नमक से लेकर सॉफ्टवेयर बनाने वाले 110 अरब डॉलर वाले टाटा समूह ने आखिरकार सार्वजनिक एयरलाइन एयर इंडिया को खरीदने में सफलता हासिल कर ली है। रिपोर्ट्स के मुताबिक टाटा संस ने एयर इंडिया की बोली जीत ली है। सरकार ने गुरुवार को ही वित्तीय बोलियों का मूल्याकंन किया था। सरकार सौदे को जल्दी पूरा करने की इच्छुक है। अघोषित आरक्षित मूल्य के आधार पर वित्तीय बोलियों का मूल्यांकन किया गया और मानक मूल्य से अधिक कीमत पेश करने वाली बोली को विजेता घोषित किया गया। टाटा के बोली जीतने के साथ ही एयर इंडिया 67 साल बाद नमक से लेकर सॉफ्टवेयर बनाने वाले समूह के पास वापस चली गई है।
उल्लेखनीय है कि टाटा समूह ने अक्टूबर, 1932 में टाटा एयरलाइंस के नाम से एयर इंडिया का गठन किया था। सरकार ने 1953 में एयरलाइन का राष्ट्रीयकरण कर दिया। टाटा पहले से सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर विमानन सेवा विस्तार का परिचालन कर रही है। अभी यह साफ नहीं है कि समूह ने स्वयं या एयर एशिया इंडिया के जरिये बोली लगाई है। ऐसा कहा जाता है कि सिंगापुर एयरलाइंस निजीकरण की प्रक्रिया में शामिल होने को लेकर उत्सुक नहीं है। सरकार एयरलाइन में अपनी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच रही है। इसमें एयर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी वाली एआई एक्सप्रेस लि.और 50 प्रतिशत हिस्सेदारी वाली एयर इंडिया एसएटीएस एयरपोर्ट सर्विसेज प्राइवेट लि. शामिल हैं।
डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक असेट मैनेजमेंट (दीपम) द्वारा जनवरी 2020 में जारी अभिरुचि पत्र में कहा गया है कि एयरलाइन पर 31 मार्च, 2019 तक कुल 60,074 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया था। नए खरीदार को 23,286.5 करोड़ रुपये का कर्ज वहन करना होगा। शेष कर्ज को एक स्पेशल पर्पज व्हीकल एयर इंडिया असेट होल्डिंग लिमिटेड को ट्रांसफर किया जाएगा। एयरइंडिया 2007 से ही घाटे में चल रही है, जब इसका विलय घरेलू परिचालक इंडियन एयरलाइंस के साथ किया गया था।
बोली जीतने वाले सफल ग्राहक को घरेलू एयरपोर्ट पर 4400 घरेलू और 1800 अंतरराष्ट्रीय लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट के साथ ही साथ अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर 900 स्टॉल का नियंत्रण भी हासिल होगा। इसके अलावा सफल खरीदार को एयर इंडिया एक्सप्रेस की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी और एआईएसएटीएस की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी भी हासिल होगी, जो प्रमुख भारतीय एयरपोर्ट पर कार्गो एवं ग्राउंड हैंडलिंग सर्विस प्रदान करती है।
बता दें कि पहले किसी समय में इस कंपनी का नाम टाटा एयरलाइंस ही था. जे आर डी टाटा ने 1932 में टाटा एयर सर्विसेज शुरू की थी, जो बाद में टाटा एयरलाइंस हुई और 29 जुलाई 1946 को यह पब्लिक लिमिटेड कंपनी हो गई थी. 1953 में सरकार ने टाटा एयरलाइंस का अधिग्रहण कर लिया और यह सरकारी कंपनी बन गई.
सरकार ने वर्ष 2020 में विनिवेश प्रक्रिया शुरू की थी
सरकार ने घाटे से जूझ रही एयर इंडिया को बेचने के लिए जनवरी 2020 में विनिवेश प्रक्रिया शुरू की थी. उसी दौरान देश में कोरोना वायरस का संक्रमण शुरू हो गया. जिसके चलते यह प्रक्रिया करीब 1 साल तक अधर में लटक गई. इस साल अप्रैल में सरकार ने इच्छुक कंपनियों से कहा कि वे एयर इंडिया को खरीदने के लिए वित्तीय बोली लगाएं. इसके लिए 15 सितंबर अंतिम तारीख तय की गई थी.
15 सितंबर को थी बोली लगाने की आखिरी तारीख
हाल ही में केंद्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्पष्ट किया था कि वित्तीय बोली लगाने के लिए अंतिम तारीख आगे नहीं बढ़ाई जाएगी. जिसके बाद बुधवार शाम तक सरकार के पास कई कंपनियों की वित्तीय बोली आ गई. सरकार ने इससे पहले वर्ष 2018 में एयर इंडिया की 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की पेशकश की थी लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाई. जिसके बाद सरकार ने इस साल कंपनी की शत-प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का ऐलान किया.
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43,000 करोड़ रुपये तक कर्ज
सूत्रों के मुताबिक एयर इंडिया पर कर्ज बढ़कर 43,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. एयर इंडिया ने ये सारा कर्ज भारत सरकार की गारंटी पर ले रखा है. जिसके चलते सरकार पर भार बढ़ता जा रहा है. विनिवेश के बाद एयर इंडिया को नए मालिक को ट्रांसफर करने से पहले भारत सरकार इस कर्ज का भुगतान करेगी. गौरतलब है कि विस्तारा एयरलाइन भी टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड और सिंगापुर एयरलाइंस लिमिटेड का एक ज्वाइंट वेंचर है. इसमें टाटा संस की 51 फीसदी हिस्सेदारी है. वहीं एयर एशिया में टाटा संस का हिस्सा 83.67% है.