खुदरा महंगाई में राहत का आंकड़़ा मिलने के एक ही दिन बाद थोक महंगाई ने झटका दे दिया। थोक महंगाई अगस्त में बढ़कर ११.३९ प्रतिशत हो गई। जुलाई माह में यह आंकड़़ा ११.१६ प्रतिशत था। माना जा रहा है कि महंगाई बढ़ने की वजह गत वर्ष अगस्त के मुकाबले गैर–खाद्य वस्तुओं‚ खनिज तेलों‚ कच्चे तेल व गैस आदि के दामों में हुई वृद्धि है। हालांकि बीते चार महीनों में खाद्य पदार्थों की महंगाई लगातार कम हुई। दरअसल‚ थोक महंगाई बढ़ने से आम आदमी और कंपनियों पर दबाव बढ़ता है। रिजर्व बैंक को ऐसी स्थिति में ब्याज दरें बढ़ानी पड़़ जाती हैं। इससे उद्यमों के लिए मिलने वाले ऋण की लागत बढ़ती है। फलस्वरूप उनके द्वारा निर्मित वस्तुओं की लागत बढ़ने से वे पहले की तुलना में महंगी हो जाती हैं। नतीजतन‚ उपभोक्ताओं के लिए वस्तुएं और सेवाएं महंगी हो जाती हैं। थोक महंगाई के आंकड़े में उछाल का बड़़ा कारक पेट्रोलियम पदार्थों का बढ़ता दाम भी है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की महंगाई अगस्त में ४०.०३ प्रतिशत बढ़ गई। इस समय वाहन इधन के दाम रिकॉर्ड़ उचाई पर हैं। ऐसे में जरूरी है कि पेट्रोल और ड़ीजल पर लगने वाले करों के प्रभाव को ज्यादा से ज्यादा कम किया जाए। इसलिए हो सकता है कि केंद्र सरकार पेट्रोल और ड़ीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का फैसला करे। संभव है कि जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) काउंसिल की लखनऊ में १७ सितम्बर को होने वाली बैठक में इस बाबत विचार किया जाए। न केवल महंगाईपर पेट्रोल–ड़ीजल के बढ़ते दामों के असर बल्कि केरल उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद भी यह आवश्यक हो गया है कि जीएसटी काउंसिल की बैठक में पेट्रोल और ड़ीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का फैसला किया जाए। गौरतलब है कि केरल उच्च न्यायालय में जून के महीने में एक याचिका दायर करके मांग की गई थी कि इन दोनों उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने का आदेश दिया जाए ताकि राज्य सरकारों और केंद्र द्वारा इन पर लगाए जाने वाले करों से उपभोक्ताओं को निजात मिल सके। बेशक‚ इससे केंद्र और राज्य सरकारों के राजस्व में भारी कमी आएगी। उन्हें इन उत्पादों पर कर के जरिए भारी राजस्व मिलता है। लेकिन महंगाईपर अंकुश के लिए ऐसा किया जाना जरूरी है।
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