पश्चिम बंगाल में वोटों का ध्रुवीकरण एकतरफा हुआ है। ममता बनर्जी को हिंदुओं का वोट तो मिला ही है‚ उसे मुसलमानों का भी पूरा वोट मिला है। वामदल और कांग्रेस को मुसलमानों का वोट नहीं मिला। महिलाओं ने भी ममता बनर्जी पर पूरी तरह से विश्वास जताया और उनके साथ खड़ी रहीं। देश में जब कोरोना के मामले बढ़ रहे थे‚ तब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पश्चिम बंगाल में बड़ी–बड़ी रैलियां कर रहे हैं। तमाम सुझावों को नकारते हुए भाजपा लाखों की भीड़ जुटा रही थी। यह भी लोगों को पचा नहीं और तीसरे चरण के चुनाव के बाद भाजपा को इसका नुकसान होने लगा। भाजपा ने असम‚ तमिलनाडु और केरल में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन किया लेकिन पश्चिम बंगाल में उसे नकारात्मक प्रचार ले डूबा। जिस तरह से प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने ममता बनर्जी पर व्यक्तिगत तौर पर हमला किया उससे बंगाली मानुष खासकर महिलाएं ममता बनर्जी के साथ एकजुट खड़ी हो गइ। बंगाल में भाजपा का वोट फीसद भी गिर गया लेकिन उसने वाम और कांग्रेस का वोट प्राप्त कर लिया। ममता बनर्जी को मुसलमानों और महिलाओं का एकजुट वोट मिला। असम में दोबारा सत्ता में आने और पुडुचेरी में खाता खोलने के बाद भी भाजपा में मायूसी छाई हुई है क्योंकि भाजपा का पूरा फोकस पश्चिम बंगाल जीतने पर था। पिछले पांच वर्षों से पार्टी बंगाल में वोटों की खेती उगा रही थी और उसे उम्मीद थी कि इस बार के चुनाव में वह फसल काट रही होगी लेकिन हुआ उल्टा क्योंकि भाजपा ने अपने पूरे चुनाव प्रचार को नकारात्मक रखा देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने ममता बनर्जी पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाए और बार–बार उनका नाम लेकर चुनाव प्रचार किया। प्रधानमंत्री का ‘दीदी–ओ–दीदी’ नारा बहुत चर्चित रहा। सामान्य तौर पर लोगों की प्रतिक्रिया यही थी कि एक प्रधानमंत्री को सीधे तौर पर किसी राज्य की मुख्यमंत्री को निशाना नहीं बनाना चाहिए क्योंकि दोनों अपनी जगह मुखिया हैं और इस तरह की बौखलाहट से दोनों साथ काम नहीं कर सकते। भाजपा ने अपने लगभग सभी केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को चुनाव प्रचार में झोंक दिया था। इससे भी राज्य में गलत संदेश गया कि पूरी सरकार और पार्टी एक महिला के खिलाफ युद्ध लड़ रही है। ममता बनर्जी के पांव में चोट लगना और भाजपा का खिल्ली उड़ाना भी पार्टी के खिलाफ गया। इस बार ममता बनर्जी को करीब 49% वोट मिले जो कि २०१९ के लोकसभा चुनाव से छह फीसद ज्यादा हैं जबकि भाजपा को 41 फीसद वोट मिले थे जो घटकर करीब 37 फीसद रह गए। वर्ष २०१९ के हिसाब से भाजपा को १२१ सीटें मिलनी चाहिए थीं लेकिन उसके नकारात्मक प्रचार से उसकी सीटें ९० से नीचे रह गइ। कहने को भाजपा संतोष व्यक्त कर सकती है कि वर्ष २०१६ के चुनाव में उसे महज तीन सीटें मिली थीं और अगर आज वह ८५ सीटें जीत रही है तो यह उसके लिए बहुत बड़ी जीत है। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा भी नहीं दिया था। इसका भी सीधा फायदा ममता बनर्जी को हुआ क्योंकि दीदी बार–बार अपनी सभाओं में कहती थीं कि मोदी और अमित शाह तो बाहरी हैं‚ यह चुनाव प्रचार के बाद चले जाएंगे। मैं ही आपके साथ दिन–रात खड़ी रहूंगी। भाजपा अगर किसी बंगाली को मुख्यमंत्री का चेहरा पेश कर देती तो शायद उसकी स्थिति कुछ और होती।
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