पिछले साल फरवरी में उत्तर–पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे को दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोची–समझी साजिश के तहत कराया गया करार दिया है। जस्टिस एस प्रसाद ने कहा है कि दंगा किसी क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में नहीं भड़़का था‚ बल्कि साजिशन अंजाम दिया गया। हिंसा के दौरान दिल्ली पुलिस के हेड़ कांस्टेबल रतन लाल की हत्या और अन्य अफसरों पर हमले के आरोपियों की जमानत याचिका पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि पुलिस ने हिंसा की जो वीडि़यो फुटेज पेश की हैं‚ उनमें प्रदर्शनकारियों का आचरण स्पष्ट दिखाता है कि सरकार के साथ ही लोगों के जीवन को भी बाधित करने पर वे आमादा थे। अदालत ने दंगाइयों द्वारा हिंसा से पूर्व सीसीटीवी कैमरे तोड़़ दिए जाने का संज्ञान लेते हुए कहा कि कानून व्यवस्था खराब करने की योजना पहले से ही बना ली गई थी। गौरतलब है कि इस दंगे में ५३ लोग मारे गए थे‚ जबकि ५८१ घायल हुए थे। बाजार‚ स्कूल और आवासीय क्षेत्रों में आगजनी और पथराव से जान–माल का काफी नुकसान हुआ था। सभ्य समाज में दंगे–फसास के लिए कोई स्थान नहीं होता। किसी मुद्दे पर कोई असहमति है‚ तो संवाद से ही कोई सर्वसम्मत हल निकाला जा सकता है। फरवरी‚ २०२० में दंगे उन्हीं दिनों में हुए जब सीएए और एनआरसी के विरोधमें धरना प्रदर्शन चल रहे थे। दक्षिणी दिल्ली के शाहीन बाग में अति व्यस्त सड़़क पर धरनारत लोगों के कारण न केवल आवाजाही पर असर पड़़ा था‚ बल्कि नोएडा– दिल्ली को जोड़़ने वाली इस मुख्य सड़़क पर मौजूद बड़े़ शोरूम और कारोबारी प्रतिष्ठानों में कामकाज भी नहीं हो पा रहा था। सुरक्षा व्यवस्था के लिए जगह जगह पुलिस बैरिकेडिं़ग की गई थी। आरोप है कि जामिया नगर और शाहीन बाग इलाकों में ही उत्तर–पूर्वी दिल्ली के दंगे की पटकथा लिखी गई थी। अमेरिकी राष्ट्रपति ड़ोनाल्ड़ ट्रंप दिल्ली पहंुचने वाले थे‚ कहा जाता है कि उनका ध्यान खींचने और जताने के लिए कि भारत में सब कुछ ठीक नहीं है‚ दंगे की तैयारी की गई। सीएए विरोधी आंदोलन के विरोधी भी पुरजोर सक्रिय थे। अभी अदालती कार्यवाही चल रही है। उम्मीद है कि राजधानी को कलंकित करने के कृत्य में लिप्त पाए जाने वाले दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलेगी।
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