बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के लिए कल का दिन बेहद महत्वपूर्ण रहा. दिल्ली स्थित पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में आयोजित पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ललन सिंह को पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया. हाल ही में केंद्रीय मंत्री बने आरसीपी सिंह की जिम्मेदारी मुंगेर सांसद ललन सिंह को सौंप दी गई है. अब ललन अपने सूझबूझ से पार्टी को मजबूत करेंगे और उसे नई ऊंचाईयों तक पहुंचाएंगे.
नीतीश कुमार का जिक्र नहीं किया
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर पार्टी नेता ललन सिंह को बधाई दे रहे हैं. लेकिन केंद्रीय मंत्री और नीतीश कुमार के बेहद करीबी नेता आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के फैसले से शायद खुश नहीं हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने उन्हें शुभकामनाएं दी. ट्विटर पर एक के बाद एक कुल छह ट्वीट किया. लेकिन किसी ट्वीट में उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जिक्र नहीं किया.
आरसीपी सिंह ने ट्वीट कर लिखा, ” प्रिय साथियों, जेडीयू मेरे लिए पार्टी मात्र नहीं बल्कि यह मेरे लिए जीवन का पर्याय बन चुकी है. सुबह उठने से लेकर रात सोने तक मेरी हर सांस पार्टी और पार्टी के साथियों से जुड़ी होती है. लेकिन दल हो या जीवन, हमारी और आपकी भूमिका समय-समय पर बदलती रहती है. बदलाव जीवन और प्रकृति का नियम है, जिसे हम बदल नहीं सकते. लेकिन जो हमारे हाथ में है और जिसकी बाद में चर्चा होती है, वो यह कि हमने अपनी जिम्मेदारी कितनी खूबसूरती और शिद्दत से निभाई.”
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ” पार्टी ने मुझे जब जो जिम्मेदारी दी, उसे मैंने अपना सौ प्रतिशत दिया और अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा और चेतना दल को आगे बढ़ाने में लगाई. हमारे नेता का सिर हमेशा ऊंचा रहे और उनका काम सरजमीन तक पहुंचे, हमेशा पूरी तत्परता से इस कोशिश में लगा रहा. मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि मेरे हर काम की सफलता के मूल में आप सभी का विश्वास और साथ रहा है . मेरी हर उपलब्धि में आप सभी बराबर के साझेदार हैं और हमेशा रहेंगे.”
केंद्रीय इस्पात मंत्री ने कहा, ” राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अपने संक्षिप्त कार्यकाल में और वो भी कोरोना के साये में रहते हुए मैंने दल को नई मजबूती और मुकाम देने की हरसंभव कोशिश की. अब इस दायित्व को ललन बाबू आगे बढ़ाएंगे, मुझे इसमें कोई संदेह नहीं. अपने दल के लिए और आप सबके लिए मैं जैसे उपलब्ध था, वैसे ही रहूंगा- आजीवन, अविराम. अपने साथ, सहयोग और स्नेह के लिए मेरा आभार और प्रणाम स्वीकार करें.”
नीतीश कुमार ने नहीं दी थी बधाई
गौरतबल है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी जब आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बने थे तो उन्हें सार्वजनिक तौर पर बधाई नहीं दी थी. इस बात पर काफी बवाल भी हुआ था. तभी मामले में सफाई देते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने कहा थी कि लोग बेवजह इस बात को मुद्दा बना रहे हैं. जरूरी नहीं है कि ट्वीट कर ही बधाई दिया जाए. लोग फोन पर भी बातचीत करते हैं. इस बयान के बाद ये मामला शांत हो गया था. लेकिन आरसीपी के ट्वीट ने एक बार फिर इस कयास को हवा दे दी है कि मुख्यमंत्री और उनके बीच दूरी बढ़ गई है.
आखिर नीतीश कुमार के लिए कैसे बन गए ‘संकटमोचक ललन सिंह
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह आखिरकार जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन ही गए. राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर ललन सिंह के नाम की चर्चा उस वक्त से चल रही थी जब पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए. हालांकि ललन सिंह के साथ-साथ कई और नाम भी राजनीतिक गलियारे में चल रहे थे, लेकिन बाकी नेताओं पर ललन सिंह का कद भारी पड़ा.
अब जबकि राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने ललन सिंह के नेतृत्व पर मुहर लगा दी है, यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए ललन सिंह के नाम पर ही भरोसा क्यों किया? जनता दल यूनाइटेड के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए राजीव रंजन सिंह की पहचान ललन बाबू के तौर पर है. पार्टी का छोटा और बड़ा हर नेता उन्हें लगभग इसी नाम से बुलाता है
नीतीश जब मुख्यमंत्री बने
बिहार में लालू-राबड़ी का शासनकाल जब खत्म हुआ और 2005 में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली तो जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी ललन सिंह को मिली थी. ललन सिंह ने नीतीश शासन के शुरुआती दौर में पार्टी को बखूबी संभाला. साल 2009 तक वह लगातार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे. 2009 में कुछ मुद्दों पर नीतीश कुमार से मतभेद हुआ तो उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ दी. कुछ वक्त तक नीतीश कुमार से अलग वह सक्रिय भी रहे लेकिन किसी राजनीतिक दल में नहीं गए. आखिरकार ललन सिंह की वापसी जनता दल यूनाइटेड में हुई और एक बार फिर वह नीतीश कुमार के बेहद नजदीक पहुंच गए.
मुंगेर संसदीय क्षेत्र से तीसरी बार चुनकर संसद पहुंचने वाले ललन सिंह पहली बार साल 2014 में बिहार सरकार के मंत्री बने. 2014 के आम चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने बिहार में पार्टी के प्रदर्शन की नैतिक जवाबदेही लेते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी. उन्होंने जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बनवाया और मांझी के मंत्रिमंडल में ललन सिंह पथ निर्माण मंत्री बने. बिहार में राजनीतिक गतिविधियों की खबर रखने वाले लोग जानते हैं कि जीतन राम मांझी बाद में कैसे नीतीश कुमार की नीतियों से अलग जाकर शासन चलाने लगे तो वापस उन्हें हटाने की मुहिम शुरू हो गई थी जिसमे ललन सिंह की भूमिका काफी अहम थी
चिराग के खिलाफ साइलेंट ऑपरेशन
2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार की वापसी हुई. इस बार नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड भी एनडीए में शामिल थी. उम्मीद लगाई गई कि ललन सिंह केंद्र में मंत्री बनेंगे लेकिन बीजेपी ने जो फार्मूला तय किया नीतीश ने उस फार्मूले के तहत केंद्रीय कैबिनेट में शामिल होने पर सहमति नहीं दी. ललन सिंह मंत्री बनते-बनते रह गए. 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार में जब एनडीए के अंदर सीट का बंटवारा हो रहा था तब भी ललन सिंह निर्णायक भूमिका में थे. नीतीश कुमार ने एक बार फिर बिहार में जीत की हैट्रिक लगाई और चुनावी मैनेजमेंट में ललन सिंह की भूमिका एक बार फिर नजर आई. विधानसभा चुनाव में नीतीश को नुकसान पहुंचाने वाले चिराग पासवान को झटका देने की बारी आई तो ललन सिंह यहां भी चाणक्य की भूमिका में नजर आए. उन्होंने न केवल लोक जनशक्ति पार्टी के इकलौते विधायक को जेडीयू में शामिल करा दिया बल्कि चिराग से उनके चाचा और चचेरे भाई को भी अलग करा दिया.
राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी क्यों
नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी में एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को लागू कर रखा है. केंद्रीय कैबिनेट में आरसीपी सिंह के शामिल होने के बाद ही यह तय हो गया था कि नीतीश किसी नए चेहरे को राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी देंगे. अपनी पार्टी का जनता दल यूनाइटेड में विलय करने वाले उपेंद्र कुशवाहा के नाम की खूब चर्चा हुई लेकिन ललन सिंह की विश्वसनीयता कुशवाहा पर भारी पड़ी. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने एक बार फिर ललन सिंह को ही इस बड़ी जिम्मेदारी के लिए चुना. ललन सिंह के सामने इस वक्त दोहरी चुनौती भी है. एक तरफ जनता दल यूनाइटेड को तीसरे नंबर की पार्टी से ऊपर ले जाकर नंबर वन बनाने और दूसरी तरफ से बीजेपी के उस तेज तर्रार नेतृत्व से निपटने की जो केवल अपनी शर्तों पर सहयोगियों से बात करती है. 24 जनवरी 1955 को पटना में जन्म लेने वाले ललन सिंह ग्रेजुएट हैं. सरकार से लेकर संगठन तक में वह अहम भूमिका निभा चुके हैं. कार्यकर्ताओं और नेताओं के ललन बाबू क्या वाकई नीतीश के लिए एक बार फिर संकटमोचक साबित तो हो पाएंगे इस सवाल का जवाब तो भविष्य में ही सामने आएगा.