अभी तक जातीय जनगणना के सवाल पर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद एक मंच पर दिख रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव नीतीश कुमार से मुलाकत कर इससे जुड़ा मांग पत्र भी सौंप चुके हैं कि प्रधानमंत्री से समय लेकर उनसे मिला जाए। नीतीश कुमार ने पीएम नरेन्द्र मोदी को पत्र भी लिखा, जिसका कोई जवाब अब तक नहीं आया है, न मिलने का समय मिला है। RJD की मांग यह भी कि अगर केन्द्र सरकार जातीय जनगणना नहीं कराती है को बिहार सरकार, कर्नाटक सरकार की तर्ज पर बिहार में अपने खर्चे से जातीय जनगणना कराए।
इस राजनीतिक बयानबाजी और मांग के बीच राष्ट्रीय जनता दल ने JDU से आरक्षण पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है। RJD प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने यह मांग की है। जाति जनगणना की राजनीति आरक्षण की तरफ घूम रही है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
अवसरवादी चेहरा का आरोप
RJD ने यह मांग तब की है, जब केन्द्र में इस्पात मंत्री बनने के बाद पटना आने के पर आरसीपी सिंह ने कहा कि आरक्षण अब कोई मुद्दा नहीं रहा। आरसीपी सिंह JDU के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। RJD राजद प्रवक्ता ने कहा कि जातीय जनगणना के बारे में भी आरसीपी सिन्हा द्वारा जिस तरह की बातें कही गई हैं , उससे स्पष्ट है कि जातीय जनगणना की मांग को लेकर JDU दो खेमें में बंटी हुई है। उन्होंने कहा कि आरसीपी के बयान से JDU का अवसरवादी दोहरा चरित्र उजागर हो चुका है। सत्ता के अवसर के आधार पर इस पार्टी की नीति और सिद्धांत बदलते रहते हैं।
ओबीसी आरक्षण को 27 फीसदी बढ़ाने की मांग कर चुके हैं तेजस्वी
लालू प्रसाद जातीय जनगणना इसलिए ही कराना चाहते हैं कि पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों की आबादी का आंकड़ा सामने आ सकेगा। अब तक 1931 की जनगणना के अनुसार ही जाति की आबादी मालूम है। इतने वर्षों बाद किसी जाति की क्या स्थिति है यह जानना जरूरी है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव तो प्रेस कांफ्रेस कर यह कह चुके हैं कि ओबीसी को मिल रहे 27 फीसदी आरक्षण को बढ़ाया जाए। इसलिए जातीय जनगणना का पूरा सरोकार पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों को उनका पूरा अधिकार दिलाने की लड़ाई से जुड़ा है और आरक्षण का दायरा बढ़ाने से जुड़ा है।
मजबूत होगी माय समीकरण
बिहार में पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों की आबादी 60 फीसदी है। इसमें दलितों की16 फीसदी आबादी और अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों की भी 16 फीसदी आबादी को जोड़ दें तो यह 90 फीसदी के आसपास होती है। 90 फीसदी आबादी की मांग जातीय जनगणना है। इसमें यादवों और मुसलमानों के वोट बैंक पर लालू प्रसाद का कब्जा उनकी माई समीकरण वाली राजनीति की वजह से है। यादव 16 फीसदी और मुसमान 16 फीसदी हैं । RJD के नेता यह भी आरोप लगाते रहे हैं कि भाजपा आरक्षण को खत्म करने का षडयंत्र कर रही है। RJD के वरिष्ठ नेता अब्दुलबारी सिद्दीकी ने धरना कार्यक्रम में कहा था कि केन्द्र सरकार क्रीमी लेयर में भी बदलाव करने की साजिश रच चुकी है।
विरोध क्यों और समर्थन क्यों, समझिए
बहुत साफ-साफ और मोटे तौर पर समझें तो पिछड़ी जातियां और उसके वैसे नेता जो भाजपा से नहीं जुडे़ हैं। वे चाहते हैं कि जातीय जनगणना हो और पिछड़ों-अतिपिछड़ों को और अधिक आरक्षण मिले। दूसरी तरफ सवर्ण जातियों का वोटबैंक पाने वाली पार्टी भाजपा सभी जाति की गणना नहीं कराना चाहती है। JDU के वरिष्ठ नेता आरसीपी जब यह कहते हैं कि आरक्षण अब कोई मुद्दा नहीं रह गया तो इस बयान को BJP की रणनीति वाला बयान माना जा रहा है, इसलिए RJD ने JDU से आरक्षण पर अपनी स्थिति स्प्ष्ट करने की मांग की है।
मंडल आयोग की शेष सिफारिशों में सरकार से किसी तरह की मदद लेने वाली निजी संस्थाओं में भी आरक्षण लागू करने का प्रस्ताव है, जो अब तक लागू नहीं है। ऐसी शेष सिफारिशों को लागू करने की मांग RJD की है। RJD ने आरक्षण पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग कर JDU को एक्सपोज करना चाहती है। दूसरी बात यह कि आरसीपी सिंह के नए बयान का असर पिछड़ा-अतिपिछड़ा वोट बैंक पर पड़ना तय है।