अफगानिस्तान पर तालिबानी आतंकवादियों के कब्जे के बाद अमेरिका सहित दुनिया के विभिन्न देशों की प्राथमिकता अपने नागरिकों और सहयोगियों को वहां से निकालने की है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। किसी भी देश को इस बात की चिंता नहीं है कि अफगानिस्तान के लाखों–करोड़़ों लोगों को आने वाले दिनों में इस नारकीय स्थिति का सामना करना पड़े़गा। सबसे अधिक सोचनीय स्थिति महिलाओं और बालिका विद्यार्थियों की होने वाली है। अफगानिस्तान ने २० साल पहले बदला लेने के लिए कार्रवाई करने वाले अमेरिका ने भी देश के नवनिर्माण का एजेंड़ा छोड़़ दिया है। राष्ट्रपति जो बाइडे़न ने बिना किसी संकोच के ऐलान किया कि हम वहां राष्ट्र निर्माण के लिए नहीं गए थे। उनके अनुसार अफगानिस्तान अपने इतिहास में कभी एकजुट राष्ट्र नहीं रहा। वह अलग–अलग कबीलोें वाला इलाका था‚ जहां विभिन्न कबीले आपस में हमेशा लड़़ते रहते थे। जाहिर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति को अफगानिस्तान के इतिहास और भूगोल की कोई जानकारी नहीं है।
राष्ट्रपति बाइडे़न यह भूल जाते हैं कि अफगानिस्तान वृहत्तर भारतीय सभ्यता–संस्कृति का हिस्सा था। इस भूमि पर वेद और पारसी धर्म के पवित्र ग्रंथ ‘अवेस्ता’ का संयोजन हुआ था‚ जो ऋग्वैदिक संस्कृति का ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखा गया है। इसीलिए ऋग्वेद और अवेस्ता में बहुत से शब्दों की समानता मिलती है। दूसरी शताब्दी में इस गंधार क्षेत्र में महान शासक कनिष्क की राजधानी थी। उसका साम्राज्य पूरे अफगानिस्तान‚ भारत के बड़े़ क्षेत्र और मध्य एशिया के कुछ इलाकों तक फैला था। अफगानिस्तान में अशोक के शिलालेखऔर बामियान बुद्ध प्रतिमाएं इसका प्रमाण हैं। इतिहास और भूगोल से अनभिज्ञ कोई देश जब केवल शक्ति प्रयोग से अपना एजेंड़ा थोपने की कोशिश करता है तो वही अंजाम होता है जो आज अफगानिस्तान में दिखाई दे रहा है। घटनाक्रम को केवल वर्तमान संदर्भ में देखा जाए तो भी अमेरिकी राष्ट्रपति और अन्य विश्व नेता कोई सुविचारित सोच नहीं दिखा रहे हैं। काबुल हवाई अड्डे़ पर बम विस्फोट के बाद पूरी बहस इस बात पर केंद्रित है कि कौन अच्छा आतंकवादी है और कौन बुरा आतंकवादीॽ अमेरिकी प्रशासन तालिबान को अच्छा आतंकवादी मानकर उसे अपना सहयोगी बता रहा है। वह इस गलतफहमी में है कि इस्लामिक स्टेट खुरासन के विरुद्ध लड़ाई में तालिबान उसका मददगार सिद्ध होगा। तालिबान के विरुद्ध पंजशीर घाटी में प्रतिरोध का झंड़ा खड़़ा करने वाले अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने विश्व बिरादरी को आगाह किया है कि वह विभिन्न आतंकवादी संगठनों को अलग–अलग श्रेणी में न रखें। मूलतः यह सभी संगठन एक हैं और इनकी विचारधारा भी एक जैसी है। उनका तात्कालिक एजेंड़ा अलग हो सकता है‚ लेकिन वे आधुनिक समाज‚ लोकतांत्रिक व्यवस्था और मानवाधिकारों के दुश्मन हैं। सालेह के अनुसार अफगानिस्तान को अभी भी बचाया जा सकता है बशर्ते दुनिया के विभिन्न देश सामूहिक रूप से सुविचारित कार्रवाई करें। सालेह ने कहा है कि वह अफगानिस्तान को ‘तालिबानीस्तिान’ नहीं बनने देंगे। वह मानते हैं कि समस्या की मूल जड़़ पाकिस्तान है। जब तक पाकिस्तान की नकेल नहीं कसी जाती तब तक जिहादी आतंकवाद पर काबू पाना असंभव है।
भारत के लिए अफगानिस्तान का घटनाक्रम एक दीर्घकालिक समस्या है। देर–सवेर लश्कर–ए–तोयबा‚ जैश–ए–मोहम्मद‚ अल कायदा‚ इस्लामिक स्टेट और तालिबान आतंकवादी कश्मीर का रुख करेंगे। लंबे समय के बाद जम्मू–कश्मीर में शांति का जो माहौल बना है‚ वह खतरे में पड़़ सकता है। भारत ने अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक ढांचा खड़़ा करने का प्रयास किया था‚ उस पर पानी फिर गया है। भारत का मित्र देश रहे अफगानिस्तान में भारत का प्रभाव समाप्त प्रायः है। पाकिस्तान की सरकार‚ सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई अफगानिस्तान के घटनाक्रम का यही निचोड़़ निकाल रही है‚ लेकिन पाकिस्तान केवल इतने से ही संतुष्ट नहीं होगा। वह भारत के लिए जम्मू–कश्मीर और अन्य राज्यों में परेशानी पैदा करेगा। फिलहाल भारत प्रतीक्षा करो और देखो की नीति अपना रहा है‚ लेकिन इस बात की संभावना बहुत कम है कि तालिबान भारत के बारे में अपने रवैये को सकारात्मक बनाएगा।