मध्य प्रदेश के सागर के रहने वाले सहोदरा और राजू यादव का नाम शायद ही किसी को याद होगा। सहोदरा बाई ने 13 मई 2008 को उसके देवर पप्पू की हत्या का मामला दर्ज कराया था। इसके बाद इस परिवार पर पुलिस और न्याय व्यवस्था का कहर टूट पड़ा। पुलिस ने इस मामले में सहोदरा बाई‚ उनके पति राजू यादव व रिश्तेदार माधव पर उल्टा हत्या का मामला दर्ज कर जेल भेज दिया। इस दौरान उनके मासूम बच्चे रोते–बिलखते रहे और दर–दर ठोकरें खाने को मजबूर हो गए। पुलिस की जांच पर भरोसा करते हुए आरोपितों को निचली अदालत ने उम्र कैद की सजा सुना दी।
13 साल जेल में रहने के बाद सर्वोच्च अदालत ने इस दम्पति को बेगुनाह मानते हुए रिहा करने के आदेश दिए और पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। इन 13 सालों में सहोदरा और राजू यादव की एक बेटी और दो बेटों ने मजदूरी करते हुए अपना बचपन बिता दिया। उनकी पढाई छूट गई‚लेकिन इन सब के बीच तीनों भाई–बहनों ने मिलकर न्याय के लिए लड़ाई जारी रखी। जिला न्यायालय से लेकर हाईकोर्ट तक वकीलों को फीस दी और सर्वोच्च अदालत तक गए। इस साल वे अपने निर्दोष मां–बाप को छुड़ाकर लाने में सफल हो गए। हिंदुस्तान में ऐसे हजारों मामले मिल जाएंगे‚ जहां कई आरोपित लंबी जेल काटने के बाद बेगुनाह करार दिए जाते हैं। इन सबमें आरोपितों को लेकर समाज का नजरिया बेहद सख्त देखने में आता है‚ लेकिन जब रसूखदार लोगों पर पुलिस कार्रवाई की बात आती है तो वे गुनाहगार होने के बावजूद आम जन के द्वारा मासूम करार दे दिए जाते हैं।
दरअसल‚ क्रूज पर ड्रग्स रेव पार्टी में शामिल होना आम आदमी के वश की बात नहीं है। इसमें लाखों रुपये खर्च कर शामिल हुआ जाता है। हाल ही में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान और कई रईसजादों को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने मुंबई से गोवा जा रहे एक क्रूज में छापेमारी कर एक रेव पार्टी का भंडाफोड़ कर गिरफ्तार किया तो इसकी दिलचस्प प्रतिक्रिया देखने को मिली। ‘कभी हां कभी ना’ फिल्म में शाहरुख के साथ नजर आ चुकीं सुचित्रा कृष्णमूत ने ट्वीट किया कि बॉलीवुड को निशाना बनाने वालों के लिए‚ फिल्मी सितारों पर सभी एनसीबी छापे याद हैंॽ हां कुछ नहीं मिला और कुछ भी साबित नहीं हुआ‚ यह एक तमाशा है। प्रसिद्धि की कीमत। जाहिर है सुचित्रा ने भारत की स्थापित वैधानिक व्यवस्था को चुनौती देने से गुरेज नहीं किया‚ जबकि ऐसी हिमाकत करने पर कई विद्वान‚ पत्रकार और प्राध्यापक स्थापित वैधानिक व्यवस्था को चुनौती देने के आरोप में जेल में डाल दिए जा चुके हैं। अभिनेता सुनील शेट्टी ने आरोपितों का बचाव करते हुए कहा कि‚ जब एक जगह रेड होती है तो वहां बहुत सारे लोग होते हैं। ऐसे में हम ये क्यों मान लेते हैं कि बच्चे ने ड्रग्स ही लिया है। उस बच्चे को सांस लेने की जगह देते हैं। जब हमारी इंडस्ट्री में कुछ भी होता है तो मीडिया एकदम से टूट पड़ती है। यह देखा गया है कि मुम्बई की माया नगरी का बर्ताव अपराध को लेकर बेहद लचीला रहा है। १९९३ के मुम्बई ब्लास्ट के बाद हथियारों के साथ पकड़े गए संजय दत्त को मासूम कहकर छोड़ने की सार्वजनिक अपील कई बार सामने आई थी।
इन सबके बीच बॉलीवुड की बेहिसाब चमक–दमक में अंडरवर्ल्ड की बेतहाशा अवैध कमाई की भूमिका सामने आती रही है और नशे के व्यापार से आने वाला पैसा यहां लगाने के तथ्य भी सामने आए हैं। ड्रग्स और मादक पदार्थों को लेकर सुरक्षा एजेंसियां पर्दे के पीछे यह स्वीकार करती है कि उनके द्वारा तस्करी का जो मॉल पकड़ा जाता है वह २ फीसद भी नहीं होता। साफ है कि मादक पदार्थों की तस्करी भारत में बड़ा व्यापार है बल्कि उसका उसका ढांचा इतना मजबूत है कि उसे खत्म किया जाना आसान नहीं है। देश के कई उद्योगपतियों और राजनेताओं को रियल स्टेट और स्टॉक एक्सचेंज में अपना व्यवसाय चलाने के लिए ढेर सारा पैसा चाहिए और उसका सबसे बड़े माध्यम मादक पदार्थों की तस्करी है‚ जिसमें उद्योगपतियों‚ राजनेताओं‚ पुलिस के चुनिंदा आला अधिकारियों और अपराधियों का मजबूत गठजोड़ होता है। नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट की रिपोर्ट के अनुसार भारत में २ करोड़ लोग अफीम‚ ३ करोड़ से ज्यादा गांजा और पूरे देश में करीब ८.५ लाख लोग ड्रग्स इंजेक्ट करते हैं।
चीन की पुलिस ने चीनी–कनाडाई पॉप स्टार क्रिस वू को कथित तौर पर यौन संबंध बनाने के लिए कई बार युवा महिलाओं को धोखा देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। गायक‚ अभिनेता‚ मॉडल और टैलेंट शोज के जज के रूप में भी काफी ख्याति अर्जित करने वाले क्रिस वू की करतूतों को नादानी कहने का साहस किसी ने नहीं दिखाया। वहीं मैनचेस्टर सिटी के स्टार फुटबॉलर कायले वॉल्कर और इंग्लिश प्रीमियर लीग की टीम चेल्सी के राइजिंग स्टार कैलम हडसन ओडोई को कोरोना के नियमों को भंग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। कानून का शासन सामाजिक न्याय की भावना पर आधारित होता है। कानून का शासन अनेक संवैधानिक व्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में कार्य करके नागरिक अधिकारों व स्वतंत्रताओं का रक्षक बना हुआ है। भारत में कानून के शासन को लेकर राजनीतिक और सामाजिक रूप से पारदशता और एक राय की जरूरत महसूस की जाती रही है। ब्रिटेन के राजा या रानी को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। उस पर कानून की सीमाएं नहीं लगाई जा सकती हैं।
विदेशों में भेजे जाने वाले राजदूतों व विदेश विभाग के कर्मचारियों को भी कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं‚ लेकिन भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग उद्योगपतियों‚ राजनेताओं या फिल्मी कलाकारों को भी ऐसी ही उन्मुक्तियां देने के पक्ष में अक्सर खड़ा नजर आता है। कानून का पालन सबके लिए बाध्यकारी है‚ इस बात पर सब अक्सर एक मत होते हैं‚ लेकिन कानून के पालन को लेकर नजरिये में अक्सर विरोधाभास नजर आता है।
ऐसा माना जाता है कि न्याय की अवधारणा व्यक्ति की उचित या तर्कशील भावना पर आधारित है‚ जो कुछ व्यक्तियों की अंतरात्मा को भाता है वह न्यायपूर्ण है और जो उसकी अंतरात्मा को प्रसन्न नहीं करता है‚ वह उसकी दृष्टि में अन्यायपूर्ण है। भारत में आमजन की दृष्टि न्याय को लेकर तर्कशील होने के साथ मानवीय होने लगे तो निश्चित तौर पर इसका फायदा सहोदरा और राजू यादव जैसे गरीब लोगों को मिलेगा। बहरहाल उद्योगपतियों‚ राजनेताओं या फिल्मी कलाकारों और उनकी संतानों को कानून से ऊपर समझने का तंत्र कम–से–कम भारत में स्थापित न हो‚ यह हम सबकी जिम्मेदारी है।