लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के सांसद चिराग पासवान ने लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला के उस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है‚ जिसमें सांसद पशुपति कुमार पारस की अगुवाई वाली लोजपा को मान्यता दी गई है। उनकी याचिका पर ९ जुलाई को सुनवाई होने की संभावना है। चिराग का दावा है कि लोजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ७५ सदस्य हैं‚ जिनमें से ६६ सदस्य उनके साथ हैं। लोजपा में कलह की शुरुआत १३ जून को शुरू हुई थी और १४ जून को चिराग पासवान को छोड़़ कर पार्टी के बाकी पांचों सदस्यों‚ जिनमें पशुपति कुमार पारस भी शामिल थे‚ ने संसदीय बोर्ड़ की बैठक बुलाई थी। बैठक में पार्टी के हाजीपुर से सांसद और चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस को लोजपा के संसदीय बोर्ड़ का नया अध्यक्ष चुन लिया गया। इसकी सूचना लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला को भी दे दी गई। उसी दिन शाम को लोक सभा सचिवालय से उन्हें मान्यता भी मिल गई। इस घटनाक्रम से सन्न चिराग ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर पांचों सांसदों को बागी करार देते हुए लोजपा से हटाने की अनुशंसा कर दी। लोजपा के संस्थापक अध्यक्ष रामविलास पासवान के निधन के बाद से ही लगने लगा था कि यह कुनबा एकजुट शायद ही रह सके। दरअसल‚ राजनीति महत्वकांक्षा का खेल है‚ पार्टी के कर्ताधर्ता ने जरा भी अपरिपक्वता दिखाई नहीं कि कुछभी अप्रत्याशित घट सकता है। बिहार विधानसभा चुनाव के समय चिराग ने जिस तरह गठबंधन धर्म को धता बताते हुए जदयू के प्रत्याशियों के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतार दिए थे उससे उनमें राजनीतिक कौशल का घोर अभाव दिखलाई पड़़ा। जदयू का विरोध करने का कोई आधार नहीं था क्योंकि जदयू भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़़ रही थी। इस गठबंधन में लोजपा भी थी। लेकिन व्यक्तिगत हिसाब–किताब करने पर आमादा चिराग जदयू की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरे नीतीश कुमार का विरोध करने में इस हद तक चले गए कि गठबंधन की बड़़ी सहयोगी भाजपा असहज हो गई। लोजपा को मात्र एक सीट मिल पाई जिस पर जीता प्रत्याशी भी जदयू में जा मिला। मोदी मंत्रिमंड़ल के विस्तार में पशुपति को मंत्री पद मिलने से चिराग बेकल हैं। जुझारू तेवर दिखा जरूर रहे हैं‚ लेकिन हारी हुई लड़़ाई लड़़ते दिख रहे हैं। तय है कि उनका संघर्ष लंबा चलेगा।
बिहार में दिखाएंगे औकात……..
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले सीट शेयरिंग को लेकर सियासी बवाल मच गया है। इस बार दिल्ली में सीट...