बिहार के 11 जिलों की लगभग 15 लाख से ज्यादा की आबादी अभी बाढ़ की मार झेल रही है. एनडीआरएफ की सात और एसडीआरएफ की नौ टीमें बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पहुंची है. अभी तक 11 लाख से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है. बिहार देश के सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित राज्यों में से है. राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो कुल बाढ़ प्रभावित आबादी का 22.1 प्रतिशत हिस्सा बिहार में ही बसता है. खुद बिहार का 76.06 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ग्रस्त है. वहीं उत्तर बिहार की 76 प्रतिशत आबादी बाढ़ की विभिषिका झेलने को मजबूर है. अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में बाढ़ से तबाही का अनुपात भी ज्यादा है. राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5 प्रतिशत बिहार में है लेकिन 22.8 प्रतिशत का नुकसान है. यूपी में जहां 25 प्रतिशत बाढ़ प्रभावित क्षेत्र हैं लेकिन नुकसान सिर्फ 14.4 प्रतिशत का है. पश्चिम बंगाल में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 11.5 प्रतिशत है किन्तु नुकसान मात्र 9.1प्रतिशत है. 1979 ईस्वी से बिहार सरकार ने बाढ़ के आंकड़ों का जारी करना शुरु किया है. आंकड़ों पर अगर गौर करें तो बाढ़ से दस हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हो चुका है. सिर्फ पिछले पांच साल के आंकड़ों का औसत निकालें तो प्रत्येक साल 19 जिलों की 136 प्रखंडों के लगभग 4.5 हजार गांव हर साल बाढ़ से प्रभावित हुए हैं और औसतन 95 लाख लोग बाढ़ की परेशानी झेलते हैं.इस दौरान 130 करोड़ की निजी संपत्ति का नुकसान हुआ है.
क्यों नहीं बन रहा नेपाल में हाईडैम
यह सर्वविदित है कि बिहार में बाढ़ का प्रमुख कारण नेपाल से आने वाली नदियां है. क्योंकि बिहार में बहने वाली अधिकांश नदियों का उद्गम स्थल नेपाल में ही है. जैसे ही नेपाल में बारिश अधिक होती है तो नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है लिहाजा बिहार में बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है. करीब 50 छोटी बड़ी नदियों में ज्यादा पानी आने से सीमावर्ती इलाकों में बाढ़ विकराल रूप ले लेती है .इन्हीं सबको देखते हुए तकरीबन बीस साल पहले नेपाल के बराह क्षेत्र में कोसी नदी पर हाई डैम बनाने का निर्णय हुआ लेकिन विडम्बना देखिए कि अभी तक सर्वे का काम ही नहीं हो पाया है तो निर्माण कार्य की बात तो कोसों दूर है. नेपाल के लोगों का कहना है कि डैम बनने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा और बड़ा भाग डूब क्षेत्र बन जाएगा. लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा. नेपाल सरकार को इनकी शंकाओं का समाधान करना होगा. इसको लेकर नेपाल सरकार और भारत सरकार के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला है. खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपने नेपाल दौरे में नेपाल के प्रधानमंत्री से बात की थी. नेपाल अब तक सिर्फ आश्वासन ही देता रहा है. जानकारों के मुताबिक सरकार नेपाल पर वैसा दबाव नहीं बना पा रही है जिससे वह हाई डैम बनाने के लिए तत्पर हो.
अधर में दिखती नदी जोड़ परियोजना
बाढ़ से बचाव और सिंचाई की सुविधा को ध्यान में रख कर नदी जोड़ परियोजना की परिकल्पना की गयी थी. बिहार में भी ऐसी आठ परियोजनाएं हैं, लेकिन उनमें से किसी पर काम अब तक शुरु नहीं हो पाया है. बिहार सरकार ने पहले बाढ़ के लिए जिम्मेदार दो नदियां, बागमती और बूढ़ी गंडक को जोड़ने की योजना बनाई थी लेकिन केन्द्र सरकार ने इसे अव्यवहारिक बता कर इसकी मंजूरी नहीं दी. बिहार में आठ नदी जोड़ परियोजना प्रस्तावित है जिनमें सकरी नदी से नाटा नदी को जोड़ने का काम, बूढ़ी गंडक से नून बाया गंगा लिंक योजना, कोसी मेची लिंक योजना, बागमती- बूढ़ी गंडक लिंक योजना, कोशी-गंगा लिंक योजना, कोशी-अधवारा बागमती योजना, कोहरा-चंद्रावत लिंक नहर योजना, धनारजे जलाशय और फुलवरिया नहर योजना शामिल है. केन्द्र सरकार ने कोसी मेची परियोजना को मंजूरी दी है. इस योजना के तहत 76.20 किलोमीटर नहर बना कर कोसी के अतिरिक्त पानी को महानंदा बेसिन में ले जाया जाएगा. जल संसाधन मंत्री संजय झा ने कहा है कि बिहार सरकार खुद अपने संसाधन से छोटी नदियों को जोड़ने का काम शुरु करेगी. इससे बरसाती नदियों का कहर कम हो सकता है जो कम समय में ज्यादा तबाही मचा कर निकल जाती है. वैसी नदियों को जोड़ने पर बाढ़ से काफी राहत मिल सकती है.
नदी परियोजनाओं की धीमी गति
जमीन की कमी, स्थानीय लोगों का विरोध, राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अभाव के चलते नदी परियोजनाओं की रफ्तार धीमी है. जिन परियोजनाओं को सालों पहले पूरा हो जाना था वे अब तक पूरी नहीं हो पायी हैं. गंडक परियोजना, महानंदा नदी परियोजना, कोसी नहर परियोजना, बागमती परियोजना जैसी अन्य योजनाएं अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो पायी है. महानंदा परियोजना से पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार की पचास लाख से ज्यादा की आबादी को बाढ़ से राहत मिलती वहीं बागमती परियोजना से सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, शिवहर जिले में बाढ़ से बर्बादी को रोका जा सकता था. गंडक नहर परियोजना भी स्थानीय लोगों के विरोध के कारण पूरी नहीं हो पायी है. कोसी नहर योजना के तहत पश्चिमी कोसी नहर प्रणाली जमीन के अभाव में हाल तक अटकी पड़ी थी.
ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि बाढ़ निरोधी कार्य को पूरी मुस्तैदी से तय समय पर पूरा किया जाए. कुशल प्रबंधन से योजनाओं को समय पूरा किया जा सकता है जिससे लोगों को राहत मिल सकती है. जानकारों के मुताबिक बिहार की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि बाढ़ को टाला नहीं जा सकता लेकिन बेहतर प्रबंधन से आम जनजीवन पर पड़ने वाले बाढ़ के दुष्परिणामों को कम अवश्य किया जा सकता है.