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पाक-चीन का अचानक सीमा पर शांति गीत गाना भरोशे वाली बात तो कतई नहीं हो सकती है …

UB India News by UB India News
February 28, 2021
in अन्तर्राष्ट्रीय, खास खबर, ब्लॉग, संपादकीय
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पाक-चीन का अचानक सीमा पर शांति गीत गाना भरोशे वाली बात तो कतई नहीं हो सकती है …

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई अवसरों पर कह चुके हैं कि समझने और समझाने के साथ ही आजमाए जाने पर आज का भारत दुश्मन को उसके घर में घुसकर मारना भी जानता है। बालाकोट इसका सजीव प्रमाण है‚ तो डोकलाम से लेकर लद्दाख तक चीन को पीछे हटने के लिए मजबूर करना उसकी विस्तारवादी सोच की करारी हार है। इसका विस्तार करें‚ तो अमेरिका–रूस जैसी बड़ी शक्तियों को साधने और दुनिया के कोने–कोने में अपनी पैठ बढ़ाने में भी भारत का रिकॉर्ड पहले से बेहतर हुआ है। पाकिस्तान का नियंत्रण रेखा पर ‘नियंत्रण’ में रहने के लिए तैयार होना हर नजरिए से अच्छी खबर है। दोनों देशों के बीच युद्धविराम के लिए नये सिरे से समझौता हुआ है। साल २००३ में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बीच युद्ध विराम को लेकर करार हुआ था। कागजों पर युद्धविराम तभी से लागू है‚ लेकिन पाकिस्तान लगातार इसकी अनदेखी करता रहा है। गृह मंत्रालय के अनुसार अकेले साल २०२० में सीजफायर तोड़ने की ५‚१३३ घटनाएं दर्ज हुइ‚ जबकि साल २०१९ में यह आंकड़ा ३‚४७९ और साल २०१८ में २‚१४० रहा था। साल २०२० में हमारे सुरक्षा बलों के २४ जवानों को शहादत देनी पड़ी और २२ नागरिकों की भी मौत हुई।

तो जब पाकिस्तान ने सरहद पर युद्ध के हालात बनाए हुए हैं‚ ऐसे में उसका अचानक युद्धविराम के लिए तैयार हो जाना अस्वाभाविक लग सकता है‚ लेकिन इस शंका पर दो देशों के दायरे से बाहर निकलकर विचार करें‚ तो कुछ तार्किक वजहें हाथ लग सकती हैं। इसमें जो वजह सबसे पुख्ता दिखती है‚ वो है अमेरिका के नये राष्ट्रपति जो बाइडेन का विदेश नीति पर पहला वक्तव्य। इसमें मौजूदा वक्त में चीन और रूस को अमेरिका के लिए दो सबसे बड़ी चुनौतियों की तरह पेश किया गया है। इसमें आगे शीत युद्ध के बाद लंबे समय तक दुनिया पर एकाधिकार का दावा किया गया है और चीन से मिल चुनौती के जिक्र के साथ साफगोई से यह स्वीकार भी किया गया है कि वो एकाधिकार अब खत्म हो चुका है और दुनिया नये शीत युद्ध की ओर बढ़ चली है। यहां से हमारे काम की बात शुरू होती है। वक्तव्य में आगे कहा गया है कि चीन और रूस की चुनौती से निपटने के लिए सहयोग की भावना को पुनर्जीवित और लोकतांत्रिक साझेदारियों को फिर से मजबूत बनाना होगा‚ जिसके लिए बाइडेन ने अपने ‘करीबी मित्रों’ से बातचीत भी की है। अमेरिका का अनुमान है कि इस खेमेबंदी में भारत और पाकिस्तान उसके स्वाभाविक सहयोगी हो सकते हैं। भारत से संबंधों को लेकर तो अमेरिका में अब कोई भ्रम नहीं है‚ लेकिन पाकिस्तान पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता। खासकर यह देखते हुए कि ट्रंप प्रशासन में नजरअंदाज होने के बाद पाकिस्तान किस तरह चीन की गोद में जा बैठा है। इस लिहाज से सीमा पर शांति बहाली की प्रक्रिया की शुरुआत करने के पीछे पाकिस्तान का मकसद अमेरिका से नजदीकी बढ़ाना हो सकता है।

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एक संभावना यह भी है कि इस खेल के पीछे चीन हो‚ जो एक तीर से दो शिकार कर रहा हो। पाकिस्तान की तरह चीन भी कुछ दिन पहले ही सीमा पर ‘गोली की जगह बोली वाली’ पॉलिसी पर कदमताल के लिए तैयार हुआ है। दोनों देश अचानक जिस तरह शांति के गीत गाने लगे हैं‚ वो ‘नेकी कर दरिया में डाल’ वाली सोच तो कतई नहीं हो सकती। इसके तार भी दक्षिण एशिया को लेकर बन रही नई अमेरिकी नीति से जुड़ते हैं। पाकिस्तान अमेरिका को दिखाना चाहता है कि वो चीन के उतने भी करीब नहीं है जितना इसका प्रचार होता है‚ वहीं चीन भारत से बाइडेन की बढ़ती नजदीकियों को देखते हुए सरहद पर तनाव कम करने की कवायद करता दिखना चाहता है। चीन यह अच्छी तरह समझता है कि बदलाव के इस दौर में अमेरिका से जितनी उसकी दुश्मनी बढ़ेगी‚ वो उतना ही भारत के करीब जाएगा और चीन के सहयोगी होने के कारण पाकिस्तान को भी इसका खमियाजा उठाना पड़ेगा।

एफएटीएफ के मद्देनजर भी पाकिस्तान को सीजफायर पर सहमति की ज्यादा जरूरत थी। पाकिस्तान तीन साल से ग्रे लिस्ट में है। इस बार भी वो आंतकवाद के खिलाफ तय एजेंडे पूरे करने में नाकाम रहा है। ग्रे लिस्ट में होने के कारण न केवल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कंगाली के दौर में पहुंच गई है‚ बल्कि उसे कई देशों से कूटनीतिक ‘बायकॉट’ भी झेलना पड़ा है। पाकिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व बेशक इसकी गहराई न समझता हो‚ लेकिन सैन्य नेतृत्व अच्छी तरह जानता है कि जब तक भारत से बोलचाल शुरू नहीं होगी‚ तब तक वो इसी तरह दुनिया के एक बड़े हिस्से के लिए ‘अछूत’ बना रहेगा। ताजा घटनाक्रम पर अमेरिका से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक की प्रतिक्रिया में खुशी के साथ राहत का जो भाव दिखा है‚ वो इसी बात का इशारा है कि अब कई मूल मुद्दों को सुलझाने की बुनियाद तैयार की जा सकेगी‚ लेकिन इस समझौते से जुड़ी कुछ और गुत्थियां भी हैं‚ जो शायद समय बीतने के साथ सुलझ जाएं।

पुलवामा और बालाकोट जैसी परिवर्तनकारी घटनाओं के दो साल पूरे होने के मौके पर इस तरह की रजामंदी तक पहुंचने को क्या केवल संयोग मान कर भुलाया जा सकता हैॽ
ऐसी खबरें हैं कि डीजीएमओ स्तर की आधिकारिक बातचीत के साथ ही सहमति बनाने के लिए बैक डोर डिप्लोमेसी भी हुई‚ जिसे भारत के एक बेहद महत्वपूर्ण अधिकारी ने सरकार के दिशा–निर्देश पर सफलता के साथ पूरा किया। हालांकि मामले की गंभीरता और दोनों ओर की जनभावना को देखते हुए कोई भी पक्ष इसकी जानकारियों को सार्वजनिक करना नहीं चाहेगा‚ लेकिन ऐसे कयास लग रहे हैं कि भारत की ओर से यह जिम्मेदारी एनएसए अजीत डोभाल ने पूरी की है। गलवान के बाद चीन को डिसएंगेजमेट तक लाने में भी डोभाल का अहम रोल रहा था। चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की सरहद करीब सात हजार किलोमीटर तक फैली हुई है। ऐसे में एलओसी से लेकर एलएसी तक दुश्मन को अपनी शर्तों पर रजामंद करवाना मोदी सरकार की विदेश और रक्षा नीति की नायाब मिसाल कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई अवसरों पर कह चुके हैं कि समझने और समझाने के साथ ही आजमाए जाने पर आज का भारत दुश्मन को उसके घर में घुसकर मारना भी जानता है। बालाकोट इसका सजीव प्रमाण है‚ तो डोकलाम से लेकर लद्दाख तक चीन को पीछे हटने के लिए मजबूर करना उसकी विस्तारवादी सोच की करारी हार है। इसका विस्तार करें‚ तो अमेरिका–रूस जैसी बड़ी शक्तियों को साधने और दुनिया के कोने–कोने में अपनी पैठ बढ़ाने में भी भारत का रिकॉर्ड पहले से बेहतर हुआ है। इस रणनीति की छाप दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसी देशों से लेकर हिंद महासागरीय देशों‚ हिंद–प्रशांत देशों‚ मध्य–पूर्व और पश्चिमी एशियाई देशों तक दिखाई पड़ती है। इतना ही नहीं अपने हितों पर प्रहार करने वाले देशों को भारत अपनी आर्थिक मजबूती का अहसास कराने से भी गुरेज नहीं कर रहा।
अनुच्छेद ३७० को लेकर विरोध करने पर मलेशिया और तुर्की की भारत ने जो गत बनाई‚ वो इसका बेहतरीन नमूना है‚ लेकिन इस बार हालात थोड़े अलग हैं। संघर्ष विराम लागू हुए अभी चंद दिन ही बीते हैं‚ लेकिन अभी से इसके टूटने की आशंकाएं भी सामने आने लगी हैं। यह आशंकाएं बेवजह नहीं हैं‚ इनके पीछे करगिल‚ मुंबई‚ पठानकोट और पुलवामा जैसे हमारे बुरे अनुभव हैं। अब तक पाकिस्तान के लिए संघर्ष विराम का मतलब अपनी ताकत बढ़ाने का मौका और सरहद पर अशांति बरकरार रखना रहा है। वो इस बार अपनी फितरत से बाज आएगा‚ इसका दावा कोई नहीं कर सकता। बस उम्मीद ही की जा सकती है कि वो अपनी गलतियों से सबक लेकर शांति और विकास के उस पथ पर आगे बढ़ेगा‚ जिस पर आज दुनिया भर में भारत का गौरव गान हो रहा है॥।

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