प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को हतप्रभ करने वाले काम से भी परहेज नहीं करते हैं. खासकर अपने मंत्रिमंडल में नए चेहरों को शामिल करने के मामले में. गौरतलब है कि दो साल पहले जब पीएम मोदी ने पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को विदेश मंत्रालय का जिम्मा सौंपा, तो काफी लोग हैरान रह गए थे. हालांकि जिन्हें पीएम मोदी की कार्यशैली का अंदाजा है, उनके लिए जयशंकर की नियुक्ति कतई अचरज वाली बात नहीं थी. यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अपने पहले कार्यकाल से ही पीएम मोदी ब्यूरोक्रेट्स और टेक्नोक्रेट्स पर भरोसा करते आए हैं. माना जा रहा है कि उनका यह भरोसा जल्द होने वाले मोदी सरकार 2.0 के केंद्रीय कैबिनेट विस्तार में भी नजर आ सकता है.
केंद्र में होगा नौकरशाहों का दबदबा
हाल-फिलहाल जयशंकर के अलावा बिजली मंत्री आरके सिंह, नागरिक उड्डयन और शहरी विकास मंत्रालय संभाल रहे हरदीप सिंह पुरी ऐसे मंत्री हैं, जो पहले ब्यूरोक्रेट रहे हैं. ऐसे में कतर् अचरज नहीं है कि चर्चा है कि कैबिनेट विस्तार में ब्यूरोक्रेसी से जुड़े रहे कुछ और लोगों को शामिल किया जा सकता है. पूर्व आईएएस अधिकारी अश्विनी वैष्णव के नाम की चर्चा इनमें प्रमुख है. ब्यूरोक्रेट्स को मंत्री बनाने का फायदा यह है कि उन्हें सिस्टम के बारे में सबकुछ पता होता है. मातहतों से कैसे काम करवाना है, अफसर बखूबी जानते हैं.
राज्यसभा सांसद हैं अश्विनी वैष्णव
आईएएस अधिकारी रहे अश्विनी ने अमेरिका से एमबीए किया है. वह आईआईटी कानपुर से एमटेक पासआउट हैं. ऑल इंडिया लेवल पर सिविल सर्विस एग्जाम में उनकी 27वीं रैंक थी. ओडिशा के कई जिलों में तैनात रहने के दौरान उन्होंने शानदार काम किया. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए कुछ समय अश्विनी पीएमओ में भी रहे. जब 2004 में एनडीए हार गया तो वैष्णय को वाजपेयी का निजी सचिव बनाया गया. फिलहाल वह ओडिशा से राज्यसभा सांसद हैं.
इसका मिश्रण होगा कैबिनेट विस्तार
संवैधानिक सीमा के तहत, केंद्रीय कैबिनेट में अधिकतम 81 मंत्री हो सकते हैं. फिलहाल 28 पद खाली हैं. छह मंत्रियों के पास दो से ज्यादा मंत्रालय हैं. सहकारिता को नया मंत्रालय बनाया गया है. कैबिनेट में डेढ़ दर्जन ओबीसी मंत्री हैं, जिनकी संख्या बढ़कर 25 तक जा सकती है. संकेत यही हैं कि मंत्रिपरिषद विस्तार में युवा और अनुभवी नेताओं का एक मिश्रण होगा. अपने-अपने राज्य में कमान संभाल चुके पूर्व मुख्यमंत्रियों, राज्यों में लंबे समय तक मंत्री रहे नेताओं को मौका मिल सकता है. युवाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ने के पूरे आसार हैं ताकि कैबिनेट की औसत आयु और कम हो सके. नए मंत्रिपरिषद में जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों का पूरा ध्यान रखा जाएगा. चूंकि अगले साल उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, ऐसे में उन्हें महत्व मिल सकता है. उत्तर प्रदेश से चार से पांच मंत्री बनना तय माना जा रहा है. बिहार से भी तीन नए केंद्रीय मंत्री आ सकते हैं. कैबिनेट विस्तार में अन्य पिछड़ा वर्ग के सबसे ज्यादा सदस्य हो सकते हैं.