इसी को कहते हैं खामखां का वितंडा खड़ा करना। कंगना जी ने आजादी की तारीख जरा सी दुरुस्त क्या कर दी‚ मोदीविरोधी न जाने क्या–क्या कहने पर उतर आए हैं। और तो और कंगना जी के पद्मश्री को इस हाथ ले और उस हाथ दे का ही मामला बनाए दे रहे हैं––इधर मोदी जी ने पद्मश्री दिया‚ उधर कंगना जी ने आजादी की तारीख में करैक्शन कर दिया! इसे स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान बता रहे हैं‚ सो पर से। पर इतनी मोटी बात इनकी समझ में क्यों नहीं आती कि नया इंडिया बन रहा है‚ तो उसकी आजादी की तारीख भी तो नई चाहिए। कब तक हम उसी १५ अगस्त १९४७ से चिपके रहेंगे!
कंगना की हिम्मत की तो तारीफ की जानी चाहिए। आजादी की तारीख में करेक्शन करने की तो पहले भी कई कोशिशें हुई हैं। कोई दूसरी–तीसरी आदि‚ आदि आजादियों की खोज करता था‚ तो कोई असली‚ सच्ची आदि‚ आदि आजादियों की। उसमें प्राब्लम ये थी कि आजादी की नई तारीखें तो आती थीं‚ पर पुराने वाली तारीख भी खड़ी रहती थी। नई तारीख‚ कर ले कम्पटीशन नेहरू जी‚ गांधी जी वाली पुुरानी तारीख से! पर कंगना जी ने पुरानी वाली आजादी का झंझट ही निपटा दिया। दो–टूक एलान कर दिया कि आजादी वही जिसने मोदी जी का राजतिलक कराया। बाकी सब झूठ है। भीख की आजादी भी कोई आजादी है‚ लल्लुओ! और हां! कंगना जी के खिलाफ भाजपा युवामोर्चा वाली रुचि पाठक को खड़ा करने की कोशिश कोई नहीं करे। क्या हुआ कि झांसीवाली रुचि की खोज कहती है कि नेहरू–गांधी ने १९४७ वाली आजादी ब्रिटिश ताज से ९९ साल के पट्टे पर ली थी‚ जबकि नई झांसी वाली रानी की रिसर्च बताती है कि वो वाली आजादी के भीख में मिली थीॽ दोनों झांसीवालियां इस पर तो एकमत हैं कि १९४७ वाली आजादी कोई अंगरेजों से लड़–झगड़कर नहीं ली गई थी। मोदी जी ने कम–से–कम चुनाव लड़कर तो आजादी ली थी‚ सो आजादी तो २०१४ वाली ही मानी जाएगी। मोदी जी की उत्सवप्रियता देखिए‚ सब जानते–समझते हुए भी‚ भीख वाली आजादी तक का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। और हो सकता है कि कंगना जी को दिल से माफ भी नहीं करें‚ अंगरेजों की दी भीख को भीख कहने के लिए!