जातिगत जनगणना के मामले को लेकर बिहार को बड़ा झटका लगा है. खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातीय जनगणना को लेकर पक्ष में बयान देते रहे हैं. लालू प्रसाद यादव भी जातीय जनगणना की मांग बराबर करते रहे हैं. इधर हाल के महीनों में तेजस्वी यादव ने भी जातीय जनगणना के मुद्दे को प्रमुखता के साथ उछाला है लेकिन केंद्र सरकार ने इस मामले को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है. ऐसे में सरकार के फैसले से बिहार के सक्रिय राजनीतिक दलों को गहरा झटका लग सकता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि जातीय आंकड़े की जनगणना इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे हर तबके की तरक्की के लिए सही स्थिति स्पष्ट होगी.
जातिगत जनगणना के मुद्दे पर बिहार में खूब राजनीति होती रही है। बिहार में सक्रिय राजनीतिक दल इसे लेकर केंद्र सरकार पर दबाव भी बना चुके हैं। किंतु केंद्र सरकार के हालिया फैसले से बिहार के राजनीतिक दलों को झटका लग सकता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसके पक्ष में रहे हैं। उन्होंने कहा था कि हर तबके की तरक्की के लिए जातीय आंकड़े को जनगणना में शामिल करना चाहिए। राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने तो इसे मुद्दा ही बना रखा था। लगभग सभी राजनीतिक मंचों पर वह लगातार मांग उठाते आए हैं। अब तेजस्वी यादव भी इस मुद्दे पर मुखर हैं।
केवल एससी-एसटी वर्ग के लोगों की होगी गिनती
लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने स्पष्ट कह दिया है कि 2021 की जनगणना के साथ केंद्र सरकार सिर्फ एससी-एसटी वर्ग के लोगों की ही गिनती कराने के पक्ष में है। अन्य किसी की नहीं। केंद्र सरकार के इस फैसले को भाजपा-जदयू समेत बिहार के सभी राजनीतिक दलों की भावना के विपरीत माना जा रहा है, क्योंकि बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों ने जाति आधारित जनगणना कराने के पक्ष में सर्वसम्मति से दो-दो बार प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा है। पहली बार 2019 में और दूसरी बार 2000 में। दोनों सदनों में भाजपा के सदस्यों ने भी जातिगत जनगणना कराए जाने के पक्ष में अपना समर्थन दिया था।
सभी मंचों पर लालू प्रसाद उठाते रहे हैं यह मुद्दा
दोनों सदनों में भाजपा के सदस्यों ने भी जातिगत जनगणना कराए जाने के पक्ष में अपना समर्थन दिया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसके पक्ष में हैैं। उन्होंने कहा था कि हर तबके की तरक्की के लिए जातीय आंकड़े को जनगणना में शामिल करना चाहिए। राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने तो इसे मुद्दा ही बना रखा था। लगभग सभी राजनीतिक मंचों पर वह लगातार मांग उठाते आए हैं। अब तेजस्वी यादव भी इस मुद्दे पर मुखर हैं।
उपेंद्र कुशवाहा से जातिगत जनगणना पर कहा कि जातीय जनगणना का प्रकाशन बहुत जरूरी है. जनगणना में जाति का कॉलम होना चाहिए. किसी भी योजना को बनाने का आधार जनसंख्या होता है और जातिगत गणना और उसका प्रकाशन निश्चित रूप से होना चाहिए।
बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा है कि केन्द्र सरकार जातिगत जनगणना के आंकड़े क्यों छुपा रही है? भाजपा सरकार जातिगत जनगणना क्यों नहीं कराना चाहती? सरकार को किस बात का डर है?
उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा है कि केन्द्र सरकार ने तय कर लिया है कि सिर्फ अनुसूचित जाति/जनजाति की ही जनगणना होगी। केंद्र की मोदी सरकार ने मेडिकल एंट्रेंस #NEET परीक्षा में 14000 ओबीसी छात्रों का हक खा लिया है। प्रधानमंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री पिछड़ों और अति पिछड़ों की इस हकमारी पर चुप हैं। प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं कि हमने OBC, SC/ST वर्गों से मंत्री बनाए हैं, लेकिन यह नहीं बताते कि इन वर्गों से कितने कैबिनेट मंत्री बनाए हैं? पिछड़े और दलित वर्गों के जो भी गिने-चुने मंत्री बनाए गए हैं, उन्हें महत्वहीन विभाग देकर महज सांकेतिक प्रतिनिधित्व की खानापूर्ति की गई है। कोई भी अहम विभाग इन वर्गों के पास नहीं है। देश की 60 फीसदी जनसंख्या वाले पिछड़े वर्ग के मात्र 4 -5 मंत्री हैं, जबकि 2-4 फीसदी जनसंख्या वाले वर्ग के दर्जनों मंत्री हैं।
कांग्रेस से सवाल करें तेजस्वी यादवः BJP
BJP प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने तेजस्वी यादव के बयान पर कहा है कि हमारी सरकार ने तो निचले तबके के लोगों को लगातार योजनाओं का लाभ पहुंचाया है। इन योजनाओं से उन्हें डर लग रहा है, जो ऐसे वर्गों को वोट बैंक के रूप में हमेशा सिर्फ इस्तेमाल करते रहे हैं। पटेल ने कहा कि क्या तेजस्वी यादव को नहीं मालूम है कि पिछड़े वर्ग के नेतृत्व वाली ही सरकार है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में 52 फीसदी पिछड़े-अतिपिछड़े, दलितों का प्रतिनिधित्व हुआ है। तेजस्वी यादव को अपनी उस सहयोगी पार्टी से सवाल करना चाहिए, जिन्होंने 55 वर्षों तक केन्द्र की राजनीति की और निचले तबके को हाशिए पर रखा।