कांग्रेस को अलविदा कह सुष्मिता देव तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो रही हैं. सूत्रों का दावा है तृणमूल में शामिल होने के बाद सुष्मिता त्रिपुरा की प्रभारी बन सकती हैं जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. त्रिपुरा में बड़ी संख्या बांग्ला भाषी आबादी रहती है और इसीलिए टीएमसी अपनी पूरी ताकत झोंक रही है. असम राज्य से आने वाली और मूल रूप से बंगाली सुष्मिता देव के पिता स्वर्गीय संतोष मोहन देव पांच बार सिलचर सीट के अलावा दो बार त्रिपुरा पश्चिम सीट से भी लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं.
महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रहीं सुष्मिता देव ने एक दिन पहले कांग्रेस पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दिया. पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम अपने इस्तीफे में सुष्मिता ने मौके देने और मार्गदर्शन के लिए सोनिया गांधी का आभार जताया है और साथ ही अगली पारी के लिए शुभकामनाएं मांगी.
2014 में सिलचर से लोकसभा चुनाव जीतने वाली सुष्मिता देव काफी समय से कांग्रेस में असहज चल रही थीं. इसकी एक बड़ी वजह नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) है. कांग्रेस ने इसका विरोध किया. लेकिन सुष्मिता असम के जिस बराक वैली इलाके से आती हैं वहां के बंगाली हिन्दू इस कानून के पक्ष में थे. सुष्मिता देव के लिए आगे कुंआ पीछे खाई वाली स्थिति हो गई थी.
कुछ महीनों पहले विधानसभा चुनाव के समय एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन में सीटों के बंटवारे से नाराज सुष्मिता ने पार्टी छोड़ने की धमकी दी थी. हालांकि तब उन्हें मना लिया गया था. पिछले हफ्ते सुष्मिता देव असम कांग्रेस की नई टीम के साथ सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मिलने गई थीं. कुछ दिनों पहले उन्होंने दिल्ली एयरपोर्ट पर राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी जब राहुल श्रीनगर से लौट रहे थे.
सुष्मिता देव का कांग्रेस छोड़ना राहुल गांधी के लिए बड़ा झटका है. सुष्मिता को राहुल का करीबी समझा जाता था. राहुल गांधी ने ही उन्हें महिला कांग्रेस की कमान दी थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, प्रियंका चतुर्वेदी के बाद अब कांग्रेस छोड़ने वाले युवा नेताओं में सुष्मिता देव का नाम भी शामिल हो गया है. सुष्मिता देव को प्रियंका गांधी के करीब भी माना जाता था. बीते लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी उनके लिए प्रचार करने सिलचर पहुंची थीं.
पश्चिम बंगाल में सरकार चला रही टीएमसी में शामिल होकर सुष्मिता बराक वैली में ममता बनर्जी के सहारे बंगाली पहचान की राजनीति को मजबूत करने की कोशिश करेंगी. ममता ने असम में एनआरसी का विरोध किया था जिससे असम की बंगाली आबादी प्रभावित है. टीएमसी में शामिल होने से बराक वैली में भले ही सुष्मिता के पांव जम जाएं लेकिन असम के अन्य इलाकों में उन्हें मुश्किल होगी. उससे भी पहले उन्हें त्रिपुरा में अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी.