बिहार कांग्रेस में बड़े बदलाव का फैसला लगभग तय हो चुका है. बिहार की जातीय राजनीति और बदलाव को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने फैसला लिया है कि बिहार के प्रदेश अध्यक्ष और सवर्ण चेहरे मदन मोहन झा की छुट्टी कर दी जाएगी. सूत्रों से मिली जानकारी की मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा की जगह दलित विधायक राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है. जानकारी के मुताबिक कभी भी इसकी घोषणा की जा सकती है. कांग्रेस ने बिहार में अब दलित चेहरे के जरिये दलित वोट बैंक कब्जा करने की रणनीति बनाई है. बता दें कि राजेश राम औरंगाबाद के कुटुंबा के विधायक हैं.
कांग्रेस आलाकमान बिहार में बड़े बदलाव पर काम कर रहा है. बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के बदलने के साथ इस बार जंबो कमिटी बनाने की तैयारी है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस बार 8 कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाएंगे. इससे पहले अध्यक्ष के अलावा बिहार में 4 कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए थे, जिसे बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई थी. इस बार बिहार को 8 जोन में बांटकर 8 कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने की तैयारी है. इसके साथ ही उपाध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों की लंबी फौज तैयार की गई है. बताया जा रहा है कि 100 से ज्यादा पदाधिकारी इस बार बनाये गए हैं जिसे बिहार में कांग्रेस की जमीन मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी.
सवर्ण की जगह दलित राजनीति की रणनीति
बिहार की मौजूदा राजनीति और भविष्य को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने दलित वोट बैंक को साधने की रणनीति बनाई है. यही कारण है कि कांग्रेस आलाकमान ने सबसे पहले सवर्ण बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल को हटाकर दलित चेहरा भक्त चरण दास को बिहार प्रभारी बनाया. भक्त चरण दास ने बिहार प्रभारी बनने के बाद पूरे बिहार का भ्रमण किया और कांग्रेस आलाकमान को रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट के आधार पर दलित चेहरे राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपे जाने की बात लगभग तय हो चुकी है.
कांग्रेस का जातीय समीकरण टूटा तो जनाधार खिसका
बिहार में दलित वोट बैंक लगभग 16 फीसदी मानी जाती है जो बिहार में किसी भी पार्टी को सत्ता में लाने के लिए निर्णायक साबित होती है. कांग्रेस कभी इसी दलित वोट बैंक के सहारे सत्ता में रहती थी. हालांकि तब गठजोड़ दलित, मुस्लिम और दलितों का हुआ करता था. 1985 तक बिहार विधानसभा में दलितों के लिए सुरक्षित सीटों पर कांग्रेस का एकाधिकार था. 1985 में दलितों के लिए सुरक्षित 48 सीटों में 33 सीटों पर कब्जा था. 2010 के चुनाव में 38 सुरक्षित सीटो में 18 पर कब्जा था. पर धीरे धीरे यह पकड़ खत्म होती गई और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई.
दलित वोट बैंक में बिखराव रोकने की कोशिश
वर्ष 2015 में कांग्रेस गठबंधन की सरकार में सत्ता में तो रही पर सिर्फ 5 सुरक्षित सीटे ही कांग्रेस की झोली में आईं. इन दिनों बिहार में दलित वोट बैंक में बिखराव साफ देखा जा सकता है. एक तरफ एनडीए के सहयोगी जीतन राम मांझी दलित वोट बैंक पर दावा करते हैं तो दूसरी तरफ चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस दलित वोट बैंक पर दावा करते हैं. आरजेडी भी पार्टी में श्याम रजक को लाकर और संगठन में जगह देकर दावा करती है. जेडीयू महादलित के नाम पर पहले से दावा करती रही है. ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि दलित वोट बैंक में हुए बिखराव को साधकर बिहार में जनाधार बढ़ाया जा सकता है.