हिमालय को एशिया का जलस्तंभ या वाटर टावर इसलिए कहा जाता है कि इस पर बर्फ के रूप में एक महासागर जितना पानी जमा है जो सिंधु‚ गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी सदानीरा महानदियों को जन्म देता है। इन्हीं तीन नदियों के बेसिन में विश्व की सर्वाधिक लगभग ९० करोड जनसंख्या केंद्रित है। इतना पानी अपने में समेटे रखने वाले पर्वतराज का मिजाज बिगड जाए तो जलप्रलय भी मच सकती है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार हिमालय पर हजारों की संख्या में हिमनद झीलें बनी हुई हैं‚ जिनमें कुछ के फटने से विनाशकारी बाढ का खतरा बना हुआ है। जून‚ २०१३ में ऐसी ही झील चोराबाडी के फटने से केदारनाथ महाआपदा आई थी। उसके बाद फरवरी‚ २०२१ में लगभग ऐसी ही परिस्थितियों में ऋषिगंगा और धौलीगंगा में सेकडों लोगों को लीलने वाली बाढ आई थी।
भारत के हिमालयी क्षेत्र में १९२६ में पहली बार ग्लेशियर झील फटने से जम्मू कश्मीर में शियोक ग्लेशियर से आई इस बाढ की चपेट में आकर अबुदान गांव सहित आसपास का ४०० किलोमीटर का इलाका बर्बाद होने की घटना दर्ज हुई थी। हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के वैज्ञानिकों ने पता लगाया था कि १९८१ और १९८८ में हिमाचल प्रदेश के शौन गैरांग ग्लेशियर से बनी कई झीलें अचानक खाली हो गइ। नेपाल के इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डवलपमेंट (इसीमोड) द्वारा समय–समय पर किए गए कई अध्ययनों में भी हिमालयी क्षेत्र में ग्लोबल वामिग आदि कारणों से हिमनद झीलों की संख्या बढने की बात सामने आई थी।
हिमनद झील फटने (ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड) से उत्पन्न बाढ की घटनाएं हिमालय ही नहीं‚ बल्कि यूरोप और अमेरिका में भी घटती रहती हैं। चूंकि हिमालय सबसे युवा पर्वतमाला होने के साथ ही इसके उत्तर की ओर खिसकते जाने से यहां भूगर्वीय हलचलें भी अधिक होती हैं‚ और भूआकृतियों में भी बदलाव अधिक होता है‚ इसलिए हिमनद झीलों के फटने से उत्पन्न बाढ का खतरा यहां ज्यादा रहता है। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा ग्लेशियरों के अध्ययन के लिए आनंद पटवर्धन की अध्यक्षता वाले उच्चस्तरीय अध्ययन दल की रिपोर्ट में इस तरह की घटनाओं के लिए मध्य नेपाल‚ भूटान और पूर्वी हिमालय के क्षेत्र अधिक संवेदनशील बताए गए थे। इस अध्ययन दल‚ जिसमें पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट भी थे‚ ने पूर्वी नेपाल के दूधकोशी क्षेत्र की मिंगबो घाटी में ३ सितम्बर‚ १९७७ को आई हिमनद विस्फोटजनित बाढ का उल्लेख भी किया है। लेकिन इस अध्ययन के बाद केदारनाथ में चोराबाड़़ी झील के फटने से १६ एवं १७ जून‚ २०१३ को विनाशकारी बाढ आई थी। अध्ययन दल ने सतलुज के उद्गम क्षेत्र में ३८‚ तीस्ता में ७‚ धौलीगंगा में भी ७ और चेनाब के उद्गम क्षेत्र में ३१ हिमनद झीलों का उल्लेख किया था। जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जून‚ २०२१ में जारी एटलस के अनुसार गंगा बेसिन में मौजूद ४‚७०७ हिमनद झीलों में से सबसे ज्यादा २‚४३७ कोसी बेसिन में हैं। इसके बाद घाघरा में १‚२६० हिमनद झीले हैं। गंडक में ६२४‚ ऊपरी गंगा बेसिन में २९५‚ शारदा में ५५ और यमुना बेसिन में ३६ हिमनद झीलें हैं। गंगा नदी जलग्रहण क्षेत्र की झीलें २०‚६८५ हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हैं।
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के निदेशक एवं जाने माने भूविज्ञानी ड़ॉ. महेन्द्र प्रताप सिंह बिष्ट के अनुसार हिमालय के निरंतर उठते जाने से भूआकृति भी बदल रही है। इसके साथ ही ग्ल्ेशियरों के पिघलने की गति बढने के कारण ऐसी झीलों की संख्या काफी बढ रही है। ड़ॉ. बिष्ट का कहना है कि ऐसी झीलों या तालाबों के निकट या उनके ऊपर हिमखंड स्खलन‚ भूस्खलन‚ जलसंग्रहण क्षेत्र में बादल फटने‚ बडे भूकंप और भूगर्भीय हलचल से इस तरह की ग्लेशियल लेक या फट जाती हैं जिससे एक साथ विशाल जलराशि मोरेन के मिट्टी‚ पत्थर‚ रेत–बजरी आदि मलबे के साथ ढलान वाली निचली घाटी क्षेत्र में भारी तबाही मचा देती है। इस तरह की झीलों के फटने का ज्यादा खतरा भूटान‚ तिब्बत‚ नेपाल‚ भारत और पाकिस्तान को शामिल किया गया है। भारतीय हिमालय के पूर्वी हिस्से को ज्यादा संवेदनशील चिह्नित किया गया था लेकिन केदारनाथ की बाढ के बाद वैज्ञानिकों का ध्यान उत्तराखंड हिमालय पर केंद्रित हुआ तो स्थिति और भी चौंकाने वाली सामने आई। भारतीय भूगर्भ विज्ञान सर्वेक्षण विभाग के पूर्व महानिदेशक ड़ॉ. रनजीत रथ ने हाल ही विभागीय सर्वे के आधार पर खुलासा किया था कि उत्तराखंड हिमालय की ४६८ हिमनद झीलों में से १३ झीलें बाढ की दृष्टी से काफी संवेदनाील हैं।
ड़ॉ. रथ के अनुसार जून‚ २०१३ की केदारनाथ के ऊपर चोराबाडी हिमनद झील के फटने से आई बाढ के बाद भूगर्भ विज्ञानसर्वेक्षण विभाग ने २०१४ से लेकर २०१६ तक हिमालयी हिमनद झीलों का अध्ययन किया था। इस सर्वे में अकेले ऋषिगंगा और धौलीगंगा के उद्गम क्षेत्र में ७१ झीलें पाई गइ। इंडियन सोसाइटी ऑफ रिमोट सेंसिंग के जर्नल में २०१६ में प्रकाशित के. बाबू गोविन्धाराज और के. विनोद कुमार के शोधपत्र ‘इनवेंटरी ऑफ ग्ेलशियल लेक्स एंड इट्स इवोल्यूशन इन उत्तराखंड हिमालया यूजिंग टाइम सीरीज सेटेलाइट डाटा’ के अनुसार उत्तराखंड हिमालय में चिह्नित कुल ५ तरह की ३६२ हिमनद झीलों में से ८ संवेदनाील हैं‚ जो विभिन्न कारणों से फट कर निचली घाटियों में विनाशकारी बाढ ला सकती हैं। इन दानों में एक वैज्ञानिक इसरो और दूसरा नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर से संबंधित है। यह अध्ययन अमेरिकी उपग्रह कोरोना और हैक्साजन द्वारा द्वारा लिएगए उपग्रह चित्रों के आधार पर किया गया है।
ये उपग्रह चित्र सीआईए द्वारा १९९५ में सार्वजनिक किए गए। ड़ॉ. बिष्ट के अनुसार पुराने उपग्रह चित्रों के आधार पर किसी हिमनद झील को खतरनाक या संवेदनशील घोषित करना व्यावहारिक नहीं है क्योंकि ग्लेशियरों के सिकुडने से इन झीलों का आकार बदलने के साथ ही इनकी संख्या में भी बदलाव आ जाता है। कुछ स्थानों पर एक ग्लेशियर की जगह तीन–तीन ग्लेशियर बन चुके हैं। इसलिए इनकी निगरानी का डाटा जरूरी है। ड़ॉ. बिष्ट के अनुसार फिलहाल सुप्रा टाइप की बसुधारा झील संवेदनशील नजर आ रही है‚ जिसकी मॉनिटरिंग जरूरी है। प्रख्यात पर्यावरणविद् पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट का कहना है कि हिमालय अत्यंत गंभीर विषय है जिसके लिए केंद्र सरकार में अलग से विभाग होना चाहिए और भारत सरकार को हिमालय से संबंधित ५ देशों का साझा मंच बनाने की दिशा में पहल करनी चाहिए।