दादागीरी दिखाते चीन पर नकेल कसने के लिए शुक्रवार को दुनिया के चार शक्तिशाली देशों के बीच बड़ी बैठक होने वाली है. भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के शीर्ष नेताओं की क्वाड ग्रुप के पहले शिखर सम्मेलन में शिरकत करेंगे, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन हिस्सा लेंगे और चीन के खिलाफ नई रणनीति बनाएंगे.
भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया, इन चार देशों की चौकड़ी और नवंबर के महीने में मालाबार एक्सरसाइज से बीजिंग बौखला उठा है. बार-बार चीन क्वाड देशों को मतलब के यार कहकर चिढ़ाता रहा, लेकिन क्वाड ने ऐसी कमर कसी है कि ड्रैगन का हौसला डगमगाने लगा है. 12 मार्च, 2021 का दिन वैश्विक कूटनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में याद रखा जाएगा.
क्वाड की मीटिंग में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती चुनौती पर लगाम लगाने को लेकर चर्चा होगी. इस क्षेत्र में रणनीतिक और सैन्य साझा सहयोग के एजेंडे पर बात होगी. कोरोना जैसी महामारी से निपटने में चारों देशों की भूमिका पर भी बातचीत होगी. क्वाड समिट में भारत की वैक्सीन को प्रमोट करने के फंड का भी ऐलान हो सकता है. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन, आर्थिक संकट भी बैठक के प्रमुख एजेंडे में शामिल है.
क्वाड मीटिंग में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया चीन से अलग एक वैश्विक सप्लाई चेन सिस्टम बनाने पर भी बात करेंगे, जिससे ड्रैगन की मनमानी को काबू में किया जा सके. इसे जापान आगे बढ़ा रहा है, जिससे भारत और ऑस्ट्रेलिया की मदद से चीन पर से निर्भरता को कम किया जा सके. इस बैठक में भारत से आसियान देशों के बीच ईस्ट-वेस्ट कनेक्टिविटी को बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है, जिससे चीन के नॉर्थ-साउथ कनेक्टिविटी को करारा जवाब दिया जा सके. इसके अलावा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के संयुक्त फंडिंग पर भी विचार किया जा सकता है.
उधर क्वाड के राष्ट्र प्रमुखों की बैठक के नाम से ही चीन बौखला उठा है, लेकिन चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर यानी सीपेक बनने से पहले वो कुछ नहीं कर सकता. दरअसल बीजिंग की एक चूक से भारत उसके मलक्का स्ट्रेट वाले कारोबार को काट सकता है और चीन के 80 फीसदी तेल की आपूर्ति को बाधित कर सकता है और इसीलिए क्वाड मीटिंग के आने वाले नतीजों से पहले ही चीन खौफजदा है.
चीन के भोंपू मीडिया ग्लोबल टाइम्स में उसकी खीझ दिख रही है क्योंकि जहां चीन की वैक्सीन को पूरी दुनिया दुत्कार रही है, वहीं भारत की वैक्सीन पर 40 से ज्यादा देशों ने भरोसा जताया है और इसीलिए जिनपिंग की प्रोपेगेंडा मीडिया क्वाड को ये कहकर खारिज किया है कि आखिर चार देश मिलकर दुनिया को क्या दे सकते हैं?
इससे पहले अक्टूबर में जब क्वाड मीटिंग में विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई थी, तब चीन ने इसे षडयंत्रकारियों का विशेष दल कहा था. चीन के खिलाफ अग्रिम मोर्चा और मिनी नाटो तक कह दिया था. मतलब चतुर्दिक वार से पहले बीजिंग में हाहाकार मचता ही रहा है. इस बार भी क्वाइड समिट पर चीन की पूरी नजर है, लेकिन पूरी दुनिया को उम्मीद है कि इस बैठक से चीन पर साझा समझ बनेगी और ड्रैगन पर नकेल कसने का पक्का रास्ता निकलेगा.
इसमें कोई शक नहीं है कि क्वाड की वजह से कोरोना के जन्मदाता चीन के माथे पर शिकन रहती है. दरअसल चीन को लगता है कि क्वाड में शामिल भारत, अमेरिका और जापान जैसे शक्तिशाली देश उसके खिलाफ मिलकर कोई बड़ी रणनीति बना रहे हैं. चीन को ये भी लगता है कि क्वाड समुद्र में चीन के आसपास अपने वर्चस्व को बढ़ाना चाहता है और भविष्य में उसे टारगेट किया जा सकता है. यहां जानना जरूरी है कि आखिर क्वाड है क्या?
क्वाड का अर्थ क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग है. इसके अंतर्गत चार देश भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका आते हैं. इस क्वाड का मकसद एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति की बहाली करना और संतुलन बनाए रखना है. साल 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे की तरफ से क्वाड का प्रस्ताव पेश किया गया था. इस प्रस्ताव का भारत, अमेरिका और आस्ट्रेलिया ने समर्थन किया था.
जाहिर है भारत, अमेरिका, जापान सहित दुनिया के कई बड़े देश चीन के खिलाफ हैं. ऐसे में चीन के खिलाफ नाटो की तरह एक मजबूत मोर्चा बनाने की कवायद तेज हो गई है. अक्टूबर के महीने में बीजिंग ने इसे मिनी नाटो बताया था और कहा था कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत क्वाड को चीन के खिलाफ मजबूत गठबंधन के तौर पर तैयार करने में जुटे हैं. अब आपको बताते हैं कि क्वाड को जिस नाटो से जोड़कर देखा जा रहा है, वो नाटो क्या है.
नाटो यानी उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (North AtlanticTreaty Organization) की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को 12 संस्थापक सदस्यों की तरफ से अमेरिका के वॉशिंगटन में किया गया था. अभी इसके सदस्यों की संख्या 30 है और मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में है. उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों के मध्य एक सैन्य गठबंधन है.
नाटो सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है, जिसका मतलब है कि एक या अधिक सदस्यों पर आक्रमण सभी सदस्य देशों पर आक्रमण माना जाता है. नाटो में कोई भी फैसला सभी 30 सदस्यों के सामूहिक इच्छा के आधार पर लिया जाता है. मतलब सदस्य देशों के बीच एकजुटता और सामंजस्य की भावना बनाए रखना है और आतंकवाद को किसी रूप मे स्वीकार ना करना और कोई हमला करे तो मिलकर उसका जवाब देना. यही नाटो का मुख्य मकसद है और उसी के तर्ज पर अब क्वाड को मिनी नाटो कहा जा रहा है, क्योंकि इसमें शामिल सभी देशों की सीधी जंग चीन से है.
जानकार बताते हैं कि क्वाड चीन को चुनौती देने के लिए बेहद अहम है. कोरोना काल में होने वाली ये बैठक इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा दोनों ही पहली बार इसमें शिरकत कर रहे हैं..
जानकार ये बताते हैं कि क्वाड को लेकर बाइडेन की भी नीति काफी कुछ पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ही तरह होगी, क्योंकि चीन को लेकर बाइडेन की राय में अब तक नरमी नहीं दिखी है और सत्ता संभालने के बाद से बाइडेन भारत को मित्र ही बताते रहे हैं. मतलब भारत अमेरिका संबंध की गरमाहट में कोई कमी नहीं आई है और क्वाड सम्मेलन को लेकर व्हाइट हाउस की तरफ से कहा गया है कि ये कार्यक्रम राष्ट्रपति जो बाइडेन के उन बहुपक्षीय कार्यक्रमों में से एक है जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोगियों और साझेदारों के साथ निकट सहयोग को अहमियत देने से जुड़ा हुआ है.
उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के पीएम योशिहिदे सुगा ने मंगलवार को टेलीफोन पर बातचीत की. इस बातचीत में जापान ने चीन को लेकर बड़ी चिंता जाहिर की और द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने के साथ ही क्वाड फ्रेमवर्क के तहत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग और बढ़ाने को लेकर चर्चा हुई. जापान सरकार के बयान के मुताबिक दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय स्थिति को लेकर अपने विचारों का आदान-प्रदान किया. प्रधानमंत्री सुगा ने पूर्वी और दक्षिण चीन सागर, चीन के तटीय सुरक्षा कानून और हांगकांग की स्थिति और झिंगजियान उइगर स्वायत्त क्षेत्रको लेकर गंभीर चिंता जताई.
मतलब क्वाड के दोनों मजबूत देश अमेरिका और जापान क्वाड समिट से पहले ही चीन के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं, इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि जब कल चार यार यानी भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया क्वाड सम्मेलन में शिरकत करेंगे तो चीन की चिंता चरम पर होगी और बीजिंग भविष्य के डर में डूब जाएगा.