केंद्र एवं केंद्रीय सार्वजनिक कंपनियों की संपत्ति ही मौद्रीकरण योजना में कंपनियों के प्रबंधन में दी जाएगी। सरकार को इससे अगले ४ वर्षों में ६००००० करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा जो सरकार के अनुमानित ४३ लाख करोड़ रुपये के खर्च का मात्र १४ फीसद है। पाइप लाइन में आने वाली अधिकांश योजनाएं ऐसी हैं‚ जिनमें बड़े पैमाने पर पूंजी की आवश्यकता है‚ जिन के निर्माण में काफी समय लगा है और जिन से होने वाले लाभ दूरगामी हैं। अधिकांश योजनाएं ब्राउनफील्ड है (जिन का निर्माण हो चुका है) और अब ऑपरेशन के लिए तैयार हैं। निजी कंपनियों को लीज पर देने की व्यवस्था के पीछे जो तर्क दिए जाते हैं वे हैं निजी क्षेत्र को इन्फ्रास्ट्रक्चर में पूंजी लगाने के लिए प्रोत्साहित करना‚ उनकी प्रबंध कुशलता का लाभ उठाना‚ सरकार की वित्त व्यवस्था पर बोझ कम करना‚ प्रोजेक्ट की उत्पादकता बढ़ाना एवं सेवाओं की गुणवत्ता में वृद्धि आदि।
सरकारी उद्योगों की प्रबंध कुशलता पर बराबर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं‚ बड़े पैमाने पर पूंजी लगने के बावजूद बहुत से सरकारी प्रोजेक्ट घाटे में चलते हैं। सरकारी एवं निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास (पीपीपी मॉडल) से सभी संबद्ध पक्षों को लाभ होगा। कोविड–१९ के कारण सरकार का बजटीय घाटा निर्धारित स्टैंडर्ड जीडीपी के ३.५ फीसद से काफी ऊपर जा चुका है। २०१९–२० में घाटा ४.६ फीसद था जो बढ़कर २०२०–२१ में ६.८ फीसद हो गया। कुल खर्च अनुमान से १३ फीसद अधिक हुआ। पूंजीगत खर्चों के लिए इस बजट में ५.५४ लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था‚ जिसमें अधिकांश इन्फ्रास्ट्रक्चरर के लिए था। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए २२३८४६ करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था जितना पहले किसी बजट में नहीं हुआ। इन्फ्रास्ट्रक्चरर के लिए पूंजी जुटाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए २०२१–२२ के बजट में मुद्रीकरण पाइप लाइन योजना का प्रारूप दिया गया था‚ जिसके कार्यान्वयन की योजना वित्त मंत्री ने २३ अगस्त २०२१ को प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय राजमार्ग एवं पावर क्षेत्र में जो मुद्रीकरण पहले किए जा चुके हैं‚ उनकी कीमत क्रमशः १७००० करोड रु पये एवं ७७०० करोड़ रु पये है। प्रस्तावित मौद्रीकरण से अगले ४ वर्षों में सरकार को सड़कों और राजमार्गों से १.६ लाख करोड़ रु पये‚ रेलवे से १.५२ लाख करोड़ रुपये‚ पावर ट्रांसमिशन लाइन से ४५‚००० करोड़ों रु पये‚ टेलीकॉम से ३११०० करोड रु पये‚ वेयरहाउसों से २८९०० करोड रुपये‚ खदानों से २८७४६ करोड़ रुपये‚ एयरपोर्ट से २०७८० करोड रुपये‚ शिपिंग पोर्ट्स से १२८२८ करोड़ रुपये‚ स्टेडियमों से ११४५० करोड़ रुपये और आईटीडीसी के होटलों और कॉलोनियों से १५०० करोड़ रुपये का राजस्व अनुमानित है।
मौद्रीकरण से प्राप्त राजस्व को ग्रीन फील्ड (नये) प्रोजेक्ट्स‚ वर्तमान प्रोजेक्ट के रखरखाव एवं समाज कल्याण योजनाओं के लिए खर्च किया जाएगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस के लिए निजी कंपनियों के साथ साझेदारी के साथ मौद्रीकरण एक अच्छा विकल्प है। विभिन्न शहरों में चल रहे मेट्रो प्रोजेक्ट पब्लिक प्राइवेट सहयोग के उदाहरण हैं। पीपीपी मॉडल के अंतर्गत साझेदारी के अनेक रूप हो सकते हैं‚ जैसे ऑपरेट मेंटेन ट्रांसफर (ओएमटी)‚ ऑपरेशन मेंटेनेंस एवं डेवलपमेंट (ओएमडी)‚ बिल्ड ऑपरेट ट्रांसफर (बिलओटी)‚ बिल्ड ऑपरेट लीज ट्रांसफर आदि। मॉडल का चुनाव प्रोजेक्ट की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। जिन अन्य साधनों से पूंजी का प्रबंध किया जाता है इनमें प्रमुख हैं बैंक और वित्तीय संस्थाओं से सहायता‚ अनिवेश (डिसइन्वेस्टमेंट)‚ विदेशी निवेश (एफडीआई)‚ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं जैसे विश्व बैंक‚ आईएमएफ‚ एशियन डेवलपमेंट बैंक से अनुदान आदि। बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा ऋण की व्यवस्था रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की गाइडलाइंस के अंतर्गत होता है। कर्ज देने के पहले कंपनी की आर्थिक स्थिति‚ प्रोजेक्ट की अर्थक्षमता (वायेबिलिटी)‚ कंपनी की प्रोजेक्ट चलाने की एवं कर्ज वापस करने की क्षमता जांची जाती है। बैंक और वित्तीय संस्थाएं कंपनी के शेयर/बॉन्ड में भी निवेश में कर सकती हैं‚ गारंटी भी दे सकती है। सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की फंडिंग के लिए एक नेशनल बैंक फॉर फाइनांसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट की स्थापना भी की है। शुरू में ७००० इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स इससे लाभान्वित होंगे। विदेशी निवेश इन्फ्रास्ट्रक्चर फंडिंग का एक अच्छा साधन बनता जा रहा है विशेष रूप से एफडीआई फंडिंग जो स्थाई होती है और लाभ दूरगामी होता है। इसके लिए विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के अधिक प्रयत्न करने चाहिए‚ लाइसेंसिंग और लालफीताशाही हटाने और निवेश की प्रक्रिया को और सरल करने की आवश्यकता है।
हाल के वर्षों में विश्व बैंक ने देश में नदियों पर बने बड़े–बड़े बांधों की सुरक्षा और देखभाल के लिए‚ पश्चिम बंगाल इनलैंड वॉटर ट्रांसपोर्ट लॉजिस्टिक एवं विकास के लिए और शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि से संबंधित प्रोजेक्ट्स के लिए ऋण दिए हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चरर प्रोजेक्ट्स में निजी क्षेत्र की भागीदारी को लेकर जो विवाद होते रहे हैं‚ उनमें प्रमुख हैं निजी कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं का शोषण एवं सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग। उपभोक्ताओं से मनमानी कीमत वसूल करने पर प्रभावशाली नियंत्रण की आवश्यकता है। संपत्ति के प्रबंधन और उपयोग की समय–समय पर समीक्षा और नियंत्रण भी आवश्यक है। संपत्ति का स्वामित्व सरकार के ही हाथ में हो तो अच्छा है‚ निजी क्षेत्र को पूंजी निवेश और प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित किया जाए और उसकी भागीदारी बढ़ाई जाए।