मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि कानून का राज कायम करना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। इसमें न्यायपालिका की भी अहम भूमिका है। न्यायपालिका किसी भी सही आदमी के साथ अन्याय नहीं होने देती है। शनिवार को पटना उच्च न्यायालय के शताब्दी भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि इसमें न्यायपालिका की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि अपराध नियंत्रण के लिए जरूरी है कि ट्रायल का काम तेजी से चलता रहे। विधायिका कानून तो बना सकती है‚ लेकिन सबसे बड़ी भूमिका न्यायपालिका की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष २००५ में जब मुझे राज्य में काम करने का मौका मिला‚ तब अपराध के मामले में ट्रायल की पटना उच्च न्यायालय के स्तर पर मॉनीटरिंग की गयी और तेजी से ट्रायल हुआ। न्यायाधीशगण को जिस जिले की जिम्मेवारी थी‚ उस पर उन्होंने नजर रखी। न्यायालय ने काम किया और अपराधियों को सजा मिलनी शुरू हुई। इससे बिहार में अपराध की घटनाओं में कमी आयी। मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं वचन देता हूं कि जब तक मैं काम करता रहूंगा‚ न्यायपालिका की जरूरत से संबंधी जो भी प्रस्ताव आयेगा‚ उसे स्वीकार करूंगा‚ ताकि लोगों को न्याय मिल सके। उन्होंने कहा कि पिछले ५ वर्षों में २०३५ अधीनस्थ कर्मियों के पद सृजित किये गये हैं‚ इसके साथ ही सिविल जज के १०३३ पद भी सृजित किये गये हैं। उन्होंने कहा कि आगे भी प्रस्ताव चाहे भवन निर्माण का हो‚ नियुक्ति का हो या फिर अन्य जरूरतों का‚ उसे मैं तत्काल अनुमति दूंगा।
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर चिंता जतायी है। पटना हाईकोर्ट के शताब्दी भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि एजेंडा सेट करने के लिए लोग अपने हिसाब से अदालतों से फैसला चाहते हैं। मनमुताबिक फैसला नहीं आने पर न्यायाधीशों के खिलाफ सोशल मीडिया पर मुहिम चलाई जाती है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। भारत स्वतंत्र राष्ट्र है‚ यहां बोलने की आजादी है‚ लेकिन नया ट्रेंड शुरू किया गया है‚ जो खतरनाक है। गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले ही सोशल मीडि़या पर आपतिजनक कंटेंट हटाने के लिए केंद्र सरकार ने दिशा–निर्देश जारी किया है।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबड़े ने ‘वाद–पूर्व मध्यस्थता’ के विकल्प के प्रति पक्षकारों को प्रोत्साहित कर अदालतों पर मुकदमों का बोझ घटाने की अपील की। उन्होंने कहा कि वाद–पूर्व मध्यस्थता‚ दीवानी और फौजदारी‚ दोनों ही मामलों में विवादों का समाधान करने का एक जरिया है। उन्होंने कहा ‚‘वाद अच्छी चीज है और वाद के लिए प्रावधान करना भी ठीक है। लेकिन वक्त आ गया है कि हम वाद–पूर्व मध्यस्थता का सहारा लें।” प्रधान न्यायाधीश बोबड़े ने कहा कि वाद–पूर्व मध्यस्थता के जरिये विवादों का समाधान होने से पक्षकारों को कुछ अलग तरह का अनुभव होता है और इसके अलावा अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी कम होता है। सीजेआई ने कहा‚‘मैं कानून मंत्री से इस बारे में चर्चा कर रहा था कि वाद–पूर्व मध्यस्थता के लिए बस एक कानून का अभाव है.। ॥ ॥ ”उन्होंने कहा‚‘अदालत के नये भवन की जरूरत पड़़ने का यह मतलब है कि कानूनी साक्षरता में वृद्धि हुई है.जो जरूरत है और लोग कानून अपने हाथ में लेने के बजाय विवादों का समाधान कराने के लिए अदालतों का रुख कर रहे हैं।’
मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम को पहले संबोधित किया‚ जिसके बाद प्रधान न्यायाधीश ने अदालतों की जरूरतों को न्यायपालिका की ओर से समझने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री का शुक्रिया अदा करते हुए कहा‚‘शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत का मतलब सरकार की विभिन्न शाखाओं के बीच बैर होना नहीं है और संविधान के बिल्कुल अनुरूप इस तरह के अनूठे एवं वास्तविक विचारों को सुनना बहुत ही सुखद अहसास कराने वाला है।’ सीजेआई ने अदालतों के कामकाज में प्रौद्योगिकी की भूमिका का भी उल्लेख किया। हालांकि‚ उन्होंने अदालतों के डि़जिटल माध्यम से कामकाज की नयी शैली कई वकीलों और वाद दायर करने वालों को रास नहीं आने पर खेद प्रकट किया। सीजेआई बोबड़े ने बिहार के साथ अपने जुड़़ाव का जिक्र करते हुए कहा‚ “मैंने राज्य के कई न्यायाधीशों के साथ काम किया है‚ इसलिए यह मेरे लिए कोई नयी जगह नहीं है और मैं यहां आकर खुश हूं। ‘ उन्होंने यहां वकालत करने वाले देश के प्रथम राष्ट्रपति ड़ॉ राजेंद्र प्रसाद जैसी विभूतियों का भी जिक्र किया।