ठीक है कि उत्तराखंड़ देवभूमि है और यहां यमुनोत्री‚ गंगोत्री‚ केदारनाथ और बदरीनाथ जैसे हिंदुओं के चार प्रमुख धाम स्थित हैं। जहां प्रतिवर्ष देश–विदेश से लाखों श्रद्धालु दर्शन‚ पूजन और भ्रमण के लिए आते हैं। यहां की सरकार लोगों की भावनाओं को देखते हुए इन तीर्थस्थलों के विकास और श्रद्धालुओं की सुविधाओं पर भरपूर ध्यान देती है। भारत जैसे धर्म प्रधान देश में धार्मिक आयोजनों से जुड़े़ मामलों में सरकारें अत्यधिक सचेत रहती हैं। इन चारों धामों की यात्राएं भी कुंभ जैसी ही चहल पहल और भारी जमावड़े़ के बीच सालाना संपन्न होती हैं। कोरोना महामारी के काल में बड़े़ पैमाने पर चारों धामों की यात्रा संभव न होते देख प्रदेश की तीरथ सिंह रावत सरकार ने राज्य मंत्रिमंड़ल की बैठक बुलाकर स्थानीय निवासियों के लिए एक जुलाई से चारों धामों की यात्रा की अनुमति दे दी थी। इस फैसले के तहत उन जिलों के निवासी इन धामों की यात्रा कर सकतेथे‚ जिनमें ये धाम स्थित हैं। चमोली जिले के निवासी बदरीनाथ‚ रुद्रप्रयाग जिले के निवासी केदारनाथ तथा उत्तरकाशी जिले के निवासी गंगोत्री तथा यमुनोत्री मंदिर में दर्शन कर सकते थे। महामारी के बीच यात्रा संचालन मे जोखिम को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इस सीमित यात्रा पर भी रोक लगा दी। कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा यात्रा के लिए जारी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को खारिज करते हुए इसे कुंभ मेले के दौरान जारी एसओपी की ही प्रतिलिपि बताया। सवाल उठता है कि आखिर उत्तराखंड़ सरकार ने स्थानीय निवासियों के लिए भी चार धाम यात्रा की मंजूरी क्यों दी थी। इन मंदिरों में वर्षों से चली आ रही पारंपरिक पूजा–अर्चना से संबंधित लोग तो संख्या में बहुत कम हैं। ये पंडे़–पुजारी कपाट खुलने के समय ही मंदिरों में पहुंच जातेे हैं। अन्य पंडे़ पुरोहितों और स्थानीय व्यापारियों को इस सीमित यात्रा से कोई लाभ नहीं होने वाला था। कुंभ के समय राज्य सरकार की कोरोना को लेकर की गई लापरवाही को कोई भी भुला नहीं सकता। राज्य का स्वास्थ्य ढचा आज भी बदहाल है। सरकार ने कांवड़़ यात्रा पर दूसरे साल भी रोक लगाकर समझदारी दिखाई है‚ जब अमरनाथ यात्रा भी नहीं हो पा रही है तो चारधाम यात्रा पर भी समझदारी दिखानी चाहिए।
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