उत्तर प्रदेश की नई जनसंख्या नीति पर कई हलकों से आ रही नकारात्मक प्रतिक्रियाएं दुखद अवश्य हैं पर अनपेक्षित नहीं। भारत में जनसंख्या नियंत्रण और इससे संबंधित नीति पर जब भी बहस होती है तो तस्वीर ऐसी ही उभरती है। हालांकि सलमान खुर्शीद जैसे वरिष्ठ नेता बयान दुर्भाग्यपूर्ण कहा जाएगा। वे कह रहे हैं कि पहले नेता‚ मंत्री और विधायक बताएं कि उनके कितने बच्चे हैं‚ और उनमें कितने अवैध हैं। सपा सांसद सफीकुर्रहमान बर्क यदि कह रहे हैं कि कोई कानून बना लीजिए बच्चे पैदा होने हैं‚ वे होंगे‚ अल्लाह ने जितनी रूहें पैदा की हैं‚ सब धरती पर आएंगी तो किसी को हैरत नहीं होगी॥। लंबे समय से देश में सोचने–समझने वालों का बड़ा तबका आबादी को नियंत्रण में रखने के लिए किसी न किसी तरह की नीति लागू करने की आवाज उठाता रहा है। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने १५ अगस्त को लाल किले से अपने भाषण के लिए आम लोगों से सुझाव मांगे तो सबसे ज्यादा संख्या में जनसंख्या नियंत्रण कानून का सुझाव आया था। अर्थशा्त्रिरयों समाजशा्त्रिरयों ने लगातार बढ़ती आबादी पर चिंता प्रकट की है। प्रश्न है कि जनसंख्या नियंत्रण नीति में ऐसा क्या है जिसके विरुद्ध तीखी प्रतिक्रिया होनी चाहिएॽ क्या वाकई यह एक मजहब यानी मुसलमानों के खिलाफ है‚ जैसा आरोप लगाया जा रहा हैॽ
उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने जब जनसंख्या नियंत्रण नीति का दस्तावेज जारी किया तो सूक्ष्मदर्शी यंत्रों से दोष निकालने वालों ने एक–एक शब्द छान मारा। उसमें किसी तरह के मजहब का कोई जिक्र नहीं था। इसमें दो से ज्यादा बच्चा पैदा करने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन करने का निषेध या सरकारी सुविधाओं से वंचित करने या फिर राशन कार्ड में चार से अधिक नाम नहीं होने का बिंदु सभी मजहबों पर समान रूप से लागू होगा। कहीं नहीं लिखा कि केवल मुसलमानों पर लागू होगा। आबादी मान्य सीमा से न बढ़े‚ उम्र‚ लिंग और मजहब के स्तर पर संतुलन कायम रहे‚ यह जिम्मेवारी भारत के हर नागरिक की है। विरोध का तार्किक आधार हो तो विचार किया जा सकता है। लेकिन इसे मुसलमानों को लक्षित नीति कहना निराधार है। नीति में २०२६ तक जन्म दर को प्रति हजार आबादी पर २.१ तथा २०३० तक १.९ लाने का लक्ष्य रखा गया है। क्या यह एक मजहब से पूरा हो जाएगाॽ जनसंख्या नियंत्रण के लिए हतोत्साहन और प्रोत्साहन‚ दोनों प्रकार की नीतियों या कानून की मांग की जाती रही है। इसमें दो से अधिक बच्चों को कई सुविधाओं और लाभों से वंचित किया गया है‚ तो उसकी सीमा में रहने वाले‚ दो से कम बच्चा पैदा करने वाले या दो बच्चा के साथ नसबंदी कराने वालों के लिए कई प्रकार के लाभ और सुविधाओं की बातें हैं। अपनी आबादी के जीवन गुणवत्ता तथा क्षमता विकास किसी सरकार का उद्देश्य होना चाहिए। इसमें बच्चों और किशोरों के सुंदर स्वास्थ्य‚ शिक्षा के लिए भी कदम हैं। ॥ मसलन‚ ११ से १९ वर्ष के किशोरों के पोषण‚ शिक्षा और स्वास्थ्य के बेहतर प्रबंधन के अलावा‚ बुजुर्गों की देखभाल के लिए व्यापक व्यवस्था भी की जाएगी। नई नीति में आबादी स्थिरीकरण के लिए स्कूलों में हेल्थ क्लब बनाने का प्रस्ताव भी है। डिजिटल हेल्थ मिशन की भावनाओं के अनुरूप प्रदेश में नवजातों‚ किशोरों और बुजुर्गों की डिजिटल ट्रैकिंग कराने की भी योजना है। जनसंख्या नियंत्रण कानून का ही नहीं‚ सामाजिक जागरूकता का भी विषय है‚ और इस पहलू पर फोकस किया गया है। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से लगातार ज्यादा रही है। २००१–२०११ के दौरान प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि दर २०.२३/ङऽ/च् रही जो राष्ट्रीय औसत वृद्धि दर १७.७/ङऽ/च् से अधिक है। इसे अगर राष्ट्रीय औसत के आसपास लाना है‚ तो किसी न किसी प्रकार के कानून की आवश्यकता है। यह कानून इसी आवश्यकता की पूर्ति करता है। हालांकि वर्तमान अंतरराष्ट्रीय प्रवृत्ति जनसंख्या बढ़ाने की है। एक बच्चा कानून कठोरता से लागू करने वाले चीन को तीन बच्चे पैदा करने की छूट देनी पड़ी है क्योंकि इस कारण वहां आबादी में युवाओं की संख्या घटी है जबकि बुजुर्गों की बढ़ रही है। अनेक विकसित देश इसी असंतुलन के भयानक शिकार हो गए हैं। युवाओं की संख्या घटने का अर्थ काम करने वाले हाथों का कम होना है‚ जिसका देश की आर्थिक–सामाजिक प्रगति पर विपरीत असर पड़ता है। दूसरी ओर बुजुर्गों की बढ़ती आबादी का मतलब देश पर बोझ बढ़ना है। इसलिए अनेक देश ज्यादा बच्चा पैदा करने के लिए प्रोत्साहनों की घोषणा कर रहे हैं।
भारत में भी इस पहलू का विचार अवश्य किया जाना चाहिए। हम अगर भविष्य की आर्थिक महाशक्ति माने जा रहे हैं‚ तो इसका बड़ा कारण हमारे यहां युवाओं की अत्यधिक संख्या यानी काम के हाथ ज्यादा होना भी है। जनसंख्या नियंत्रण की सख्ती से इस पर असर पड़ेगा और भारत की विकास छलांग पर ग्रहण लग सकता है। किंतु यह भी सही है कि तत्काल कुछ समय के लिए जनसंख्या वृद्धि कम करने का लक्ष्य पाया जाए और उसके बाद भविष्य में ढील दी जाए। चीन ने कहा भी है कि एक बच्चे की नीति से उसने ४६ करोड़ बच्चे का जन्म रोकने में सफलता पाई। सच है कि भारत में हिंदू‚ जैन‚ सिख और बौद्ध की आबादी वृद्धि दर लगातार नीचे आई है‚ तो मुसलमानों और कहीं–कहीं ईसाइयों की वृद्धि दर बढी है। यह सलाह भी दी जाती रही है कि चूंकि भारत में जनसंख्या नियंत्रण की कठोर नीति लागू करना संभव नहीं‚ इसलिए हिंदुओं‚ सिखों‚ बौद्धों और जैनियों ज्यादा बच्चा पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इन्हें तीन बच्चे पैदा करने की प्रेरणा देने के लिए अभियान चलाने की भी सलाह दी जाती रही है।
हम चाहे जो भी तर्क दें लेकिन गैर–मुस्लिमों में उनकी आबादी वृद्धि को लेकर व्यापक चिंता है। जिस देश का मुस्लिम मजहब के आधार पर विभाजन हो चुका है‚ वहां इस तरह का भय आधारहीन नहीं माना जा सकता। कुछ कट्टर मजहबी और राजनीतिक नेता आबादी वृद्धि को संसदीय लोकतंत्र में अपनी ताकत का आधार बनाकर उकसाते हैं। सच कहें तो उत्तर प्रदेश सरकार ने साहसी फैसला किया है। हालांकि आबादी में उम्र संतुलन के प्रति लगातार सतर्क रहना होगा ताकि युवाओं की आबादी और उद्यमी हाथों में विश्व में नंबर एक का स्थान हमसे न छिन जाए।