बिहार सरकार के एक और सहनी मंत्री नाराज हो गए हैं। समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी के बाद अब पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री मुकेश सहनी की नाराजगी बिहार से लेकर UP तक चर्चा में बनी हुई है। लेकिन मदन सहनी और मुकेश सहनी की नाराजगी की वजहों में बड़ा अंतर है। हालांकि दोनों ही सरकार में अपनी बात नहीं सुने जाने पर गुस्सा जाहिर कर रहे हैं। मदन सहनी के नाराजगी प्रकरण का तो पटापेक्ष हो गया है लेकिन मुकेश सहनी की ये नाराजगी लंबे समय तक दिखती रहेगी।
आरजेडी के वरिष्ठ विधायक भाई वीरेंद्र का कहना है की आरजेडी जिस विधेयक को बिहार की जनता के अनुकूल नहीं समझेगी, उसके ख़िलाफ़ सदन में वोटिंग की मांग करेगी और हमारा मानना है कि सदन में ऐसे बहुत लोग हैं जो अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन वोट करेंगे. ऐसे में अगर में सरकार गिरने की नौबत आती है तो इससे बेहतर क्या हो सकता है?
मौनसुन सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच चल रहे आपसी खींचतान के बीच आरजेडी के वरिष्ठ विधायक भाई वीरेंद्र का बयान ऐसे समय में आया है जब एनडीए के प्रमुख सहयोगी मुकेश सहनी उतर प्रदेश की योगी सरकार से नाराज़ हैं. अपनी नाराज़गी एनडीए के बैठक में शामिल नही होकर जता भी चुके हैं. लगे हाथों महागठबंधन की तरफ़ से न्योता भी मिलने लगा है.
मानसून सत्र में सात विधेयक आने वाले हैं और कई बार सदन में किसी विधेयक को लेकर विरोधी पार्टियां अड़ जाती हैं. कई बार विधेयक को पारित करवाने के लिए मतदान की नौबत आ जाती है और इस बार भी जब एनडीए बहुत मामूली बहुमत से चल रही है, ऐसे में अगर मुकेश सहनी और जीतनराम मांझी के तेवर ख़तरे का सबब ना बन जाएं. मुकेश सहनी ने ये बयान देकर बिहार की राजनीति और गरमी दी है कि लगता ही नहीं कि प्रदेश में एनडीए की सरकार चल रही है, यह तो जेडीयू और भाजपा की सरकार ही लग रही है.
हालांकि, एनडीए के नेता फ़िलहाल ऐसे किसी भी आशंका से इनकार करते हैं. डिप्टी सीम तारकिशोर प्रसाद कहते हैं कि मुकेश सहनी ने हम लोगों से कोई शिकायत नहीं की है. उनकी नाराजगी बिहार के संदर्भ में नहीं है और NDA पूरी तरह से एकजुट है. वहीं JDU के MLC नीरज कुमार कहते हैं कि हर पार्टी की अपनी अपनी अलग राजनीति होती है. मुकेश सहनी की भी अपनी राजनीति है लेकिन वो नीतीश सरकार में मंत्री हैं और सरकार के मुख्य अंग है और NDA के साथ मज़बूती से हैं.
बिहार के वरिष्ठ राजनीती के समझ रखने वालो का कहना है कि बिहार विधानसभा में अभी जो दल गत स्थिति है, वो NDA के लिए बहुत आरामदायक नहीं है. अभी बहुमत के लिए 122 विधायक चाहिए और NDA के पास 127 विधायकों का बहुमत है. अगर मुकेश सहनी और मांझी नाराज़ हो जाते हैं तो खेल कुछ भी हो सकता है.
BJP पर दबाब डाल रहे मुकेश सहनी
बिहार सरकार में मंत्री मुकेश सहनी फूलन देवी के बहाने UP की राजनीति में इंट्री कर रहे थे। UP की योगी सरकार ने उन्हें वाराणसी एयरपोर्ट से ही वापस कर दिया। अब मुकेश सहनी बिहार की राजनीति में सियासी हलचल पैदा कर, UP मे घुसे बिना ही UP की राजनीति पर असर दिखाने की कोशिश में लग गए हैं । UP की कई राजनीतिक पार्टियां इसमें उनका साथ भी दे रही है। असल में मुकेश सहनी की पार्टी 2022 में होनेवाले UP चुनाव में बिहार की तरह ही UP में भी कुछ सीटें लेना चाहती है। बिहार में BJP से 11 विधानसभा और 1 विधानपरिषद् की सीट लेने में कामयाब रही थी मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (VIP)। इसमें 4 विधानसभा सीटों पर VIP को जीत भी मिली थी ।
UP में इंट्री रोके जाने का मतलब, BJP हिस्सेदारी देने को तैयार नहीं
मुकेश सहनी असल में फूलन देवी की मूर्ति स्थापना कर, वाराणसी में अपना शक्ति प्रदर्शन करना चाहते थे। ये शक्ति प्रदर्शन UP विधानसभा चुनाव में BJP से हिस्सेदारी मांगने की शुरूआत थी। लेकिन सहनी की पहली ही चाल को UP के CM योगी आदित्यनाथ ने रिजेक्ट कर दिया है। ये हो सकता था कि UP में सहनी समाज की आबादी को देखते हुए BJP मुकेश सहनी को हिस्सेदारी देने पर विचार करती। लेकिन वाराणसी में जो कुछ हुआ उससे साफ है योगी आदित्यनाथ इसके लिए तैयार नहींं।
मुकेश सहनी के लिए सिर्फ UP नहीं बिहार में भी मुद्दा
ऐसा नहीं कि मुकेश सहनी, BJP से नाराजगी दिखाने का ये जोखिम केवल UP में हिस्सेदारी पाने के लिए कर रहे हैं। असल में मुकेश सहनी के लिए समस्या बिहार में भी है। विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी की पार्टी के 4 विधायक जीत कर आये थे, लेकिन वो खुद हार गए थे। BJP की तरफ से मिली MLCकी एक सीट के जरिए अभी वो बिहार सरकार में मंत्री हैं। मुकेश सहनी इस सीट पर जुलाई 2022 तक ही MLC रह सकते हैं। यही वजह है कि पिछले दिनों राज्यपाल कोटे से मनोनयन होनेवाले MLC की 12 सीटों में से 1 पर मुकेश सहनी ने दावेदारी ठोंकी थी। ये सीटें 6 साल कार्यकाल वाली थी। इस मनोनयन के बाद से ही सहनी और जीतन राम मांझी के बीच मुलाकातों का सिलसिला तेज हो गया था। असल में जीतन राम मांझी की पार्टी हम की तरफ से भी 1 सीट मांगी जा रही थी। अब दोनों ही दल इस मुद्दें पर एक साथ खड़ी होकर JDU और BJP पर दबाब बना रही हैं, जिससे उन्हें और राजनीतिक हिस्सेदारी मिल सके।
मानसूत्र सत्र में सात विधेयक पारित होने वाले हैं जिसमे तीन धन विधेयक हैं. बिहार खेल विश्वविद्यालय विधेयक, बिहार अभियंत्रण विश्व विद्यालय जैसे विधेयक हैं जिनके पारित होने पर सरकार के ख़ज़ाने पर बोझ पड़ेगा और अगर इसमें किसी में भी पारित होने में वोटिंग की नौबत आती है तो NDA के लिए थोड़ी मुश्किल आ सकती है. ऐसे में एनडीए सरकार ने भी पूरी तरह से कमर कसनी होगी. हालांकि सच यह भी है कि बिहार में कभी ऐसी नौबत अभी तक नहीं आई.