आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में यह जरूरी है कि हम गुजरे वक्त पर भी नजर डालें। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि जो इतिहास से सबक नहीं सीखता‚ वह कुछ नहीं सीखता। देश इतिहास में विशेषकर स्वतंत्र भारत के पिछले ७५ वर्षों के इतिहास के कालखंड का यदि संक्षिप्त विश्लेषण करना हो तो इसके तीन चरण हैं। इसका प्रथम चरण है १९४७ से लेकर १९७७ तक कालखंड।
१९४७ से लेकर १९७७ तक का जो कालखंड है‚ वह कालखंड स्वतंत्रता संग्राम से उत्पन्न राष्ट्रीयता की भावना को एक परिवार की सत्ता के लिए एक परिवार को न्योछावर कर देने का है। दादा भाई नौरोजी‚ पंडित मदन मोहन मालवीय‚ महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक; इन महापुरु षों ने स्वतंत्रता संग्राम की अद्भुत अलख जगाई‚ लेकिन विडंबना यह रही कि इन महापुरु षों ने सिर्फ मेहनत की। इनमें अपनी मेहनत का सुख लेने की कोई कामना नहीं थी। इनका उद्देश्य बस देश को आजाद कराना था‚ लेकिन इनके योगदान के परिणामस्वरूप भारत के स्वतंत्रता काल का नीति निर्माण का सारा सुख पंडित जवाहरलाल नेहरू ले उड़े और कालांतर में यह सुख उनकी पुत्री इंदिरा गांधी के हाथों में रहा। लाल बहादुर शास्त्री का शासनकाल बेहद कम समय का‚ किंतु प्रभावशाली रहा। शेष काल में इंदिरा गांधी के कार्यकाल आने तक दरबार की राजनीति इतनी प्रबल हो गई कि उस राजनीति में इंदिरा गांधी तानाशाही की प्रतिमूत बन गई और १९७५ में इस देश में लोकतंत्र को निलंबित कर आपातकाल लागू कर दिया गया।
१९७७ में जिस तरह भारत की जनता ने इंदिरा गांधी का जनतांत्रिक पराभव किया‚ उस पराभव से नये कालखंड का उदय हुआ। इसने यह संदेश दिया कि कांग्रेस अपराजेय नहीं है और स्वतंत्रता संग्राम के उन कर्मों का जो लाभ नेहरू गांधी परिवार ने पाया था उस लाभ से उनमें तानाशाही की जो विकृति जागी है उसके विरु द्ध जनता खड़ी हो गई थी। १९७७ से लेकर २०१४ तक का कालखंड‚ भारतीय राजनीति का संक्रमण काल है। देश ने कई उतार–चढ़ाव देखे और बदलाव हुए। राजनीतिक से लेकर सामाजिक प्रक्रिया में परिवर्तन का दौर चला। परिवर्तन की इस प्रक्रिया की निष्पक्ष उत्पत्ति होती है भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रूप में। इस देश की जनतांत्रिक चेतना को तानाशाही प्रहार से जागृत करने का कार्य इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुआ था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को वंशपुत्र प्रक्रिया में तब्दील करने का कार्य किया‚ लेकिन इस देश के जनतंत्र को सही मायने में गांधी‚ सरदार पटेल और आंबेडकर की नीतियों के अनुरूप संचालित करने का कार्य मोदी के कार्यकाल में ही हो पाया। रोटी‚ कपड़ा और मकान की प्राप्ति यही १९४७ के स्वतंत्रता के बाद हर नागरिक के लिए सुनिश्चित किया गया संकल्प था। क्या यह संकल्प २०१४ तक पूरी हुई‚ इसका उत्तर है नहीं।
२०१४ के बाद से अब तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व को जितनी भी चुनौतियां दी गई‚ वह उतनी ही प्रखरता से साथ उभरा। उनकी कार्यशैली की जितनी आलोचना की गई उतनी तेजी से उनकी कार्यशैली प्रखर हुई। आलोचनाओं‚ टीका–टिप्पणियों की सुनामी तक आई गई लेकिन विरोधियों को हर बार मुंह की खानी पड़ी। एक समय मोदी को सोनिया गांधी ने मौत का सौदागर कह ड़ाला‚ लेकिन सच्चाई इसके उलट है। मोदी की स्वीकार्यता अहिंसा के अलंबरदार में जितनी है उनकी धाक उतनी ही आतंकवादियों के गढ़ों पर भी है। स्वच्छ भारत होना चाहिए‚ हर हाथ को काम मिलना चाहिए‚ हर किसी के पास अपना मकान होना चाहिए‚ उसमें बिजली होनी चाहिए‚ सड़क व पानी की सुविधा होनी चाहिए‚ शिक्षा मिलनी चाहिए‚ डेटा के साथ इंटरनेट की सुविधा होनी चाहिए। पर मोदी के अलावा इस ओर किसने प्रयास किया थाॽ ध्यान रहे कि गांवों को सशक्त बनाने का कार्य तभी साकार हो पाएगा जब महात्मा गांधी की नीतियों को साकार करने के लिए नरेन्द्र मोदी जैसा व्यक्तित्व बीड़ा उठाएगा। यह व्यक्तित्व हरेक मनुष्य को सशक्त करता है। हर घर में शौचालय‚ हर घर में बिजली‚ हर गरीब के पास अपना मकान‚ हर गरीब के लिए पेंशन की योजना‚ किसान‚ मजदूर‚ रेल पटरी दुकानदार वाले‚ उनके जीवन को सुरक्षित करना और उनके स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान भारत योजना प्रदान करना। उसका सकल राष्ट्रीय उत्पाद बढ़ने के साथ–साथ उसमें समान नागरिक के हिस्सेदारी को सुरक्षित करना और उसके हिस्सेदारी में कोई छेद लगाने का प्रयास करें तो तत्काल बंद करने का प्रयास किया गया। करोड़ों राशन कार्ड जब्त किए गए ताकि राशन की कालाबाजारी रोकी जा सके और गरीब सामान्य नागरिक के घर पर राशन पहुंच सके। जिसने अपने गरीब मां को धुए में रसोई में जलते हुए देखा हो वही धुआं मुक्त रसोई के संकल्प को साकार कर सकता है।
जो किसानों की समस्याओं से दो–चार हो‚ वही किसानों के लिए किसान सम्मान योजना लागू कर सकता है। जो व्यक्ति सामान्य व्यक्ति की सुरक्षा के लिए संकलिप्त हो वहीं आतंकवादियों के हमले के बाद पड़ोसी देश के आतंकवादियों के घर में घुसकर एयर स्ट्राइक करने की हिम्मत दिखा सकता है। यह सारी गुणवत्ता होने के कारण ही अमेरिका‚ जर्मनी‚ ब्रिटेन‚ फ़्रांस जैसे जी ७ देशों के सशक्त राष्ट्राध्यक्षों की तुलना में मोदी को मजबूते बनाते हैं। कभी परमाणु समझौता होने की वजह से ‘सिंह इज किंग’ का नारा लगाया जाता था। आज वैश्विक राजनीति में हमारा पड़ोसी देश चीन हो या पाकिस्तान‚ भारत को अमेरिका का सबसे करीबी देश मानते हैं। यहां ‘मोदी इज किंग’ का उभार हुआ है। विदेश नीति पर नरेन्द्र मोदी की कूटनीति पूरी तरह सफल थी और आज यूरोपीय देशों से भारत का संबंध ७५ वर्षों में सर्वश्रेष्ठ है। हमने पिछले ५ दशकों में पहली बार चीन को आंखें दिखाई है। यह सब उनसे संभव हुआ जिन नरेन्द्र मोदी ने भारत को नर से नारायण बनाने की प्रक्रिया को परखा‚ समझा और साबित किया। भारत को सही अर्थों में वैश्विक गौरवशाली पद पर विराजमान करने का है। भारत को ये गौरवशाली पद अमृत महोत्सव वर्ष के अमृत्व को प्रदान करने का निश्चित तौर पर नरेन्द्र मोदी को ही प्राप्त रहेगा।
आज वैश्विक राजनीति में हमारा पड़ोसी देश चीन हो या पाकिस्तान‚ भारत को अमेरिका का सबसे करीबी देश मानते हैं। यहां ‘मोदी इज किंग’ का उभार हुआ है। विदेश नीति पर नरेन्द्र मोदी की कूटनीति पूरी तरह सफल थी और आज यूरोपीय देशों से भारत का संबंध ७५ ववर्षों में सर्वश्रेष्ठ है। हमने पिछले ५ दशकों में पहली बार चीन को आंखें दिखाई है। यह सब उनसे संभव हुआ जिन नरेन्द्र मोदी ने भारत को नर से नारायण बनाने की प्रक्रिया को परखा‚ समझा और साबित किया॥