बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के बाद जदयू में बदलाव का जो क्रम आरंभ हुआ था, वह अब दूसरे चरण में दाखिल होता नजर आ रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के बाद ललन सिंह ने सख्त निर्णय लेते हुए विधानसभा व लोकसभा प्रभारियों को हटाने का फैसला किया है। हालांकि इसे अप्रत्याशित नहीं माना जा रहा है क्योंकि जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी बिहार यात्रा के दौरान मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर में इस तरह के बदलाव के संकेत दिए थे। उनके कहने के अंदाज और ललन सिंह के सख्त फैसले को देखकर तो यही लग रहा है कि यह तो शुरुआत है। बदलाव की आंधी अभी आने ही वाली है।
बिहार यात्रा के क्रम में पहले मुजफ्फरपुर और बाद में समस्तीपुर में पत्रकाराें से बात करते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था कि पार्टी को नंबर वन बनाने के लिए जो भी अपेक्षित बदलाव जरूरी होंगे, वे किए जाएंगे। उन्होंने टाॅप टू बॉटम बदलाव की बात भी कही थी। उसके बाद से ही यह उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी के संगठन में बदलाव होगा। हालांकि इसके स्वरूप को लेकर कुशवाहा ने कुछ भी नहीं कहा था। उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने फेरबदल की शुरुआत कर दी है। पहला निशाना विधानसभा व लोकसभा प्रभारी बने। उन्होंने सभी को तत्काल प्रभाव से पद से हटा दिया है।
राजनीति के जानकार इसे संगठन में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह के प्रभाव को कम करने की कवायद मान रहे हैं। उनका मानना है कि जदयू के वर्तमान संगठन में आरसीपी से जुड़े लोगों की पकड़ है। टाॅप लेवल पर हुए बदलाव के बाद उनकी सोच को उसी रूप में ग्राउंड लेवल तक ले जाने के लिए इस तरह के फेरबदल स्वाभाविक ही हैं। जदयू कार्यकर्ताओं की दिलचस्पी इस बात में है कि हाल के परिवर्तन के बाद उनकी आवाज ऊपर तक पहुंचने की क्या काेई व्यवस्था बनती है? क्या कोई ऐसा बदलाव होगा जिससे सरकार और संगठन के शीर्ष लोगों तक कार्यकर्ताओं की आवाज पहुंच सके? यदि ऐसा कुछ संभव हुआ ताे तो आने वाले चुनाव में पार्टी को इसका फायदा जरूर मिलेगा।