आश्विन शुक्ल प्रतिपदा गुरुवार को शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापना के बाद नवदुर्गा के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा की गई। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता शैलपुत्री के पूजन से श्रद्धालु को संतान वृद्धि‚ धन–संपदा एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शारदीय नवरात्र के प्रथम दिवस से दुर्गा सप्तशती का पाठ‚ रामचरित मानस का पाठ‚ देवी भागवत का पाठ आरंभ हो गया। इसका समापन आश्विन शुक्ल नवमी १४ अक्टूबर गुरुवार को हवन–पुष्पांजलि के साथ संपन्न होगा। आठ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में प्रत्येक दिन माता के अलग–अलग रूपों की पूजा होगी। वही ११ अक्टूबर सोमवार को पंचमी एवं षष्ठी तिथि एक दिन होने से देवी के पंचम स्वरूप स्कंदमाता तथा षष्ठम रूप कात्यायनी देवी की पूजा एक ही दिन की जाएगी। मंदिर‚ पंडाल तथा घरो में माता का आवाहन कर यथा विधि पूजन किया जा रहा है। भक्तों में माता की आराधना को लेकर के उत्साह चरम पर है। वे अपनी सुविधा के अनुसार माता को प्रसन्न करने में लगे हैं।
आज शुक्रवार को नवरात्र के दूसरे दिवस में माता ब्रह्मचारिणी की पूजा स्वाति नक्षत्र व रवियोग में की जाएगी। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा से ज्ञान‚ सदाचार‚ लगन‚ एकाग्रता व संयम रखने की शक्ति प्राप्त होती है। श्रद्धालु अपने कर्म पथ से नहीं भटकता है तथा दीर्घायु होता है। माता की आराधना में कवच‚ अर्गला‚ कील के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ तथा विशेष मंत्र के जाप से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होगी। आश्विन शुक्ल द्वितीया को भगवती ब्रह्मचारिणी की पूजा में तीन वर्ष की कन्या का पूजन कर मिश्री व शक्कर के बने प्रसाद का भोग लगाने से सर्वत्र विजय प्राप्ति व सभी शुभ कार्य सिद्ध होते हैं। माकंर्डेय पुराण के अनुसार भगवती की आराधना में कुछ ऐसे मंत्र एवं पाठ बताए गए हैं‚ जिसे करने से श्रद्धालुओं को कोरोना जैसे वैश्विक महामारी तथा अन्य रोग‚ शोक‚ दुरूख‚ संताप आदि से मुक्ति पा सकते हैं। कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाली माता दुर्गा अपने भक्तों का दुःख‚ दरिद्रता‚ भय‚ रोग का नाश तथा निर्भयता‚ सुख ऐश्वर्य‚ यश‚ कामना व सिद्धि प्रदान करती हैं। माता अपने शरणागत का हमेशा रक्षा व कल्याण करती हैं।