कोविड के नये स्वरूप ओमीक्रॉन को वेरिएंट ऑफ कन्सर्न (वीओसी) करार दिया गया है। इसमें कुछेक म्यूटेशंस ही हैं‚ जो पूर्व स्वरूपों बीटा (बी.१.३५१) तथा लेम्बडा (सी.१.३७) पाए गए थे। कोविड के मौजूदा टीके डेल्टा (बी. १.६१७.२) समेत अन्य वीओसी पर कुछ कम प्रभावी पाए गए हैं‚ लेकिन असरकारक हैं। ऐसे में लगता है कि ओमीक्रॉन प्रतिरोधक क्षमता पर भारी पड़ सकता है। यह सच हो भी सकता है‚ और नहीं भी। इसे लेकर और ज्यादा अध्ययन और परीक्षण किए जाने की जरूरत है‚ लेकिन यह अवसर जरूर है कि कोविड के टीकों को लेकर मौजूदा वैश्विक चुनौतियों‚ टीकों की उपलब्धता‚ टीकाकरण आदि पर गहराई से नजर डाल ली जाए। ॥ एक और वीओसी के आने के बाद से बूस्टर खुराक दिए जाने की जोर–शोर से मांग उठने लगी है। कुछ देश बूस्टर डोज देने पर विचार कर रहे हैं और कुछ अन्य अपनी अतिरिक्त आबादी को यह खुराक देना चाहते हैं। सच यह है कि सार्स–सीओवी–2 के फैलाव और नये स्वरूपों को आने से रोकने के लिए कुछ लोगों को बूस्टर खुराक दे देने से ही काम नहीं चलेगा‚ बल्कि बेहद जरूरी है कि हर किसी को एक डोज तो तत्काल लग ही जाए‚ और फिर दूसरा डोज लगे। ओमीक्रॉन सबसे पहले दक्षिण अमेरिका और बोत्सवाना से रिपोर्ट किया गया। (हालांकि अब खबर आ गई है कि यह दक्षिण अमेरिका से 11 दिन पहले यूरोप के देश नीदरलैंड में पाया गया था। अमेरिका महाद्वीप में कुल जनसंख्या के मात्र 7 फीसद हिस्से का ही पूर्ण टीकाकरण हुआ है। दूसरी तरफ‚ अनेक धनी देशों में इससे दस गुना लोगों का पूरी तरह टीकाकरण किया जा चुका है।
टीकाकरण में यही असंतुलन है‚ जो इस महामारी के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर रहा है। इसलिए बूस्टर खुराक देने की तरफ बढ़े तो वे लोग वंचित रह सकते हैं‚ जिन्हें पहले और दूसरे डोज दिए जाने सबसे जरूरी है। बूस्टर लगाने इस प्रकार टीकाकरण में असमानता की खाई और चौड़ी हो जाएगी और वैरिएंट के उभरने के सम्भावना बनी रहेगी। बेशक‚ भारत में टीकों की मांग की तुलना में आपूर्ति की स्थिति बेहतर है‚ लेकिन मात्र इसी के चलते तो बूस्टर डोज देने की तैयारी नहीं की जा सकती। हमारा ध्यान सबसे पहले उन लोगों पर होना चाहिए जिन्हें पूरी तरह से टीकाकरण की सबसे ज्यादा जरूरत है। ये वे लोग हैं जिनकी आयु साठ से ज्यादा और ४५–५९ वर्ष के बीच के वो लोग जिन्हें कोई अन्य बीमारी है। इनमें से ४५ फीसद ऐसे हैं‚ जिन्हें अभी तक पहली या दोनों ही खुराक नहीं मिली हैं। देखा गया है कि किसी टीके की बूस्टर डोज (जब भी जरूरी हो) पूर्व में ली जा चुकी टीके के प्रकार से भिन्न होने पर बेहतर असर करती है। ब्रिटेन ने अपने यहां लोगों को शुरुआती समय में ऑक्सफोर्ड–एस्ट्राजेनिका टीका लगाया (जो भारत में कोविशील्ड के नाम से मिलती है) जबकि बूस्टर डोज मॉर्डना या फाइजर द्वारा बनाए गए म–आरनए आधारित टीके देने का निर्णय लिया है। ये मॉर्डना और फाइजर टीके अभी तक भारत में उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि इसे बनाने वाली कंपनी ने वैधानिक सुरक्षा मांगी है‚ जिस पर अभी तक भारत सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है। भारत को तत्काल इन दोनों टीके के निर्माताओं के फिर बातचीत करनी चाहिए ताकि यह टीका भी देश में एक विकल्प से रूप में उपलब्ध हो जाए।
धनी देश टीकों का अंबार लगाए हैं‚ और बूस्टर डोज दे रहे हैं जबकि निम्न तथा निम्न–मध्यम आय वाले देशों में गरीबों बल्कि स्वास्थ्यकर्मियों तक को पहली डोज नहीं मिल सकी है। ऊपर से‚ टीका बनाने वाली कंपनियां भले ही दावा करती रहें कि टीकों के दामों को न्यायसंगत रखा गया है और धनी देशों से ज्यादा दाम ले रहे हैं‚ लेकिन वास्तविकता ठीक इसके उलट है। बोत्सवाना को फाइजर–बायोएनटेक वैक्सीन के लिए प्रति डोज २९ डॉलर देना पड़ा जो यूरोपीय देशों द्वारा प्रति डोज दिए गए दाम से दस गुना से भी ज्यादा है। यह अंतर न केवल नैतिक और पेशेवराना तकाजे से गलत है‚ बल्कि इससे आने वाले वर्षो में ज्यादा दाम देने को विवश देशों की वित्तीय स्थिति तक चरमरा सकती है। इन चुनौतियों से निबटना संभव है। अक्टूबर‚ २०२० में भारत और दक्षिण अमेरिका ने संयुक्त रूप से विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के समक्ष एक प्रस्ताव रखा था। इसमें कोविड टीकों के लिए‚ जब तक वैश्विक महामारी है‚ बौद्धिक संपदा अधिकार में अस्थायी रूप से छूट देने की बात कही गई थी। इस प्रस्ताव के समर्थन में लगभग सौ देश आगे आए है। टीका निर्माताओं को स्वैच्छिक लाइसेंसिंग और प्रौद्योगिकी अंतरण के महत्व को समझना चाहिए ताकि बड़े स्तर पर डोज का निर्माण किया जा सके। विश्व में ज्यादा से ज्यादा टीकों की जरूरत है–मात्रा और प्रकारों‚ दोनों लिहाज से। सभी को समयबद्ध तरीके से और बिना भेदभाव के लगने चाहिए।
कोवेक्स भी एक पहलू है‚ जो अपने वैश्विक उद्देश्य को पूरा करने में दिक्कतों के पसोपेश है। कुछ महीनों पहले इसको २०२१ के लिए टीका उपलब्धता के अपने पूर्वानुमान को कम करना पड़ा था। ओमीक्रॉन के खतरे को देखते हुए धनी देशों द्वारा अपने लोगों को प्राथमिकता देने से‚ संभव है कि कोवेक्स को इतने मिलें। तमाम देशों के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं के पूरा करने का यही समय है। अपने वादे निभाने के लिए टीकों की बहुलता वाले देशों को टीकों के अपने अंबार में से अन्य देशों को टीके देने चाहिए।
नये वेरिएंट्स के उभार से कम–टीकाकरण वाले देशों में कोविड वैरिएंट हावी हो सकता है‚ और इन देशों को कोविड से कभी न खत्म होने लड़ाई का सामना करना पड़ सकता है। इस महामारी से दुनिया भर के देश एकजुट होकर ही लड़ सकते हैं। सभी को टीके लगाने होंगे। टीकाकरण में असमानता से बात बिगड़ेगी। नवीनतम सार्स–सीओवी–२ वीओसी का नाम रखने में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने २४ ग्रीक ककहरा में से १५वें का इस्तेमाल किया है। कोई नहीं चाहेगा कि नये–नये स्वरूपों के नामकरण में वह इस समूचे समुच्चय से गुजरे। इतिहास देशों और उनके नेताओं को यकीनन इस बात से आंकेगा कि क्या उन्होंने वैक्सीन समानता के लिए योगदान दिया (या नहीं दिया) ताकि कोविड महामारी को थामा जा सके। समय तेजी से गुजर रहा है‚ हमें अभी और तत्काल इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।