देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इसकी शुरु आत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने १२ मार्च २०२१ को की थी। यह वही ऐतिहासिक दिन है जब ब्रिटिश हुकूमत के नमक कानून के विरोध में महात्मा गांधी के नेतृत्व में ९१ वर्ष पूर्व (१२ मार्च १९३०) दांडी मार्च निकाला गया था। इसके नाते अंग्रेजों को इस काले कानून को वापस लेना पड़ा था। प्रधानमंत्री द्वारा शुरू आजादी के इस अमृत महोत्सव के क्रम में ७५ हफ्ते (१५ अगस्त २०२३ तक) चलने वाले कार्यक्रमों के दौरान जंगे आजादी के उन तमाम शहीदों और जिन लोगों ने गुलामी की जंजीर तोड़ने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया‚ उनको याद किया जाएगा। गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ‚ जिसके मौजूदा पीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं‚ उसका पूवाचल के शैक्षिक के साथ राजनैतिक पुनर्जागरण और आजादी की लड़ाई में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कम लोगों को पता होगा कि आज से १३६ साल पूर्व १८८५ में जब एओ ह्यूम की अध्यक्षता में ब्रिटिश हुकूमत के प्रति आवाम के गुस्से को कम करने के लिए बतौर सेफ्टी वाल्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी‚ उस समय भी गोरक्षपीठ आजादी के आंदोलन का अलख जगा रहा था। अंग्रेज भी इसे जानते थे। यही वजह रही कि १८८५ में गोरक्षपीठ के महंत गोपालनाथ जी पर अंग्रेजों ने आरोप लगाया कि वह हुकूमत के विरोध में आवाम को भड़का रहे हैं। इस आरोप में उनको गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें रिहा कराने के लिए उनके शिष्य जोधपुर के राजा ने अंग्रेजों से बात की‚ लेकिन अंग्रेज नहीं माने। फिर तत्कालीन नेपाल नरेश ने इस मामले में हस्तक्षेप किया। गोरखपुर में गोरखा रेजीमेंट थी। नेपाल के राजा ने नेपाल के लोगों की गोरक्षपीठ के प्रति श्रद्धा का हवाला देते हुए कहा कि अगर महंत गोपालनाथ को रिहा नहीं किया गया तो गोरखा रेजीमेंट ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर सकती है। इसके बाद महंथ गोपालनाथ जी को रिहा किया गया। जैसे–जैसे आजादी की लड़ाई व्यापक होती गई। लोग ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में मुखर होते गए। वैसे–वैसे गोरक्षपीठ की भी भूमिका भी इसमें बढ़ती गई। जिस दौरान गांधीजी के नेतृत्व में आजादी का आंदोलन चरम पर था‚ उस समय मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दादागुरु ब्रह्मलीन दिग्विजयनाथ (बचपन का नाम नान्हू) का गोरखनाथ मंदिर में आगमन हो चुका था। ॥ मूलतः वह चित्तौड़ (मेवाड़) के रहने वाले थे। वही चित्तौड़ जहां के महाराणा प्रताप आज भी देश प्रेम के जज्बे और जुनून की मिसाल हैं। जिन्होंने अपने समय के सबसे शक्तिशाली मुगल सम्राट अकबर के सामने घुटने टेकने की बजाय परिवार सहित जंगलों की खाक छानी। घास की रोटी खाना पसंद किया‚ पर तमाम प्रलोभनों के बावजूद शक्तिशाली मुगल सम्राट अकबर के सामने समर्पण नहीं किया। हल्दीघाटी में जिस तरह अपने सीमित संसाधनों के साथ अकबर की फौज का मुकाबला किया‚ वह खुद में इतिहास के स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। आज भी हर राष्ट्रप्रेमी के लिए राणा प्रताप मिसाल हैं॥। चित्तौड़ की माटी की तासीर का असर दिग्विजयनाथ पर भी था। अपने विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने मंदिर प्रागंण में अपने धर्म का प्रचार कर रहे इसाई समुदाय के लोगों को मय तंबू–कनात भागने को विवश कर दिया। उस समय गांधीजी की अगुवाई में पूरे देश में कांग्रेस की आंधी चल रही थी। दिग्विजयनाथ भी इससे अछूते नहीं रहे। उन्होंने देश की आजादी के लिए जारी क्रांतिकारी आंदोलन और गांधीजी के नेतृत्व में जारी शांतिपूर्ण सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक ओर जहां उन्होंने समकालीन क्रांतिकारियों को संरक्षण‚ आर्थिक मदद और अस्त्र–शस्त्र मुहैया कराई तो वहीं दूसरी ओर गांधीजी के असहयोग आंदोलन के समर्थन में स्कूल का परित्याग कर दिया। चौरीचौरा की घटना (चार फरवरी १९२२) के करीब सालभर पहले आठ फरवरी १९२१ को जब गांधीजी का पहली बार गोरखपुर आगमन हुआ था‚ वह रेलवे स्टेशन पर उनके स्वागत और सभास्थल पर व्यवस्था के लिए अपनी टोली (स्वयंसेवक दल) के साथ वहां मौजूद थे। नाम तो उनका चौरीचौरा की घटना में भी आया था‚ पर वह ससम्मान बरी हो गए। ॥ देश के अन्य नेताओं की तरह चौरीचौरा घटना के बाद गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने के फैसले से वह भी असहमत थे। बाद के दिनों में गांधीजी द्वारा मुस्लिम लीग को तुष्ट करने की नीति से उनका कांग्रेस और महात्मा गांधी से मोह भंग होता गया। इसके बाद उन्होंने वीर सावरकर और भाई परमानंद के नेतृत्व में गठित अखिल भारतीय हिंदू महासभा की सदस्यता ग्रहण कर ली। महाराणा प्रताप के देशभक्ति के जज्बे–जुनून से वह बेहद प्रभावित थे। यही वजह है कि १९३२ में उन्होंने उस समय के लिहाज से बेहद पिछड़े पूवाचल के शैक्षिक पुनर्जागरण के लिए जिस शैक्षिक प्रकल्प की स्थापना की उसका नाम ही महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद रखा। इसके पीछे मकसद था कि इसमें पढ़ने वाले विद्यार्थियों में भी देश के प्रति वही जज्बा‚ जुनून और संस्कार पनपे जो प्रताप में था। इसमें पढ़ने वाले बच्चे प्रताप से प्रेरणा लें। उनको अपना रोल मॉडल मानें। इसी क्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चौरीचौरा शताब्दी वर्ष (४ फरवरी २०२१) से सालभर तक शहीदों से जुड़े स्थलों पर चलाए जाने वाले कार्यक्रमों घोषणा की। इसके पीछे भी यही उद्देश्य है कि अनेकानेक कार्यक्रमों के बहाने देश पर अपना सब कुछ कुर्बान करने वाले मां भारती के जाबांज सपूतों को भावी पीढ़ी जाने और उनसे प्रेरणा लें। आजाद भारत को लेकर उन लोगों ने जो सपना देखा था उसे पूरा करने में मददगार बनें‚ ताकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुसार हर लिहाज से श्रेष्ठ‚ सशक्त और स्वावलंबी भारत का निर्माण हो सके। प्रधानमंत्री इसी नाते आजादी के अमृत महोत्सव को जन भागीदारी का अभियान बनाना चाहते हैं। इसका उद्देश्य जंगे आजादी के उन गौरवान्वित करने वाले पलों को याद करना है‚ जिससे देश का इतिहास जुड़ा है। ऐसा हो भी रहा है। महोत्सव के शुरु आत होने के साथ ही देश ही नहीं विदेशों में रहे भातीय मूल के लोग बड़ी संख्या में इससे जुड़ रहे हैं।
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मुंबई में NCP (अजित गुट) नेता बाबा सिद्दीकी की शनिवार रात को गोली मारकर हत्या कर दी गई। उन पर...