यह समय है‚ यही समय है भारत का अनमोल समय है। लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह उद्घोष जन–जन में एक नवीन ऊर्जा का संचार करता है। यह उद्बोधन आजादी के 75 वर्षों के रेखांकन के साथ–साथ वर्तमान भारत की दशा–दिशा और आगामी स्वर्णिम भारत की विषद रूपरेखा प्रस्तुत करता है। गत १५ अगस्त को भारत ने अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण कर लिये‚ जिसे प्रधानमंत्री के संकल्प से सम्पूर्ण भारत में ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के रूप में मनाया जा रहा है।
राष्ट्र की संकल्पना‚ अनिगनत ज्ञात–अज्ञात तथा राष्ट्र वेदी पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले असंख्य लोगों के त्याग और बलिदान की परिणति है‚ अतः प्रधानमंत्री ने उन सभी महान विभूतियों को नमन किया है जिनके कारण ही भूत से वर्तमान तक भारत अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सफल रहा है। भारतीय चिंतन परम्परा में बुरी स्मृतियों को भुला देने की परम्परा रही है‚ किन्तु प्रधानमंत्री जी की दूरदृष्टि ने प्रत्येक वर्ष 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाये जाने का संकल्प लिया है‚ ताकि प्रत्येक भारतीय को यह सनद रहे कि आजादी किन मूल्यों का परिणाम है। पीछे देखने पर जहां एक ओर भारत का असीम‚ विराट वैभव उसकी महानता की गाथा कहता है वहीं उसका स्याह पक्ष अनिगनत अत्याचारों तथा विस्थापन की त्रासदी से भरा हुआ है।
स्वतंत्रता एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है क्योंकि इसे बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयासरत रहना पड़ता है। यह कोई वस्तु नहीं‚ अपितु इसके लिए अनेक महापुरुषों‚ वीरांगनाओं‚ क्रांतिकारियों ने अपने प्राण न्योछावर किए हैं तथा आज भी सीमा पर तैनात जवान और देश के भीतर–बाहर राष्ट्र की अखंडता‚ बंधुता और एकता के लिए समर्पित लोगों के कारण ही भारत की स्वतंत्रता तथा संप्रभुता सुरक्षित हैॽ आगे आने वाले 25 वर्षों की संकल्पना प्रधानमंत्री जी द्वारा ‘अमृत काल’ के रूप में की गई है। उनके अनुसार ये २५ वर्ष भारत को वैश्विक पटल पर एक नवीन पहचान दिला सकते हैं‚ जिसका एक विस्तृत रोडमैप प्रस्तुत किया गया है। किन्तु यह कहा जा सकता है कि आने वाली सरकारों की इच्छाशक्ति तथा कर्तव्यनिष्ठा ही २०४७ में आजादी के शताब्दी स्वतंत्रता दिवस का भविष्य तय करेगी। प्रधानमंत्री के उद्बोधन में भारत के सुदूरवर्ती क्षेत्रों अर्थात पूर्वोत्तर भारत‚ जम्मू–कश्मीर‚ लद्दाख अथवा भारत के जनजातीय क्षेत्रों की चिंता‚ वहां के लोगों के लिए आशा की एक नवीन किरण बनकर सामने आई है। इन क्षेत्रों के सामर्थ्य को लाभ में रूपांतरित करने की इच्छाशक्ति नवीन आयामों को जन्म देगी। सम्पूर्ण पूर्वोत्तर भारत को रेल नेटवर्क से जोड़ने की पहल सराहनीय है। ग्रामीण किसानों की कम होती जोत–भूमि के प्रति प्रधानमंत्री जी की चिंता जायज है। तेजी से होते शहरीकरण तथा बढ़ती आबादी के कारण प्रति व्यक्ति कृषि भूमि का लगातार कम होना‚ कृषि निर्भर किसानों तथा कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए संकट का विषय है। इन किसानों के हितों की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का शत–प्रतिशत लाभ इन किसानों तक पहुंचे। लाभ के साथ–साथ अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता को भी मुख्य बिंदु के रूप में लिया जाना चाहिए। ॥ नवीन कृषिगत तकनीकी तथा अनुसंधान; जैसे–जलीय कृषि‚ जैव प्रौद्योगिकी‚ नैनो विज्ञान आदि के वृहद प्रयोग तथा प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों के जीवन स्तर में सुधार किया जा सकता है। ‘सबका साथ सबका विकास’ के साथ‚ अब ‘सबका विश्वास तथा सबका प्रयास’ का नारा भी प्रधानमंत्री जी द्वारा प्रस्तुत किया गया‚ जो एक समावेशी समाज के निर्माण में सहायक सिद्ध होगा। उज्ज्वला योजना से लेकर आयुष्मान भारत तक अनेक योजनाएं‚ भेदभाव–भ्रष्टाचार रहित समाज‚ देश के प्रत्येक व्यक्ति तक पोषण की पहुंच‚ बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं आदि इस नारे को और भी अधिक बल प्रदान करेंगी। ‘मेड इन इंडिया’ विश्व के पटल पर एक पहचान के रूप में उभरे‚ यह लक्ष्य भारत के उद्योग जगत को एक नई दिशा प्रदान कर सकता है। भारत की लगातार बढ़ती अर्थव्यवस्था‚ इसकी तकनीकी शक्ति तथा वैश्विक मंचों पर बढ़ता प्रभाव इसके वैश्विक महत्व को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं। स्वदेशी निर्माण के तहत अब भारत सरकार तथा निजी साझेदारी के तहत उच्च तकनीकी निर्मित जहाजों‚ विमानों तथा हथियारों का न सिर्फ निर्माण किया जा रहा है‚ वरन उनका निर्यात भी किया जा रहा है। एक बाजार के रूप में भारत में वृहद संभावनाएं विद्यमान हैं‚ किन्तु उत्कृष्ट उत्पादन तथा निर्यात संवर्धन के बिना भारत इसके पूर्ण लाभ से वंचित रह जाएगा।
इसी कारण भारत को उत्पादन तथा निर्यात के वैश्विक हब के रूप में निर्मित करने का संकल्प भी प्रधानमंत्री के चिंतन में आद्योपांत विद्यमान रहा है। आगामी चुनौतियों जैसे–कोरोना महामारी के नवीन स्वरूप‚ वैश्विक आतंकवाद तथा विस्तारवाद‚ प्राकृतिक आपदाओं आदि का भी भारत को डटकर मुकाबला करना है। जलसंरक्षण‚ प्लास्टिक मुक्त भारत‚ उज्ज्वला योजना आदि पर्यावरण संवर्धन हेतु महत्वपूर्ण पहल हैं। ऊर्जा के क्षेत्र में भारत को स्वावलंबी बनाना तथा हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत हरित हाइड्रोजन के उत्पादन तथा निर्यात में भारत को वैश्विक हब बनाना‚ भारत के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने तथा स्वच्छ ऊर्जा के नवीन विकल्पों पर ध्यान केंद्रित हेतु उत्तम विकल्प हैं। २१वीं सदी में भारत को नई >ंचाई पर ले जाने हेतु यह आवश्यक है कि भारत के सामर्थ्य को पहचानकर उसका पूर्ण दोहन किया जाए।
हर्ष का विषय है कि प्रधानमंत्री की दूरदृष्टि‚ कर्मठता तथा सकारात्मक सहयोग के कारण भारत अपनी क्षमताओं को पहचान रहा है और उनसे प्रेरणा लेकर नित नवीन उचाइयों को छू रहा है। प्रधानमंत्री का यह संदेश समावेशी विकास‚ विभाजन रहित समाज तथा सामाजिक सद्भाव की प्रेरणा देता है‚ जहां विकास प्रत्येक नागरिक के सामाजिक‚ आर्थिक तथा राजनैतिक सशक्तीकरण का परिचायक है। अतः सार रूप में यह कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता की ७५वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया उद्बोधन देश के सर्वांगीण‚ समावेशी तथा सर्वस्पर्शी विकास की एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करता है जो न सिर्फ स्वर्णिमभारत के स्वप्न को साकार करेगी‚ वरन आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणा का कार्य करती रहेगी।