बिहार विधानसभा के शताब्दी समारोह में शिरकत करने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बुधवार को पटना आ रहे हैं। साल 1921 से आज सौ साल तक के अपने इतिहास में यह भवन जमींदारी उन्मूलन महिला आरक्षण व शराबबंदी तक कई बड़े फैसलों का गवाह बना है।
सात फरवरी 1921 का वह दिन, जब पहली बार मेरी छांव तले विधान सभा की पहली बैठक हुई थी। तब मेरा नाम ‘बिहार-उड़ीसा विधान परिषद’ भवन था। आज सौ साल बाद मेरे अंदर अतीत की तमाम स्मृतियां उमड़-घुमड़ रहीं हैं। आंखों के सामने से एक-एक घटना किसी फिल्म की तरह गुजर रही है। आजादी के पहले हमारे यहां हीं पहली बार स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने में स्वदेशी चरखा की बात की गई थी। यही चरखा बाद में गांधीजी ने अपने जनांदोलन में शामिल किया। मैं गवाह हूं आजादी के पहले से लेकर आज तक की अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का। देखे हैं जमींदारी उन्मूलन से लेकर शराबबंदी व आगे तक के ऐतिहासिक फैसलों के कई दौर, जिन्होंने समय-समय पर देश को भी राह दिखाई है।
मेरे शताब्दी स्तंभ का शिलान्यास करेंगे राष्ट्रपति
अब मेरे शताब्दी वर्ष समारोह में शामिल होने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind) बुधवार को पटना आ रहे हैं। राष्ट्रपति मेरे परिसर में शताब्दी स्तंभ का शिलान्यास करेंगे। इस शताब्दी स्तंभ पर बिहार का गौरवशाली इतिहास दिखाया जाएगा। राष्ट्रपति कोविंद का मुझसे पुराना नाता है। राष्ट्रपति बनने के पहले बिहार का राज्यपाल रहते उनका मेरे पास आना-जाना लगा रहता था।
मुझे अपनी सादगी, सुंदरता व भव्यता पर है नाज
पहले बात मेरे निर्माण की। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया अधिनियम 1919 के तहत अंग्रेजों से 2020 में बिहार एवं उड़ीसा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया। इसके बाद लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा बिहार में पहले राज्यपाल बनाए गए। अलग राज्य के लिए जब परिषद सचिवालय की जरूरत महसूस हुई, तब 1920 में मुझे आकार दिया गया। मुझे आर्किटेक्ट एएम मिलवुड ने इतालवी रेनेसां शैली में बनवाया। आगे साल 1935 के अधिनियम से जब बिहार विधानमंडल को दो भागों (विधानसभा और विधान परिषद) में विभाजित कर दिया गया, तब मेरे परिषद वाले भाग में विधानसभा चलने लगी। इससे सटे विधान परिषद के लिए अलग से नया व छोटा भाग बनाया गया। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने मेरा विस्तार कर सेंट्रल हाल बनवाया, जिसमें विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन की बैठकें होती हैं। मुझे रोमन शैली से प्रभावित अपनी सादगी व भव्यता के समन्वय पर नाज है। मुझे बनवाया तो अंग्रेजों ने था, लेकिन मेरा आयताकार सभा कक्ष ब्रिटिश पार्लियामेंट से अलग रोमन एम्फीथियेटर की तर्ज पर अर्द्ध गोलाकार शक्ल में है। मुझे तो केवल इतना लगता है कि मैं सुंदर हूं, लोग कहते हैं कि मेरा रूप-रंग इंडो सारसेनिक शैली का है।
पहले थे 331 सदस्य, अब घटकर 243 विधायक
मेरे परिसर में तीन हाल तो बीच में 12 कमरे हैं। सबसे बड़ा कक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का है तो नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का कक्ष पहली मंजिल पर है। मेरे सभाकक्ष में आजादी के बाद 1952 की पहली विधानसभा में 331 सदस्य बैठते थे जो 1977 में 324 हो गए। साल 2000 में बिहार के बंटवारे के साथ अलग राज्य झारखंड बना तो विधानसभा के सदस्य घटकर 243 रह गए।
मेरी छांव तले लिए फैसलों ने दिखाई देश को राह
जमींदारी प्रथा का उन्मूलन (Abolition of Zamindari) हो या महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने का कानून हो, मेरी छांव तले लिए गए कई फैसलों ने देश को राह दिखाई है। इसकी शरुआत तो सात फरवरी 1921 को मेरी पहली बैठक में हीं पड़ गई थी, जब बिहार-ओड़िशा के पहले राज्यपाल सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा (Satyendra Prasanna Sinha) ने देश से स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी चरखा अपनाने की अपील की थी। बाद में इसे महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने जन आंदोलन में तब्दील कर दिया था।
देश में मिसाल बना जमींदारी उन्मूलन का कानून
मैंने देखी है देश के पहले संविधान संशोधन की नींव। देश की आजादी के तुरंत बाद 1947 में ही राज्य के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने भूमिहीन गरीबों के लिए ‘बिहार राज्य वास भूमि अधिनियम’ पारित करा इतिहास रचा था। यह कानून पूरे देश में मिसाल बना। आगे 1950 में जब देश में पहली बार बिहार में जमींदारी उन्मूलन करने वाला बिहार भूमि सुधार अधिनियम पारित हुआ तो हुआ तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। यह कानून केंद्र सरकार द्वारा पारित चकबंदी कानून के लिए प्रेरणा बना, जिसमें अधिकतम जमीन रखने की सीमा तय कर दी गई। मुझे लगा था कि बिहार में अब कोई गरीब भूमिहीन नहीं रहेगा, लेकिन अब तक ऐसा क्यों नहीं हो सका है, इसपर चर्चा फिर कभी।
राबड़ी देवी का मुख्यमंत्री बनना अभूतपूर्व घटना
वक्त के साथ आपातकाल (Emergency) का दौर आया और गया। आगे लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Lok Nayak Jai Prakash Narayan) की संपूर्ण क्रांति (Total Revolution) की ऊपज रहे लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad yadav) के मुख्यमंत्री बनने व उनके चारा घोटाला (Fodder Scam) में जेल जाने के बाद राबड़ी देवी (Rabri Devi) का मुख्यमंत्री बनना भी याद है। यह भी देश के इतिहास में अपने ढ़ंग की अभूतपूर्व घटना थी। कालचक्र के साथ मैंने लालू के दौर का समापन देखा तो अभी लालू-राबड़ी के बेटे तेजस्वी यादव में मजबूत विपक्ष भी देख रहा हूं।
सबसे पहले दिया पंचायती राज में महिला आरक्षण
लालू राज के बाद बिहार देश का पहला राज्य बना, जिसने पंचायती राज में महिला आरक्षण की व्यवस्था की। मैं गवाह हूं पंचायती राज में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण देने के साल 2006 के बिहार पंचायती राज अधिनियम का। बाद में इस फैसले को देश के कई अन्य राज्यों ने भी लागू किया। आज महिलाओं को पंचायतों में आरक्षण देने से व्यापक बदलाव दिख रहे हैं। आगे साल 2019 में सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण दिया गया। इन फैसलों से महिलाएं सशक्त हुईं हैं। हालांकि, अपराध के आंकड़े बता रहे कि उनपर अत्याचार कम नहीं हो रहे हैं। विधानसभा सत्रों में ऐसे मामलों पर चर्चा के दौरान मेरा दिल रो पड़ता है।
शराबबंदी कानून ने दिखाई देश को नई राह
महिला अपराधों व उनपर घरों में भी अत्याचार का बड़ा कारण शराब मानी जाती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे समझा। फिर, साल 2016 के 30 मार्च को शराबबंदी (Prohibition) का कानून बना तो दिल बाग-बाग कर उठा। बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू है। इसने महिलाओं की स्थिति में निश्चित सुधार हुआ है, लेकिन शराबबंदी कानून लागू करने में परेशानियां भी कम नहीं। मेरी छत के नीचे इसकी गूंज भी सुनाई पड़ती रही है।
इन ऐतिहासिक फैसलों का भी मैं रहा गवाह
मैं गवाह हूं साल 2019 के बिहार लोक सेवाओं का अधिकार अधिनियम व बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम का। इसी साल मैंने जल जीवन हरियाली अभियान का आरंभ देखा तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव भी पारित हुआ। यह अलग बात है कि अब सरकार बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा नहीं चाहती। यह साल 2019 हीं था, जब मेरी छत के नीचे बिहार में नागरिकता संशोधन कानून लागू नहीं करने का बड़ा प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ था।