्मकता की त्रिवेणी श्रीरंजन सूरिदेव के व्यक्तित्व में दिखाई पडती थी। भाषा की ष्टि से वे ‘त्रिभाषा परम्परा’ के प्रतीक पुरुष थे। उन्होंने कहा कि उनके साहित्यिक आदर्श शिवपूजन सहाय‚ नलिन विलोच शर्मा और लक्ष्मी नारायण सुधांशु थे। वे वैदिक ज्ञान परम्परा‚ बौद्ध दर्शन और जैन चिंतन के प्रकांड अध्येता रहे। उन्होंने जानकारी दी कि राजकुमार पाठक नाम उन्हें घर से मिला‚ परन्तु श्रीरंजन सूरिदेव नाम। प्रो. भगत ने कहा कि वे सम्पादकों के सम्पादक थे इसीलिए उन्हें सम्पदाकाचार्य भी कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि ‘मौलिकता के विसर्जन’ का सिद्धान्त श्रीरंजन सूरिदेव ने ही प्रतिपादित किया था। ‘मेघदूतः एक अनुचिंतन’ उनकी कालजयी रचना है। दो दर्जन से अधिक पुस्तकें उनकी प्रकाशित है। बिहार विधान परिषद् के सदस्य राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने इस अवसर पर कहा कि आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव के साथ उनका व्यक्तिगत सम्बन्ध रखते‚ वे देखने में जितने सुंदर थे‚ उससे कहीं ज्यादा उनके व्यक्तित्व में गहराई थी जो उनके साहित्य में दिखती है। उन्होंने कहा कि श्रीरंजन सूरिदेव और आरसी प्रसाद सिंह बिहार की साहित्यिक विभूतियां हैं। आज यह समय आ गया है कि हमें हिंदी को वह गौरव दिलाना है जिसकी वह हकदार है। उन्होंने इसी क्रम में कहा कि मैथिली लिपि लुप्त होती जा रही है। मोबाइल में आ रही नयी तकनीकों ने लिखने–पढने की परंपरा पर चोट की है। उन्होंने कहा कि आज पाश्चात्य जीवन दर्शन को जीने वाले हिंदी का साहित्य सृजित कर रहे हैं‚ इनके विचार भारतीय चिंतन–दर्शन से दूर दिखाई पडते हैं‚ आचार्यजी जैसे रचनाकारों की आज अत्यधिक आवश्यकता है। एएन कॉलेज के प्रधानाचार्य शशि प्रताप शाही ने कहा कि साहित्य अकादमी का कार्यक्रम महाविद्यालय में होना‚ यह अपने आप में गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि आधुनिक हिंदी के शिल्पी श्रीरंजन सूरिदेव की चर्चा किये बिना हिंदी साहित्य की कल्पना अधूरी है। अपनी बातों को बढाते हुए उन्होंने कहा कि उनका संस्कृत‚ हिंदी और प्रात पर समान अधिकार था। साहित्य आकदमी‚ नयी दिल्ली के सहायक सम्पादक डा. अजय शर्मा ने कहा कि हम देशभर में ऐसे कर्यक्रम करते रहते हैं‚ ताकि नयी पीढी जागरूक हो सके। उन्होंने कहा कि श्रीरंजन सूरिदेव का कर्मक्षेत्र बिहार की धरती थी इसीलिए इस कार्यक्रम का आयोजन पटना में किया जा रहा है।