चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि परिवार के सदस्यों या प्रियजन के बिना पृथक रहकर कोविड़–१९ संक्रमण का इलाज कराने से मरीजों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अकेलेपन से मरीज बीमारी से जंग जीतने की उम्मीद खो सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार परिवार के सदस्यों की मौजूदगी और उनके साथ नियमित बातचीत कोरोना वायरस इलाज का अहम हिस्सा होना चाहिए क्योंकि इसका मरीजों पर चिकित्सीय असर पड़़ता है। वर्धा में महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडि़कल साइंसेज (एमजीआईएमएस) के ड़ा. इंद्रजीत खांड़ेकर ने कहा‚ ‘परिवार के करीबी सदस्यों को कोविड़–१९ मरीजों के साथ न रहने देना या उनसे मिलने न देना क्रूर तथा अमानवीय है क्योंकि इससे संक्रमित लोगों की स्वस्थ होने की उम्मीद खो जाती है और उन्हें लगता है कि वे अकेले ही संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो रिश्तेदार कोरोना वायरस से संक्रमित अपने प्रियजनों के साथ रहना चाहते हैं उन्हें मास्क पहनते हुए ऐसा करने की अनुमति देनी चाहिए। उन्होंने कहा‚ ‘करीबी रिश्तेदारों की मौजूदगी और मरीजों के परिवार का ड़ाक्टरों तथा नर्सों से नियमित संवाद इलाज का अहम हिस्सा होना चाहिए।’ ड़ा. खांड़ेकर ने कहा कि प्रियजन के साथ बातचीत करना मरीजों के लिए कारगर हो सकता है और इससे सबसे मुश्किल हालात में भी उनमें जिंदा रहने की इच्छा हो सकती है। उन्होंने कहा कि जो मरीज खाने–पीने और शौचालय तक जाने में असमर्थ होते हैं‚ उन्हें लगातार मदद तथा नैतिक सहयोग की जरूरत होती है जो परिवार का सदस्य ही दे सकता है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों के लिए हर मरीज की निजी तौर पर देखभाल करना तथा चौबीसों घंटे उन्हें मदद मुहैया कराना संभव नहीं है। परिजन संक्रमित के साथ रहना चाहते हैं उन्हें मास्क पहनते हुए ऐसा करने की दी जाए अनुमति
विशेषज्ञों ने कहा‚ अकेलेपन से बीमारी से जंग जीतने की उम्मीद खो सकते हैं मरीज, परिवार के करीबी सदस्यों को कोविड़–१९ मरीजों के साथ न रहने देना या उनसे मिलने न देना क्रूर तथा अमानवीय , ड़ा. खांड़ेकर द्वारा उठाए मुद्दे के बारे में बात करते हुए एम्स नागपुर में मनोचिकित्सा की सहायक प्रोफेसर ड़ॉ. सोनाक्षी जायर्वा ने कहा कि कोविड़–१९ मरीजों का इलाज करते हुए ‘संतुलित रुख’ अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक स्वास्थ्य देखभाल संस्थान को ऐसी नीतियां तैयार करनी चाहिए जो रोगी/परिवार–केंद्रित हों और जो महामारी के दौरान अस्पतालों के प्रभावी कामकाज में बाधा उत्पन्न नहीं करें।
विशेषज्ञों ने कहा‚ अकेलेपन से बीमारी से जंग जीतने की उम्मीद खो सकते हैं मरीज ,परिवार के करीबी सदस्यों को कोविड़–१९ मरीजों के साथ न रहने देना या उनसे मिलने न देना क्रूर तथा अमानवीय, ड़ा. खांड़ेकर द्वारा उठाए मुद्दे के बारे में बात करते हुए एम्स नागपुर में मनोचिकित्सा की सहायक प्रोफेसर ड़ॉ. सोनाक्षी जायर्वा ने कहा कि कोविड़–१९ मरीजों का इलाज करते हुए ‘संतुलित रुख’ अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक स्वास्थ्य देखभाल संस्थान को ऐसी नीतियां तैयार करनी चाहिए जो रोगी/परिवार–केंद्रित हों और जो महामारी के दौरान अस्पतालों के प्रभावी कामकाज में बाधा उत्पन्न नहीं करें।