सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह लड़़कियों को इसी वर्ष नवम्बर में होने वाली नेशनल डि़फेंस एकेड़मी (एनड़ीए) की परीक्षा में शामिल कराए। सरकार ने बताया था कि अगले वर्ष मई से एनड़ीए परीक्षा में लड़़कियों को शामिल कराना आरंभ किया जा सकता है‚ लेकिन शीर्ष अदालत ने उसके आग्रह को ठुकराते हुए कहा कि इसे और नहीं टाला जा सकता। अदालत ने राष्ट्रीय इंडि़यन मिलिट्री कॉलेज (आरआईएमसी) में भी लड़़कियों को प्रवेश देने को कहा। निर्देश दिया कि दो सप्ताह के भीतर इस बाबत हलफनामा प्रस्तुत किया जाए। सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया था कि महिलाओं को एनड़ीए में शामिल करने की अनुमति देने के लिए बुनियादी ढांचे और पाठक्रम में कुछबदलाव जरूरी है। इसलिए मई‚ २०२२ तक का समय दिया जाए‚ लेकिन शीर्ष अदालत ने आग्रह को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि सशस्र बल आपात स्थिति से निपटने में सक्षम हैं‚ और महिलाओं के प्रवेश की सुविधा के लिए त्वरित समाधान निकाल लेंगे। याची कुश कालरा के अधिवक्ता चिन्मय प्रदीप शर्मा ने अदालत को बताया था कि लड़़कियों को मई‚ २०२२ की परीक्षा में शामिल होने की अनुमति देने का मतलब होगा कि एनड़ीए में उनका प्रवेश २०२३ में ही हो पाएगा। दरअसल‚ शीर्ष अदालत का रुख महिला सशक्तिकरण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाने वाला है। बेशक‚ सरकार की तरफ से ठोस तर्क रखे गए थे। इस काम में आने वाली दिक्कतें भी बताई थीं। सबसे ज्यादा तो यह कि प्रशिक्षण का पाठक्रम और स्वास्थ्य संबंधी मानक अभी तय नहीं हो सके हैं। हालांकि पाठ¬क्रम और मानक तय करने के लिए एक अध्ययन दल गठित किया गया है। कहना न होगा कि ये वजहें वाजिब हैं‚ लेकिन महज इनके कारण महिला समानता के तकाजे को ताक पर नहीं रखा जा सकता। फिर यह भी है कि अभी तो शुरुआत है। कोईभी कार्य आरंभ कर दिए जाने पर कमियां और खामियां बराबर दिखलाई पड़़ने लगती हैं‚ लेकिन प्रक्रिया जारी रखते हुए उन्हें सुधार जा सकता है। उत्तरोत्तर सुधार पर तवज्जो देते हुए महत्वाकांक्षी कार्यक्रम और पहल लIयों को हासिल करने में सफल रहती हैं। मुकम्मल तैयारी के नाम पर महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने सही ही कहा कि जो काम आज नहीं होगा‚ वह कल भी नहीं होगा।