दो दिन पूर्व मीडिया को संबोधित करते हुए बिहार के सबसे बड़े राजनीतिक दल राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने यह कह दिया कि तेजप्रताप यादव कौन है. अब इसे परिवारवादी राजनीतिक दल के रूप में मशहूर राजद के लिए एक बड़ी घटना के रूप में देखा जा रहा है. पहली बार पार्टी के भीतर मजबूत पद पर रहते हुए किसी नेता ने लालू के परिवार के किसी व्यक्ति की ताकत को खारिज किया है. दिलचस्प है कि उनके इस बयान को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद का भी बड़ा समर्थन मिलता दिख रहा है. तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि जो भी हो रहा है, पार्टी को मजबूत करने के लिए रणनीति बनाकर किया जा रहा है. जल्द ही सब ठीक होगा.
दरअसल, इस महीने की आठ तारीख को जब लालू यादव के पुत्र तेजप्रताप यादव ने एक सभा में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को हिटलर बता दिया था. इस बयान के बाद, जगदानंद सिंह अपने गांव लौट गये थे. तब यह लगने लगा था कि शायद जगदानंद सिंह की परिणति भी वही होगी, जो रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे कद्दावर नेता की हुई थी. उन्हें तेजप्रताप के अनर्गल बयान के बाद आखिरी वक्त में पार्टी छोड़ना पड़ा, जबकि वे राजद के संस्थापक सदस्यों में से थे. मगर, जगदानंद सिंह वापस लौटकर आये और उन्होंने न सिर्फ तेजप्रताप के चहेते युवा नेता को अध्यक्ष पद से हटा दिया, बल्कि पार्टी में तेजप्रताप की हैसियत को भी चुनौती दी.
गुरुवार को उन्होंने यह भी कहा कि मेरे लिए पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता किसी रिश्ते से अधिक रही है. मैं ही वह व्यक्ति हूं, जिसने अपने बेटे को भी चुनाव हरा दिया था. यह कह कर जगदानंद सिंह ने ग्यारह साल पुरानी उस घटना की याद ताजा कर दी, जिसे आज की वंशवादी राजनीति के लिए एक मिसाल माना जाता है.
यह 2009 की बात है. उससे पहले अपने गृहक्षेत्र के रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र से वे विधायक हुआ करते थे. 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान राजद ने उन्हें बक्सर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया था और उनके जीतने के बाद रामगढ़ विधानसभा की सीट खाली हो गयी थी. उसी साल रामगढ़ में उपचुनाव होने थे. राजद ने जगदानंद सिंह को ऑफर किया था कि वे अपने बेटे सुधाकर सिंह को इस सीट से चुनाव लड़वा लें. जगदानंद सिंह हमेशा से अपने सिद्धांतों की वजह से लालू के काफी प्रिय रहे हैं. इसलिए उन्हें यह ऑफर दिया गया था.
जगदानंद सिंह ने इस ऑफर को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि अगर हर बार नेता का बेटा ही चुनाव लड़ेगा तो कार्यकर्ताओं का क्या होगा. यह कहते हुए उन्होंने अपने क्षेत्र के प्रमुख राजद कार्यकर्ता अंबिका यादव के नाम टिकट की सिफारिश की. उन्हें पार्टी ने टिकट दे दिया. इस बीच विधायक बनने का मंसूबा पाले जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह को भाजपा ने टिकट का ऑफर दे दिया और सुधाकर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गये.
उस वक्त जगदानंद सिंह के लिए एक तरफ उनका शिष्य था, पार्टी थी तो दूसरी तरफ पुत्र था. जगदानंद सिंह ने पार्टी और सिद्धांतों को तरजीह दी और अपने शिष्य अंबिका यादव के पक्ष में जोरदार प्रचार अभियान चलाया और उनके बेटे को इस वजह से हार का मुंह देखना पड़ा. 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी अंबिका यादव ही उस सीट से जीते.
यह किस्सा भले बहुत प्रचारित नहीं हुआ है, मगर जो इसे जानते हैं वे मौजूदा राजनीतिक दौर में इसे सिद्धांतवादी राजनीति की मिसाल के तौर पर देखते हैं.
मुझे खुद एक रात जगदानंद सिंह के गांव में उनके साथ रहने का मौका मिला है और वहां रहकर समझा कि राजद जैसे दल में जिस पर परिवारवाद के बड़े आरोप लगते रहे हैं, जगदानंद सिंह एक अनमोल रत्न की तरह हैं. वे अमूमन अपने गांव पर सादगी से रहते हैं और उनके घर रोज क्षेत्र के दर्जनों लोग सुबह शाम चाय पीने के लिए जुटते हैं. वे उनकी समस्या सुनते और सुलझाने की कोशिश करते हैं. उन्होंने अपने जमाने में अपने सांसद निधि से क्षेत्र के स्कूलों और कॉलेजों को बस डोनेट किये, ताकि वे दूरदराज की छात्राओं को रोक न्यूनतम फीस पर घर से स्कूल-कालेज ला और ले जा सकें. उनकी इस पहल से उनके क्षेत्र की स्त्री शिक्षा में बड़ा बदलाव आया. बिहार के जलसंसाधन मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने पूरे बक्सर-शाहाबाद क्षेत्र में सिंचाई की बेहतरीन व्यवस्था की. इन सब कार्यों की वजह से उनकी क्षेत्र में काफी अच्छी छवि है.
जगदानंद सिंह सिद्धांतवादी और स्वभाव से अक्खर हैं. फिलहाल ऐसा लगता है कि वंशवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से उन्हें पार्टी की छवि को बेहतर करने के लिए कई तरह की छूट मिली हुई है. तभी वे पार्टी के सर्वेसर्वा लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव पर खुले तौर से हमला कर रहे हैं और उन्हें सही तरीके से राजनीति करने के लिए विवश कर रहे हैं.
हालांकि, इसके बावजूद पार्टी एक सीमा तक ही लोकतांत्रिक रहेगी, ऐसा माना जा रहा है. संभवतः ऐसा नहीं होगा कि पार्टी कभी शीर्ष पद पर परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को जगह देगी. मुमकिन है पार्टी अस्थिर स्वभाव के तेज प्रताप की हरकतों से छुटकारा पाने की कोशिश कर रही हो. मगर उनके छोटे भाई तेजस्वी के अधिकार शायद ही कभी कम हो. वे खुद कह रहे हैं कि जब मैं हूं और लालू जी हैं, तो किसी को घबराने की जरूरत नहीं है. हालांकि आने वाला वक्त बतायेगा कि राजद में लोकतंत्र की बयार कितनी बहती है.