भारत में एक दिन में कोविड-19 के 42,618 नए मामले सामने आने से संक्रमण के कुल मामलों की संख्या 3,29,45,907 हो गयी जबकि उपचाराधीन मरीजों की संख्या 4,05,681 पर पहुंच गयी। उपचाराधीन मामलों में लगातार चौथे दिन वृद्धि दर्ज की गयी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के शनिवार सुबह आठ बजे जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 330 और मरीजों के जान गंवाने से इस महामारी से मरने वाले लोगों की संख्या 4,40,225 पर पहुंच गयी।
मंत्रालय ने बताया कि 24 घंटे की अवधि में उपचाराधीन मरीजों की संख्या में 5,903 की वृद्धि हुई। उपचाराधीन मरीजों की कुल संख्या संक्रमण के कुल मामलों का 1.23 प्रतिशत है जबकि कोविड-19 से स्वस्थ होने की राष्ट्रीय दर 97.43 प्रतिशत है। आंकड़ों के मुताबिक, दैनिक संक्रमण दर 2.50 प्रतिशत और साप्ताहिक दर 2.63 प्रतिशत है।
पिछले 71 दिनों से यह तीन प्रतिशत से कम रही है। देश में पिछले साल सात अगस्त को संक्रमितों की संख्या 20 लाख, 23 अगस्त को 30 लाख और पांच सितंबर को 40 लाख से अधिक हो गई थी। वहीं, संक्रमण के कुल मामले 16 सितंबर को 50 लाख, 28 सितंबर को 60 लाख, 11 अक्टूबर को 70 लाख, 29 अक्टूबर को 80 लाख और 20 नवंबर को 90 लाख के पार चले गए। देश में 19 दिसंबर को ये मामले एक करोड़ के पार, चार मई को दो करोड़ के पार और 23 जून को तीन करोड़ के पार चले गए थे।
Antimicrobial कोरोना मरीजों में बढ़ा रहा फंगल इंफेक्शन का खतरा, ICMR ने चेताया
कोरोना संक्रमण (Corona Epidemic) के लिए जिम्मेदार म्यूटेंट लगातार अपना रूप-स्वरूप बदल रहे हैं. इसके आधार पर ही कोरोना से जंग के हथियार बनीं दवाएं और वैक्सीन (Corona Vaccine) भी अपनी-अपनी प्रभाविकता बढ़ाने के लिए तेजी से सुधार ला रहे हैं. फिलवक्त तो कोरोना संक्रमण से बचने के लिए कोविड-19 (COVID-19) टीका ही सबसे ज्यादा प्रभावी माना जा रहा है. हालांकि दुनिया भर के विज्ञानी कोरोना संक्रमित मरीजों के बेहतर इलाज के लिए दिन-रात शोध में जुटे हैं. उनकी इस जंग में कोरोना का डेल्टा वेरिएंट और उसके म्यूटेंट भारी सिरदर्द साबित हो रहे हैं. इस कड़ी में कोरोना मरीजों को दी जाने वाली दवाओं को लेकर अब आईसीएमआर (ICMR) ने भी एक बड़े खतरे से आगाह किया है. आईसीएमआर की हालिया रिसर्च में दावा किया गया है कि एंटीमाइक्रोबियल का अधिक इस्तेमाल कोरोना मरीजों में फिर से फंगल इंफेक्शन का खतरा बढ़ा रहा है.
क्या है एंटीमाइक्रोबियल… समझें
आईसीएमआर की रिसर्च से सामने आए खतरे को सामने लाई है एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस रिसर्च एंड सर्विलांस नेटवर्क की सालाना रिपोर्ट. हालांकि इस रिसर्च का सार जानने से पहले यह जान लेना भी जरूरी है कि एंटीमाइक्रोबियल है क्या चीज? मेडिकल क्षेत्र में किसी जख्म को संक्रमण से बचाने या किसी बीमारी के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल होता है. इसी तर्ज पर इंसानों, जानवरों और पेड़-पौधों को फंगल इंफेक्शन से बचाने के लिए एंटीमाइक्रोबियल का प्रयोग किया जाता है. इसका अधिक इस्तेमाल ही अब फंगल इंफेक्शन से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित कर रहा है.
बचाव का रास्ता भी दिखाया आईसीएमआर ने
आईसीएमआर की रिसर्च के मुताबिक एंटीमाइक्रोबियल के ज्यादा इस्तेमाल से पैथोजेन बनते हैं. यानी इस प्रक्रिया में उस बैक्टीरिया और फंगस का जन्म होता है, जो दोबारा फंगल इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार होता है. आमतौर पर फंगल इंफेक्शन दवाई के इस्तेमाल के बाद भी जल्दी खत्म नहीं होते हैं. इसे विज्ञान कि भाषा में एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस कहा जाता है. इस पैथोजेन के चलते मरीजों में निमोनिया और युरिनरी ट्रैक में संक्रमण सामने आता है. ऐसे में अब आईसीएमआर की रिसर्च में चिंता जताई गई है कि कोरोना संक्रमण के चलते फंगल इंफेक्शन का खतरा भी साथ-साथ बढ़ रहा है. आईसीएमआर ने रिसर्च के लिए दिल्ली के अलग-अलग 30 सेंटरों से डाटा एकत्रित किया था. हालांकि राहत की बात यह है कि आईसीएमआर ने यह भी बताया है कि फंगल इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार पैथोजेन का उपचार कैसे किया जा सकता है. इसके मुताबिक एसिनेटोबैक्टर बॉमनी और क्लेबसिएला न्यूमोनिया जैसे रोगजनक भी हैं जो दवा प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा रहे हैं.