काबुल एयरपोर्ट पर अब भी अफरातफरी का माहौल है। तालिबान ने साफ चेतावनी दी है कि अमेरिका एवं उसके मित्र देश 31 अगस्त तक अपने नागरिकों को निकाल लें वरना अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें। काबुल एयरपोर्ट के अंदर 10 हजार से भी ज्यादा अफगान अपना वतन छोड़ने का इंतजार कर रहे हैं। एयरपोर्ट के बाहर लगभग 20 हजार लोग जमा हैं, जबकि तालिबान ने पूरे काबुल शहर में सड़कों पर रोडब्लॉक लगाया हुआ है। पिछले 8 दिनों में काबुल एयरपोर्ट के बाहर 2 बच्चों समेत 20 अफगानों की मौत हो चुकी है। इनमें से कोई भगदड़ में मरा, तो किसी की जान गोलीबारी की चपेट में आने से गई। हर रोज निर्दोष अफगानों का खून बह रहा है, जबकि अमेरिका और पश्चिमी देश निकासी अभियान को तेज करने की कोशिश कर रहे हैं।
अच्छी खबर यह है कि भारतीय वायु सेना की मदद से भारत सरकार अफगानिस्तान में फंसे हिंदुओं, सिखों और मुसलमानों को निकालने का काम कर रही है। ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे से 44 अफगान सिखों के एयर इंडिया के प्लेन से दिल्ली पहुंचने के बाद केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी को एयरपोर्ट पर गुरु ग्रंथ साहिब जी महाराज के 3 ‘स्वरूपों’ को ग्रहण करते हुए देखा गया।
जब अफगान सिखों, हिंदुओं और मुसलमानों ने हिंदुस्तान की सरजमीं को छुआ तो दिल को छू लेने वाली चीजें देखने को मिलीं। इन सभी की आंखों में खुशी के आंसू थे और उन्होंने भारत सरकार की जम कर तारीफ की। विभिन्न धर्मों से ताल्लुक रखने वाले इन अफगानों की बातें सुनकर लगा कि हमारी संस्कृति में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की सिर्फ बात ही नहीं होती, बल्कि हमने ऐसा करके दिखाया भी है। ये हमारी भारतीय वायु सेना के बहादुर जवानों और भारत सरकार के अन्य विभागों को लिए गर्व के क्षण थे।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने सिख ग्रंथियों को गुरु ग्रंथ साहिब महाराज को अपने सिर पर रख कर दिल्ली आने वाले एयर इंडिया प्लेन की सीढ़ियां चढ़ते हुए दिखाया था। यह पवित्र ग्रंथ काबुल में सिख गुरुद्वारों से लाया गया था। इनमें से कई सिख अफगानिस्तान में ही पैदा हुए और वहीं पले बढ़े। वे अफगानिस्तान के नागरिक हैं और उनमें से दो तो अफगान संसद के सदस्य भी हैं। उन्होंने भारत सरकार से मदद की अपील करते हुए वीडियो भेजे थे, और हमारी सरकार ने समय पर हस्तक्षेप किया। भारत ने निकासी के लिए अमेरिकी सेना के साथ तालमेल कायम किया। पहली उड़ान में लगभग 50 अफगान सिखों और हिंदुओं को निकाला गया। इसी विमान में अफगानिस्तान के अलग-अलग शहरों के गुरुद्वारों में मौजूद तीन श्री गुरु ग्रंथ साहिब महाराज को भी एयरलिफ्ट किया गया। इसके अलावा एक अन्य विमान में 75 और लोगों को काबुल से बाहर निकाला गया।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रमुख मनजिंदर सिंह सिरसा के मुताबिक, काबुल के गुरुद्वारे में लगभग 260 सिखों ने शरण ली हुई थी। उन्होंने आश्वासन दिया कि इनमें से कई लोगों को रेस्क्यू कर लिया गया है, और जो लोग पीछे छूट गए हैं उन्हें भी जल्द ही निकाल लिया जाएगा। फिलहाल अधिकांश अफगान सिख दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज और गुरुद्वारा बंगला साहिब में ठहरे हुए हैं, यहां से वे अन्य गन्तव्य की तरफ जाएंगे। गुरु ग्रंथ साहिब के ‘स्वरूप’ दिल्ली के न्यू महावीर नगर स्थित गुरुद्वारे में रखे जाएंगे। अफगान सिखों के बाद 146 अन्य लोग सोमवार को अफगानिस्तान से दूसरे देशों के रास्ते भारत पहुंचे। दिल्ली पहुंचे अफगान हिंदुओं और सिखों ने बताया कि कैसे तालिबान लड़ाकों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया, एक हिंदू के चेहरे पर कालिख पोती और उसके सामान में आग लगा दी। उन्होंने अफगानिस्तान से उनकी निकासी में मदद करने वाले भारतीय अधिकारियों की जमकर तारीफ की।
उनमें से एक अफगान सिख, जो वहां की संसद की सदस्य भी हैं, ने बताया कि तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद से उन पर क्या बीती। उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश अपने नागरिकों को बचाने में लगए हुए थे, वहीं भारत अफगान नागरिकों की मदद के लिए आगे आया है। 1970 से 1980 के बीच अफगानिस्तान में सिखों की आबादी 2.25 लाख के करीब थी, लेकिन 1990 के दशक में रूसी सेना के वापस जाने के बाद जब देश में गृहयुद्ध शुरू हुआ, तो उनकी संख्या तेजी से घटती गई। इनमें से अधिकांश सिख भारत आ गए।
1997 में तालिबान के शासन के दौरान सिखों की आबादी घटकर केवल 5,000 रह गई। 2001 तक इस संख्या में और भी ज्यादा गिरावट आई और यह लगभग एक हजार पर आ गई। आज की तारीख में अफगानिस्तान में सिखों की आबादी कुल मिलाकर करीब 700 है। उनमें से ज्यादातर सिखों ने अपना घर, कारोबार, संपत्ति सबकुछ छोड़ दिया और वहां से निकलकर ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे मुल्कों में जाकर बस गए। आपको जानकर हैरानी होगी कि अफगानिस्तान के करीब 18 हजार सिख तो भारत में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। आइए प्रार्थना करें कि अफगानिस्तान से बाकी के सिखों की भी शांतिपूर्ण निकासी हो जाए। अफगानिस्तान में रहने वाले कई हिंदू भी भारत लौट आए हैं, और बाकी लोगों की जल्द से जल्द निकासी की कोशिश की जा रही है। अब चूंकि भारत सरकार इस काम में लगी है इसलिए इस पर सियासत भी होगी। इससे पहले कि कुछ लोग सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) का नाम लेकर शोर मचाएं, मैं यह बताना चाहता हूं कि भारत हिंदुओं और सिखों के साथ-साथ मुसलमानों को भी अफगानिस्तान से निकाल रहा है।
भारत में रहने वाले हम सभी लोगों के लिए ये अहम बात नहीं कि कौन हिंदू है, कौन सिख है और कौन मुसलमान है। ये वक्त उन लोगों की मदद करने का, उन्हें पनाह देने का है जो तालिबान के जुल्म से खुद को बचाने के लिए अफगानिस्तान से निकल आए हैं। हमारी वायु सेना और हमारे विदेश मंत्रालय ने अफगानों को वापस लाने के लिए काफी कोशिश की है और इंसानियत का जज्बा दिखाया है। कई सदियों से शरणार्थियों को पनाह देने का यही जज्बा दुनियाभर में भारत की पहचान है। एक तरफ तो सुपरपावर अमेरिका अपने नागरिकों को लेकर अफगानिस्तान से चुपचाप निकल गया, तो दूसरी तरफ उसने उन हजारों अफगान नागरिकों को वहीं छोड़ दिया जिन्होंने पिछले 20 सालों के दौरान पूरी मेहनत और लगन से अमेरिकी सेना की मदद की थी।
तालिबान के नेता लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनका संगठन बदल गया है और यह नया तालिबान है, लेकिन अफगानिस्तान के लोग जो देख रहे हैं, वो बता रहे हैं और उनका जो पिछला कड़वा अनुभव है, उसके बाद कोई तालिबान के आश्वासन पर यकीन करने को तैयार नहीं है। शरीयत लागू करने के नाम पर तालिबान आम अफगानों को कोड़े मारते हैं, उनके हाथ-पांव काट देते हैं, उनकी जान ले लेते है और आतंक का राज कायम करते हैं। तालिबान आज के कायदे-कानून में यकीन नहीं करते। वे तो सिर्फ बंदूक की भाषा समझते हैं। यही वजह है कि हजारों अफगान काबुल एयरपोर्ट के बाहर अपनी आजादी की उड़ान भरने के लिए इकट्ठा हुए हैं, वर्ना कौन अपना वतन छोड़कर जाना चाहेगा?
इस समय अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से 33 पर तालिबान का कब्जा है। तालिबान अपनी उस मध्यकालीन शासन व्यवस्था को लागू करने में लगे हुए हैं जिसके तहत चोरी-डकैती की सजा दोषियों के हाथ काटकर दी जाती थी, महिलाओं को व्यभिचार के लिए पत्थर मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता था, और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को लैंप पोस्ट पर लटका दिया जाता था।
पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई और उसकी सेना की मदद से तालिबान को पिछले कुछ सालों में नया जीवन मिला है। तालिबान के लड़ाकों को ट्रेनिंग देकर अफगान सेना और अमेरिकी सैनिकों का मुकाबला करने के लिए अफगानिस्तान भेजा गया। तालिबान को जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हक्कानी संगठन जैसे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से भी मदद मिलती रही है।
खतरा इस बात का है कि जैश और अन्य पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन तालिबान के लड़ाकों का पाक अधिकृत कश्मीर में घुसपैठ करवाकर कश्मीर घाटी में तबाही मचाने के लिए उनका इस्तेमाल कर सकते हैं। भारत के लिए चुनौती इसलिए भी बड़ी है कि पाकिस्तान की आड़ में चीन, अफगानिस्तान में अपने पैर जमाने की कोशिश करेगा। भारत की मजबूरी यह है कि अगर उसे तालिबान पर दबाव बनाना है, चीन और पाकिस्तान को रोकना है, तो उसे रूस और ईरान की मदद लेनी पड़ेगी और ऐसी मदद काफी महंगी पड़ती है।
मुझे लगता है कि यह सब थोड़े समय के लिए है और जिस तरह से तालिबान कई कबीलों में बंटा हुआ है, उनमें आपस में झगड़ा होते देर नहीं लगेगी। चीन और पाकिस्तान भी तालिबान के आतंकियों के कहर से ज्यादा देर बच नहीं पाएंगे।
अच्छी खबर यह है कि पंजशीर घाटी में अमरुल्ला सालेह और अहमद मसूद के नेतृत्व वाला नॉर्दर्न एलायंस तालिबान को कड़ी टक्कर दे रहा है। पिछले 48 घंटों में पंजशीर घाटी में 500 से ज्यादा तालिबान लड़ाके मारे गए हैं, हालांकि इसकी पुष्टि होनी अभी बाकी है। नॉर्दर्न एलायंस से भारत की दोस्ती दशकों पुरानी है। फिलहाल भारत को अलर्ट रहना होगा।
अच्छी बात यह है कि हमारे देश में मजबूत सरकार है जो कड़े फैसले लेने से डरती नहीं है और हमारी फौज किसी भी तरह की दहशतगर्दी को कुचलने में सक्षम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिल्कुल ठीक कहा था कि ‘जो आतंक के बलबूते साम्राज्य खड़ा करने वाली सोच है, वह कुछ समय के लिए भले हावी हो जाएं लेकिन उनका अस्तित्व कभी भी स्थायी नहीं होता। वह ज्यादा दिनों तक मानवता को, इंसानियत को दबाकर नहीं रख सकती।’