अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच चल रही लड़ाई की वजह से लगभग पूरा अफगानिस्तान इस वक्त मैदान-ए-जंग में तब्दील होता जा रहा है। इंडिया टीवी के डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद इस समय कैमरापर्सन बलराम यादव के साथ अफगानिस्तान में हैं, और वे वहां से अमेरिका और नाटो फोर्सेज के जाने के बाद हो रही इस जंग की पल-पल की जानकारी भेज रहे हैं। मंगलवार की रात काबुल, कंधार, हेरात, जलालाबाद, मजार-ए-शरीफ और गजनी समेत अफगानिस्तान के तमाम शहरों में लोग सड़कों पर निकल आए और अफगान सरकार के प्रति एकजुटता दिखाते हुए ‘अल्लाहू अकबर’ के नारे लगाए।
दहशत का माहौल बनाने और लोगों की आवाज को खामोश करने के लिए तालिबान ने काबुल में कार्यवाहक रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह मोहम्मदी के घर पर कार बम से अटैक कर दिया। मोहम्मदी अपने घर पर हुए इस हमले में बाल-बाल बच गए। रक्षा मंत्री के घर पर हमला करके तालिबान ने काबुल के सबसे सुरक्षित इलाके में अपनी मौजदूगी का सबूत दे दिया। देर रात तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने इस आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी ली।
बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया था कि किस तरह काबुल में तालिबान द्वारा किए गए विस्फोट के बाद अफगान सुरक्षा बलों ने जवाबी हमले किए। तालिबान ने काबुल में रक्षा मंत्री के घर पर हमला सोची समझी रणनीति के तहत किया था। दरअसल, बिस्मिल्लाह खान मोहम्मदी ने अफगानिस्तान के लोगों से अपील की थी कि तालिबान के खिलाफ जो जंग चल रही है उसमें अफगान सुरक्षा बलों का हौसला बढ़ाने के लिए सभी लोग रात 9 बजे घरों से बाहर निकले और एक साथ ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे लगाएं। इसके जवाब में तालिबान ने मंत्री के घर पर ही हमला बोल दिया। एक तरफ तालिबान हमलावरों से मुठभेड़ चल रही थी, तो दूसरी तरफ हजारों अफगान सड़कों पर उतर आए थे और नारे लगा रहे थे। इन लोगों में अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह भी शामिल थे।
मनीष प्रसाद ने बताया कि हमले को तालिबान के 4 हमलावरों ने अंजाम दिया, जिनमें से एक ने खुद को कार धमाके में उड़ा लिया, और बाकी के 3 ने अफगान सुरक्षा बलों पर गोलीबारी की। इसके बाद हुई मुठभेड़ में तीनों हमलावरों और 4 नागरिकों की जान चली गई और 20 अन्य घायल हो गए। विस्फोट के बाद लगी आग में अफगान सांसद मरियम कुफी का घर जलकर खाक हो गया। उनके घर में मौजूद बॉडीगार्ड मारा गया। मरियम कुफी ने सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाई थी, जबकि उस समय वह सुरक्षा बलों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए बाहर निकलकर नारे लगा रही थीं। हमले से बेपरवाह हजारों अफगान नागरिक मौजूदा शासन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए काबुल की सड़कों पर उतर आए थे। लोग पैदल और गाड़ियों में अफगानिस्तान का झंडा लेकर घरों से निकल पड़े और हर गली, चौक, चौराहे पर ‘अल्लाहु अकबर’ की गूंज सुनाई देने लगी।
मंगलवार को हेलमंद, गजनी और हेरात सूबों में तालिबान और अफगान सुरक्षाबलों के बीच भीषण लड़ाई हुई। पिछले 24 घंटों में अफगान सेना के हवाई हमलों में लगभग 200 तालिबान लड़ाके मारे गए हैं। वहीं, समांगन प्रांत में भी करीब 40 तालिबान लड़ाके मारे गए। तालिबान ने हेरात में भारत द्वारा बनाए गए सलमा डैम को नुकसान पहुंचाने के इरादे से हमला किया था, लेकिन अफगान सुरक्षा बलों ने इसे नाकाम कर दिया।
हमारे डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद और कैमरापर्सन बलराम यादव ने बुधवार को पूरा दिन इस लड़ाई को देखने के लिए अफगान सुरक्षा बलों के साथ बिताया। अफगान सेना अब हाईटेक हथियारों से लैस है और वह तालिबान की गोली का जवाब गोली से और रॉकेट का जवाब रॉकेट से दे रही है। इंडिया टीवी की टीम उन जगहों पर भी गई जहां अफगान आर्मी के कमांडो की ट्रेनिंग चल रही है। ट्रेनिंग सेंटर्स में सभी कमांडो को बताया जा रहा था कि कैसे किसी इलाके को सैनिटाइज करना है, तालिबान का खात्मा करना है और जहां-जहां तालिबान ने कब्जा किया है उन इलाकों को दोबारा कैसे हासिल करना है।
मनीष प्रसाद ने बताया कि इस वक्त अफगानिस्तान के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्सों में तालिबान का दबदबा है। उसके लड़ाके वहां मौजूद हैं और उन्होंने एक बड़े इलाके पर कब्जा कर रखा है, लेकिन अफगान सेना इलाके पर दोबारा कब्जे के लिए लड़ रही है। अफगान फोर्सेज का दावा है कि हेलमंड प्रोविंस की राजधानी लश्कर गाह में तालिबान को काफी नुकसान हुआ। यहां हुई लड़ाई में तालिबान के कई सीनियर कमांडर मारे गए और हवाई हमलों में उनके हथियारों और गोला-बारूद का एक बड़ा डिपो भी उड़ा दिया गया। दक्षिणी अफगानिस्तान में अफगान सेना के कमांडो पूरे ऑपरेशन को लीड कर रहे हैं और पिछले 24 घंटों में यहां तालिबान के 90 से ज्यादा लड़ाके मारे गए हैं। इसके अलावा तालिबान को सपोर्ट करने आए पाकिस्तान के आतंकवादियों का भी सफाया हो रहा है।
अफगान कमांडो के हमलों से बचने के लिए तालिबान लड़ाके आम नागरिकों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। तालिबान के ये लड़ाके दुकानों, घरों और बाजारों के अंदर पोजिशन लेकर आम लोगों को बंधक बना रहे हैं, ताकि अफगान फोर्सेज के हमलों से बचाव किया जा सके। मनीष प्रसाद ने अफगानिस्तान की सेना के जिन कमांडरों से बात की, उन्होंने कहा कि उनका मकसद बिल्कुल साफ है: एक गोली, एक तालिबान।
इस समय अफगानिस्तान की स्थिति काफी जटिल और उलझी हुई है। इसमें कई सारे बड़े खिलाड़ी हैं जिनमें अमेरिका, चीन पाकिस्तान और रूस शामिल हैं। यही वजह है कि भारत को इस मामले में हर कदम फूंक-फूंककर रखना पड़ रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत अपनी फौज अफगानिस्तान में भेज दे। उसने 2 दशकों के बाद अपनी आर्मी तो वापस बुला ली और चाहता है कि भारत इस जंग में शामिल हो। भारत की नीति शुरू से ही साफ रही है कि वह किसी भी हालत में अपनी सेना अफगानिस्तान में नहीं भेजेगा। भारत ने पहले भी अफगानिस्तान की फौज को ट्रेनिंग दी है, साजो-सामान दिया है, गोला-बारूद दिया है और ये आगे भी चलता रहेगा।
भारतीय रणनीतिकार इस बात को समझते हैं कि अमेरिका अफगनिस्तान में भारत का ‘इस्तेमाल’ करने की कोशिश कर रहा है, और वे इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि अमेरिका ने अपने दूत जमलय खलीलजाद द्वारा शुरू की गई तालिबान के साथ हुई शांति वार्ता से भारत को दूर रखा था। अगर अमेरिका की नीयत साफ होती तो झगड़ा सुलझाने की कोशिश में भारत की अहम भूमिका हो सकती थी। ऐसे में भारत अफगानिस्तान मुद्दे को सुलझाने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता था।
जैसे अमेरिका चाहता है कि अफगानिस्तान में शांति बनाने की कोशिश में भारत उसकी मदद करे, वैसे ही पाकिस्तान चाहता है कि चीन उसकी मदद करे। वहीं, चीन को डर है कि अगर काबुल में तालिबान का कब्जा हो गया तो चीन का शिनचियांग प्रोविंस उसके हाथ से निकल जाएगा। बड़े लंबे वक्त से वहां के उइगर मुसलमान अपना अलग मुल्क बनाना चाहते हैं। चीन को लगता है कि अगर तालिबान काबुल में आ गया तो उइगर मुसलमान जोश में आ जाएंगे और चीन में जेहाद छेड़ देंगे। इसी डर की वजह से चीन ने तालिबान के नेताओं को अपने यहां बुलाकर उनसे वादा लिया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल चीन के खिलाफ नहीं होगा और वे उइगर जिहाद को सपोर्ट नहीं करेंगे।
पाकिस्तान की समस्या थोड़ी अलग है, और वह समस्या ये है कि तालिबान उसी की खड़ी की हुई मुसीबत है। बेनजीर भुट्टो के शासनकाल में पाकिस्तान ने ही नब्बे के दशक के दौरान अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए तालिबान के लड़ाकों को ट्रेनिंग दी थी, उनकी मदद की थी, उन्हें भड़काया था। पाकिस्तान अभी भी क्वेटा, बलूचिस्तान में तालिबान के बड़े मंत्रियों और और कमांडरों को पनाह दे रहा है, जिसे ‘क्वेटा शूरा’ के नाम से जाना जाता है। यह पाकिस्तान ही है जो अफगानिस्तान के अंदर हमले करने में हक्कानी की मदद कर रहा है। पाकिस्तान को डर है कि अगर तालिबान काबुल में सत्ता में आ जाता है तो वह पठान या पश्तून राजनीति के केंद्र पेशावर पर भी अपना दावा ठोक सकता है।
तालिबान बाहरी नहीं हैं, वे भी अफगान ही हैं लेकिन कट्टर हैं। ज्यादातर तालिबान पश्तून हैं, जो शरीयत कानून में यकीन रखते हैं और एक इस्लामी सल्तनत कायम करने का ख्वाब देखते हैं। पाकिस्तान ने पश्तूनों को तालिबानियों का साथ देने के लिए भेज दिया था, लेकिन मुश्किल तब हो गई जब अफगानिस्तान के लोगों ने पाकिस्तानी तालिबानियों को मार कर उनकी लाशें वापस पाकिस्तान भेज दीं। इसीलिए अब पाकिस्तान फंस गया है। वह न तो वापस भाग सकता है और न ही और पाकिस्तानियों को अफगानिस्तान भेज सकता है।
इस पूरे मामले में भारत का पक्ष बिल्कुल साफ है। हम जंग में कहीं नहीं हैं, न अफगानिस्तान की सरकार के साथ और न ही तालिबान के साथ। भारत अफगानिस्तान के लोगों के साथ है क्योंकि हमारा वहां के लोगों के साथ सदियों पुराना रिश्ता है। इसलिए भारत ने एक बात साफ कर दी है कि अफगानिस्तान में जंग से कोई रास्ता नहीं निकलेगा। कोई भी सरकार जबरदस्ती अफगानिस्तान के लोगों पर नहीं थोपी जा सकती। रास्ता सिर्फ बातचीत से ही निकल सकता है। बात करने से ही शांति स्थापित होगी, इसलिए बात करना जरूरी है। मुझे लगता है कि इसके लिए अगर भारत को तालिबान से भी बात करनी पड़े, तो करनी चाहिए। अफगानिस्तान में अमन बना रहे, इसी में भारत का हित है।