हालिया बिहार विधानसभा चुनाव के बाद लड़़खड़ाया जदयू बहुत हद तक संभलता हुआ नजर आ रहा है। केन्द्र सरकार में नमो का साथी बनने से लेकर संगठनात्मक फेरबदल के बाद जदयू के हौसले बुलंद नजर आ रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम के जरिए प्रदेश के कोने–कोने से जनता से सीधे संवाद कर उनकी समस्याओं का समाधान कर रहे हैं। ऐसे में अब राजनीतिक पंडि़तों की नजर में संगठन की दहलीज पर नीतीश कुमार की रणनीति रंग ला रही है। बिहार विधानसभा चुनाव के बाद तीसरे नंबर पर आने के बाद जदयू में एक समय धुंआ उड़़ने लगा था‚ किंतु इस धुंआ को समय रहते नीतीश कुमार ने शांत कर दिया। फिलहाल एक तरफ जहां केन्द्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति की पूरी जिम्मेवारी दे दी गई है‚ वहीं उपेन्द्र कुशवाहा बिहार में जनसंवाद यात्रा पर निकले हैं। इधर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह संगठन को धार देने में जुटे हैं। वर्ष २०२० के बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर आने के बाद जदयू ने संगठन को मजबूत करने के लिए चौतरफा अभियान शुरू कर दिया है। प्रदेश में इसी महीने ३० अक्टूबर को दो सीटों पर उपचुनाव होने जा रहा है। कुशेश्वर स्थान और तारापुर सीट से बतौर एनड़ीए उम्मीदवार जदयू ने ताल ठोका है। पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू ने इन दोनों सीटों पर जीत हासिल की थी। तारापुर से मेवालाल चौधरी व कुशेश्वरस्थान से शाशिभूषण हजारी चुनाव जीते थे‚ किंतु इसी बीच इन दोनों नेताओं के निधन से रिक्त सीटों के लिए उपचुनाव होने जा रहा है। राजद ने भी इन दोनों सीटों पर ताल ठोका है। कोरोना काल की काली छाया के बीच यह चुनाव काफी रोचक होने जा रहा है। जदयू उम्मीदवार को जीताने में भाजपा‚ हम व वीआईपी पूरी ताकत झोंकने जा रही है। केन्द्रीय मंत्री पशुपति कुमार ने भी जदयू के बैनर तले खड़े़ एनड़ीए उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए ९–९ सदस्यीय कमिटी गठित कर दी है। खुद पारस जदयू उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार करने के लिए क्षेत्र में जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भी उपचुनाव में अपने उम्मीदवार के चुनाव प्रचार के लिए बिहार पहुंच रहे हैं। ज्ञात हो कि भाजपा व जदयू की जोड़़ी महागठबंधन पर भारी पड़़ती आ रही है। वर्ष २०२० के बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों की जोड़़ी ने विषम परिस्थितियों में जीत हासिल की थी। भाजपा को १९.५ फीसद वोट मिले थे जबकि उसे ७४ सीटों पर जीत हासिल हुई। जदयू को १५.४ फीसद मत मिले और उसे ४३ सीटों पर संतोष करना पड़़ा। महागठबंधन में राजद ने सर्वाधिक २३.१ फीसद मत हासिल कर ७५ सीटों पर विजय पताका लहराया। कांग्रेस को ९.५ फीसद मत मिले और वह १६ सीटें जीत सकी। दरअसल‚ तमाम तकरार के बावजूद भाजपा व जदयू दोनों को अहसास हो गया है कि संयुक्त टीम महागठबंधन पर हर समय कहर ढाएगी। दोनों एक–दूसरे को स्वाभाविक दोस्त भी मानते हैं। साथ ही एक साथ रहने पर दोनों को फायदा है। वर्ष २०१४ में जब जदयू अकेले चुनाव लड़ा था तो उसे मात्र दो सीटें हाथ लगी थीं‚ किंतु वर्ष २०१९ के चुनाव में भाजपा से हाथ मिलाने पर उसे १६ सीटें मिलीं। उल्लेखनीय है कि वर्ष २०१९ के लोकसभा चुनाव में भाजपा की अगुवाई वाले एनड़ीए ने आंकड़ोके अंकणित में महागठबंधन को पटखनी दी और एनड़ीए को ३९ सीटें मिलीं।
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