भगवती दुर्गा की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र ७ अक्टूबर को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू हो रहा है। गुरुवार को नवरात्र के पहले दिन अभिजीत मुहूर्त या अन्य शुभ मुहूर्तों में कलश स्थापना के साथ देवी माता की आराधना आरंभ हो जायेगी। श्रद्धालु गंगा मिट्टी या बालू में जौ डालकर उस पर विधि विधान से घट की स्थापना करेंगे। आश्विन शुक्ल दशमी १५ अक्टूबर दिन शुक्रवार को देवी की विदाई और विजयादशमी का पर्व मनाया जायेगा। गुरुवार से घर‚ मंदिर व पंडालों में पूजा से पहले संकल्प लेकर साधक दुर्गा सप्तशती‚ देवी पुराण‚ दुर्गा सहस्त्रनाम‚ रामचरित मानस‚ सुंदरकांड‚ अर्गला‚ कवच आदि का पाठ शुरू करेंगे। सुबह–शाम आवाहित देवी–देवताओं को भोग अर्पण कर आरती उतारी जाएगी। कीर्तन‚ भजन‚ स्तुति से भगवती को प्रसन्न किया जायेगा। पूरा शहर देवी की आराधना में लीन हो जायेगा। विशेष कामना से विशेष मंत्र और विधि द्वारा जगत जननी की पूजा भी होगी । कोरोना के बाद सरकार द्वारा जारी दिशा–निर्देशों का पालन करते हुए पूजा समितियां मूर्ति और पंडाल निर्माण कर रही हैं। मेले के आयोजन पर पूर्ण पाबंदी है। कहीं–कहीं पूजा पंडालों में वैक्सीनेशन सेंटर खोलने की तैयारी हो रही है। शारदीय नवरात्रि को सभी नवरात्रों में सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण होने से भगवती के उपासक पूरी निष्ठा से आराधना करते हैं। आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से विजया दशमी तक माता के विभिन्न रूपों की पूजा होगी। अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना ॥ पंडि़त राकेश झा ने बताया कि गुरुवार से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है‚ इसलिए इसकी स्थापना शुभ मुहूर्त में करना फलदायी होगा। गुरुवार घट स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त सबसे उत्तम है। यह मुहूर्त दोपहर ११:१४ भी से १२:०१ बजे तक है। कलश पूजन से सुख–समृद्धि‚ धन‚ वैभव‚ ऐश्वर्य‚ शांति‚ पारिवारिक उन्नति तथा रोग–शोक का नाश होता है। कलश–गणेश की पूजा से शारदीय नवरात्र का महाअनुष्ठान आरंभ हो जायेगा। इस बार एक तिथि के क्षय होने से आठ दिन का नवरात्र होगा। जगत जननी की कृपा व सर्वसिद्धि की कामना से उपासक फलाहार या सात्विक अन्न ग्रहण करते हुए दुर्गा सप्तशती के १३ अध्याय के कुल ७०० श्लोको का सविधि पाठ करेंगे।
शुभ मुहूर्त
नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। इस दौरान कलश स्थापना कर मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि के पहले ही दिन कलश स्थापना करके मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस बार कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 17 मिनट से 7 बजकर 7 मिनट तक ही है। इस शुभ मुहूर्त में ही कलश स्थापित कर लेना अच्छा रहेगा।
नवरात्रि में माता रानी की पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री
माता रानी की पूजा करने के लिए आपको मां दुर्गा की फोटो, आरती की किताब, दीपक, फूल, पान, सुपारी, लाल झंडा, इलायची, बताशा, मिसरी, कपूर, उपले, फल, मिठाई, कलावा, मेवे, हवन के लिए आम की लकड़ी, जौ, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सिंदूर, केसर, कपूर, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, सुगंधित तेल, चौकी, आम के पत्ते, नारियल, दूर्वा, आसन, पंचमेवा, कमल गट्टा, लौंग, हवन कुंड, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, दीपबत्ती, नैवेद्य, शहद, शक्कर, जायफल, लाल रंग की चुनरी, लाल चूड़ियां, कलश, साफ चावल, कुमकुम, मौली, माचिस और माता रानी के सोलह श्रृंगार के सामान की जरूरत पड़ेगी।
पूजा विधि
नवरात्रि के दिन सुबह उठकर साफ पानी से स्नान करें
कलश स्थापना के स्थान पर दीया जलाएं और दुर्गा मां को अर्घ्य दें
इसके बाद अक्षत और सिंदूर चढ़ाएं
लाल फूलों से मां को सजाएं और फल, मिठाई का भोग लगाएं
धूप, अगरबत्ती जलाकर दुर्गा चालीसा पढ़े और आखिरी में आरती करें
जानिए मां दुर्गा के किस रूप की करें किस दिन उपासना
7 अक्टूबर – मां शैलपुत्री की आराधना
8 अक्टूबर – मां ब्रह्मचारिणी की आराधना
9 अक्टूबर – मां चंद्रघंटा और मां कुष्मांडा की पूजा
10 अक्टूबर – मां स्कंदमाता की आराधना
11 अक्टूबर – मां कात्यायनी की आराधना
12 अक्टूबर – मां कालरात्रि की आराधना
13 अक्टूबर – मां महागौरी की पूजा
14 अक्टूबर – मां सिद्धिरात्रि की पूजा
15 अक्टूबर – दशहरा