विधानसभा की दो सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों में कई तरह के संकेत छिपे हो सकते हैं। बिहार के भविष्य की राजनीति के लिहाज से इसे सामान्य चुनाव नहीं बताया जा सकता। अगर जदयू की जीत होती है तो माना जाएगा कि राज्य सरकार के कामकाज को वोटरों ने पसंद किया। अगर हार होती है तो सरकार में शामिल चारों दलों के लिए नसीहत होगी। इसी तरह अगर राजद को कामयाबी मिलती है तो उसके कार्यकर्ताओं के मनोबल में इजाफा होगा। यह परिणाम कांग्रेस को भी रास्ता दिखाएगा। बूथों पर उसके प्रदर्शन पर निर्भर करेगा कि राजद के साथ उसका आगे का सफर कैसा रहेगा। आने वाले आम चुनावों में लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के सामने राहुल गांधी की बिहार टीम किस हैसियत में खड़ी होगी।
पिछले वर्ष हुए आम चुनाव की तुलना में यह काफी अलग था। तब दो गठबंधनों के बीच मुकाबला था और चिराग पासवान के नेतृत्व में लोजपा तीसरा कोण बना रही थी। अबकी कांग्रेस के चलते चौथा कोण भी है। इस चुनाव का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि जीत के लिए सभी प्रतिभागी दलों ने दिन-रात एक कर दिया था। जदयू के वरिष्ठ नेताओं के साथ राज्य सरकार के कई मंत्रियों की मेहनत की परख होनी है। लालू परिवार के राजनीतिक उत्तराधिकारी को भी साबित करना है कि आम चुनाव की कामयाबी संयोग नहीं थी। उसकी चमक-दमक अभी भी बरकरार है। राजद, जदयू और कांग्रेस के विधायकों को भी नेतृत्व की नजरों में चमकना है। मुकाबले में शामिल सभी बड़े दलों ने अपने विधायकों को गांव-गांव में उतार दिया था। राजद के विधायकों को तो एक-एक पंचायत का मुखिया बना दिया गया था। सबके सामने नेतृत्व की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती है।
अपने को दूसरों पर भारी दिखाने की होड़
राजद ने आगे बढ़कर अपने समर्थकों को सत्ता परिवर्तन का सब्जबाग भी दिखाया। जदयू के खिलाफ नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सत्ता के दुरुपयोग के कई आरोप भी लगाए थे। जदयू की तरफ से भी चुनाव जीतने के दावे किए जा रहे हैं। जाहिर है मुकाबले में शामिल सभी दलों में आगे बढ़ने और अपने को दूसरों पर भारी दिखाने की होड़ थी।
कसौटी पर कांग्रेस की साख
बिहार में 12 वर्षों के बाद राजद से अलग होकर दोनों सीटों पर अकेले मैदान में उतरी कांग्रेस के लिए तो यह परीक्षा की असली घड़ी है। उसके लिए दोतरफा संभावनाएं हैं। पिछले चुनाव की तुलना में अगर उसे ज्यादा वोट मिल जाते हैं तो आगे राजद के लिए वह मुश्किल खड़ी कर सकती है। वैसे राजद की हार में भी कांग्रेस की जीत छुपी है। कांग्रेस की दावेदारी को दरकिनार करके गठबंधन तोड़कर मैदान में उतरे राजद के लिए जरूरी है कि दोनों सीटें जीतकर उसे हैसियत बताए। ऐसा नहीं हुआ और जदयू जीत गया तो तेजस्वी की राह में कांग्रेस कांटे बिछाने की स्थिति में होगी।