सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार की आलोचना करना हर नागरिक का अधिकार है बशर्ते उसने अपने वक्तव्य से लोगों को हिंसा के लिए न उकसाया हो। सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को निरस्त करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक बार फिर अहम बताया। जस्टिस उदय उमेश ललित और विनीत सरन की बेंच ने कहा‚ आईपीसी की धारा १२४ए के तहत राजद्रोह का मुकदमा उसी सूरत में दर्ज हो सकता है यदि किसी का इरादा अशांति फैलाना हो। विनोद दुआ ने एक पत्रकार की हैसियत से मार्च २०२० में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा का चित्रण किया था। उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि प्रधानमंत्री ने आतंकवाद तथा लाशों का सहारा लेकर वोट बटोरे। बेंच ने कहा‚ सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केदार नाथ सिंह मामले में १९६२ में ही राजद्रोह का दायरा तय कर दिया था। सरकार तथा उसके मातहत काम करने वाले लोगों की आलोचना का अधिकार हर नागरिक को है। यदि नागरिक अपने वक्तव्य या कथन से किसी को हिंसा के लिए नहीं उकसाता या अशांति पैदा करने की कोशिश नहीं करता तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा १२४ए तथा ५०५ के तहत एफआईआर दर्ज करना जायज नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा‚ विनोद दुआ ने अपने शो में प्रवासी मजदूरों के अपने गांव की ओर लौटने का जिक्र किया है। श्रमिकों को रास्ते में खान–पान की समस्या का सामना करना पड़ा। कई सौ किलोमीटर चलकर वह अपने गांव पहुंचे। रास्ते में रहने के लिए कोई शेल्टर नहीं था। पत्रकार ने एक पूर्व मुख्य सांख्यिकी अधिकारी का हवाला देकर कहा था कि भुखमरी के कारण खाने के लिए दंगे भी हो सकते हैं। अदालत ने माना कि ३० मार्च २०२० को जिस समय यूटयूब पर शो प्रदर्शित किया गया‚ उस समय स्थिति बहुत भयावह थी। पत्रकार की हैसियत से दुआ ने आने वाली परेशानियों से प्रशासन को आगाह किया। यह कतई नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने अफवाह उड़ाई और मजदूरों को उकसाया।
मजदूरों का बड़ी तादाद में अपने गांवों की ओर लटना लॉकडाउन के बाद २५ मार्च से ही शुरू हो गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा‚ संविधान के अनुच्छेद १९(१)(ए) के तहत पत्रकार को अभिव्यक्ति की आजादी है। उसके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता। भाजपा के स्थानीय नेता अजय श्याम ने विनोद दुआ के खिलाफ शिमला के कुमारसैन थाने में आईपीसी की धारा १२४ए‚ २६८‚ ५०१ तथा ५०५ के तहत मुकदमा दर्ज कराया था। एफआईआर ६ मई २०२० को दर्ज की गई थी लेकिन दुआ को ११ जून को सीआरपीसी की धारा १६० के तहत नोटिस दिया‚ जिसमें कहा गया कि वह १३ जून २०२० को शिमला आएं‚ जिससे उनसे पूछताछ की जा सके। शिमला में दर्ज एफआईआर में शिकायतकर्ता ने कहा है कि दुआ ने अपने चैनल में प्रधानमंत्री मोदी के बारे में कहा है कि वह मौत और आतंकी हमले का इस्तेमाल वोट बैंक की राजनीति के लिए कर रहे हैं।