राजद के प्रदेश महासचिव भाई अरुण कुमार अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रवक्ता इकबाल अहमद एवं युवा राजद के मनोज यादव ने आज कहा कि स्वर्गीय रघुवंश बाबू के स्वर्ग सिधारे पूरे एक वर्ष हो गए हैं। अंतिम समय में जिस प्रकार रघुवंश बाबू के पुत्र के साथ वादा करके मुख्यमंत्री ने वादाखिलाफी किया उससे रघुबंश बाबू की आत्मा को काफी ठेस पहुंची होगी। उन्होंने कहा कि रघुवंश बाबू हमेशा कहा करते थे कि समाजवाद की धारा से पैदा होने वाले नीतीश कुमार आर एस एस एवं बीजेपी के गोद में जिस प्रकार जाकर बैठ गए हैं उससे उन्हें वापस लाना होगा । नीतीश कुमार को सत्ता से हटाने की अजीवन प्रयास करते रहें। जीते जी उन्होंने हमेशा यह प्रयास किया कि नीतीश कुमार एनडीए गठबंधन को छोडकर महागठबंधन में शामिल हो जाए परंतु इसी बीच करोना महामारी ने उन्हें अपने चपेट में ले लिया। वह अस्वस्थ हो गये उसी अस्वस्थता के बीच जदयू के लोग ने रघुवंश बाबू के पुत्र को अपने माया जाल में फंसा कर गलत ढंग से पत्र लिखवाने का काम किया। उस समय उनके पुत्र को विधान परिषद में भी भेजने का वादा किया था परंतु उनके निधन केएक वर्ष पूरा होने को है अभी तक उनके पुत्रों को विधान परिषद क्या पार्टी के सदस्य भी नहीं बना पाए।
जिस प्रकार लालच देकर उनके पुत्र से ता उम्र राजद में रहने वाले नेता को जाली पत्र लिखवा कर राजद को बदनाम करने की कोशिश की ।वह आम जनता जान चुकी है और उनके पुत्र भी अब पछता रहे होंगे। क्यों अपने पिता के अंतिम समय में पिता की धारा के विपरीत काम किया आज भी उनकी आत्मा नीतीश कुमार के कारनामे से कराह रही होगी।
राष्ट्रीय जनता दल के संस्थापकों में से एक रघुवंश प्रसाद सिंह की आज पहली पुण्यतिथि है. एक साल पहले उन्होंने दिल्ली स्थित एम्स में इलाज के दौरान आज ही के दिन दम तोड़ा था. रघुवंश प्रसाद शुरू से ही समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे और सादगी और सिद्धांत उनकी सबसे बड़ी पहचान रही. आरजेडी में रहते देश के ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में कई बड़े काम किये. रघुवंश बाबू के जीवन मे कई उतार चढ़ाव आये पर ना कभी अपना रास्ता बदला और ना ही खुलकर नाराजगी जताई. जीवन के अंतिम दिनों में इतने आहत हुए की फिर वापस नही लौटे. लालू और रघुवंश बाबू की वर्षो की दोस्ती भी कोरोना काल में बिखर गई
राजनीति में रघुवंश बाबू के नाम से विख्यात इस राजनेता की पहली पुण्यतिथि पर मुख्य कार्यक्रम का आयोजन मुजफ्फरपुर में किया जा रहा है. 74 साल की उम्र में दिवंगह हुए रघुवंश बाबू से जुड़ी कई कहानियां हैं जो इस कद्दावर नेता के बारे में काफी कुछ बताती हैं. प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर राजनीति में आये रघुवंश बाबू को उनके स्वभाव के कारण ही विरोधी भी बड़ा मान-सम्मान देते थे.
निधन से कुछ दिन पहले ही छोड़ा था राजद
पार्टी के उपाध्यक्ष पद से पहले ही इस्तीफा दे चुके रघुवंश बाबू ने लालू प्रसाद को चिठ्ठी भेजकर राजद से इस्तीफा दे दिया था. आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को संबोधित करते हुए लिखा था कि जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीछे-पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं. पार्टी नेता कार्यकर्ता और आमजनों ने बड़ा स्नेह दिया. मुझे क्षमा करें. हालांकि राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने रघुवंश बाबू की इस चिट्ठी का जवाब देते हुए कहा था कि वो कहीं नहीं जा रहे.
लालू के संकटमोचक
रघुवंश बाबू को लालू प्रसाद यादव का संकटमोचक कहा जाता था. वह बिहार में पिछड़ों की पार्टी का तमगा हासिल करने वाले RJD का सबसे बड़ा सवर्ण चेहरा भी थे. बिहार और समूचे देश भर में रघुवंश प्रसाद सिंह की पहचान एक प्रखर समाजवादी नेता के तौर पर थी. बेदाग और बेबाक अंदाज वाले रघुवंश बाबू को शुरू से ही पढ़ने और लोगों के बीच में रहने का शौक रहा था.
रघुवंश प्रसाद सिंह राजनेता बाद में बने और प्रोफेसर पहले. बिहार यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने के बाद डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने साल 1969 से 1974 के बीच करीब 5 सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में बच्चों को गणित पढ़ाया. गणित के प्रोफेसर के तौर पर डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने नौकरी भी की और इस बीच कई आंदोलनों में वह जेल भी गए. पहली बार 1970 में रघुवंश प्रसाद टीचर्स मूवमेंट के दौरान जेल गए. उसके बाद जब वो कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आए तब साल 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलन के दौरान फिर से जेल चले गए. इसके बाद तो उनके जेल आने जाने का सिलसिला ही शुरू हो गया.
इमरजेंसी में गई थी नौकरी
जानकारी के मुताबिक इस दौरान वह करीब 11 बार जेल गए. इसमें साल 1974 यानि जेपी के आंदोलन में रघुवंश प्रसाद सिंह ने खूब बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और फिर दोबारा से उन्हें जेल में बंद कर दिया गया. इन दिनों केंद्र और बिहार में कांग्रेस पार्टी की हुकूमत थी. इमरजेंसी के दौरान जब बिहार में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी, तो बिहार सरकार ने जेल में बंद रघुवंश प्रसाद सिंह को प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया. सरकार के इस फैसले के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा और फिर कर्पूरी ठाकुर और जयप्रकाश नारायण के रास्ते पर तेजी से चल पड़े.
इसी दौरान जब साल 1974 में जेपी मूवमेंट के समय में मीसा (MISA) के तहत रघुवंश प्रसाद की गिरफ्तारी हुई और वो मुजफ्फरपुर जेल में बंद किए गए. उसी समय उन्हें मुजफ्फरपुर से पटना के बांकीपुर जेल में ट्रांसफर किया गया, जहां उनकी पहली बार लालू यादव से मुलाकात हुई. उस दौरान लालू पटना यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट लीडर थे और जेपी मूवमेंट में काफी सक्रिय थे. लालू शुरू से ही एक जुझारू नेता थे. बहुत जल्द किसी के साथ घुल-मिल जाना लालू यादव खासियत थी और फिर उसी बांकीपुर जेल में जब से लालू यादव से मुलाकात हुई तभी से लालू-रघुवंश में दोस्ती शुरू हो गई.
रघुवंश प्रसाद सिंह का राजनीतिक सफरनामा
रघुवंश साल 1977 से 1979 तक वे बिहार सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे. इसके बाद उन्हें लोकदल का अध्यक्ष भी बनाया गया, फिर साल 1985 से 1990 के दौरान रघुवंश प्रसाद लोक लेखांकन समिति के अध्यक्ष भी रहे. लोकसभा के सदस्य के तौर पर उनका पहला कार्यकाल साल 1996 से शुरू हुआ. साल 1996 के लोकसभा चुनाव में वो निर्वाचित हुए और उन्हें बिहार राज्य के लिए केंद्रीय पशुपालन और डेयरी उद्योग राज्यमंत्री बनाया गया. लोकसभा में दूसरी बार रघुवंश प्रसाद सिंह साल 1998 में निर्वाचित हुए और साल 1999 में तीसरी बार वो लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. साल 2004 में चौथी बार उन्हें लोकसभा सदस्य के रूप में चुना गया और 23 मई 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पांचवी बार जीत दर्ज की.
लालू से दोस्ती के कारण ठुकरा दिया ऑफर
रघुवंश प्रसाद सिंह के मुताबिक UPA 2 में भी उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल होने का मौका मिला था, लेकिन लालू यादव की दोस्ती की वजह से ही उन्होंने मनमोहन सिंह के मंत्री पद के ऑफर को ठुकरा दिया. रघुवंश प्रसाद सिंह अपने दो भाइयों में बड़े थे. उनके छोटे भाई रघुराज सिंह का पहले ही देहांत हो चुका है. रघुवंश प्रसाद सिंह की धर्मपत्नी जानकी देवी भी अब इस दुनिया में नहीं हैं. रघुवंश बाबू को दो बेटे और एक बेटी है. रघुवंश प्रसाद सिंह के परिवार से उनके अलावे कोई दूसरा सदस्य राजनीति में सक्रिय नहीं था.
रघुवंश प्रसाद सिंह से ये जानना चाहा था कि आखिर उनके अलावे परिवार के किसी दूसरे सदस्य ने राजनीति में कदम क्यों नहीं रखा तो रघुवंश बाबू बड़ी बेबाकी से कहा था कि आज जिस हालत में हम अभी पड़े हैं, अपने बच्चों को भी उसी में धकेल देते ये हरगिज सही नहीं होता. ये भी कोई भला जिंदगी है पूरे जीवन भर त्याग, त्याग और सिर्फ त्याग.